Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से-सूत्र और मूत्र की पॉलिटिक्स

सूत्र और मूत्र की पॉलिटिक्स

पत्रकारिता की दुनिया में ‘सूत्र’ (सोर्स) एक ऐसा शब्द है जो विश्वसनीयता और गोपनीयता का प्रतीक माना जाता है। अच्छे पत्रकार अपने सूत्रों का खुलासा नहीं करते, क्योंकि इससे सूचना देने वाले व्यक्ति की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, और भविष्य में ऐसी गोपनीय जानकारियां मिलना बंद हो सकती हैं। लेकिन जब कोई खबर चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान के ‘सूत्रों’ के हवाले से चलाई जाती है, और वह खबर राजनीतिक नरेटिव सेट करने वाली हो, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। खासकर तब, जब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हो। हाल ही में बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर आई एक खबर ने इसी तरह का विवाद खड़ा किया है। राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने इस खबर के ‘सूत्र’ को ‘मूत्र’ करार दिया, जिसका अर्थ है एक ऐसा अपशिष्ट पदार्थ जो केवल दुर्गंध फैलाता है। यह बयान न केवल भाषाई चातुर्य का नमूना है, बल्कि चुनावी राजनीति में सूचना के दुरुपयोग की गंभीर समस्या को उजागर करता है।

सबसे पहले, बैकग्राउंड को समझते हैं। भारत में मतदाता सूची का पुनरीक्षण चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है, जो लोकतंत्र की नींव को मजबूत रखने के लिए आवश्यक है। बिहार में एसआईआर अभियान इसी का हिस्सा है, जो पिछले साल से चल रहा है। इस अभियान का उद्देश्य फर्जी, दोहरे या मृत मतदाताओं को सूची से हटाना है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव निष्पक्ष हों। चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार, बूथ स्तर के कर्मचारी घर-घर जाकर सत्यापन कर रहे हैं। हाल ही में, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में चुनाव आयोग के ‘सूत्रों’ के हवाले से कहा गया कि इस सत्यापन में बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए ‘घुसपैठियों’ के नाम मिले हैं। इनमें से कई लोगों के पास वोटर आईडी, आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज भी पाए गए। सूत्रों का दावा है कि 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होने वाली अंतिम मतदाता सूची से इन नामों को हटाया जाएगा, और फर्जी दस्तावेजों पर कानूनी कार्रवाई होगी। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि एसआईआर का मूल लक्ष्य अवैध मतदाताओं को हटाना है, जिससे चुनाव पारदर्शी रहें।

यह खबर ऐसे समय आई है जब बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले, यह मुद्दा घुसपैठ और नागरिकता को राजनीतिक हथियार बनाने का माध्यम बन सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जानकारी आधिकारिक है? चुनाव आयोग ने कोई प्रेस रिलीज या दस्तावेज जारी नहीं किया है; सब कुछ ‘सूत्रों’ पर आधारित है। यही वह बिंदु है जहां तेजस्वी यादव का बयान आता है। 13 जुलाई 2025 को, तेजस्वी ने एक पत्रकार के सवाल पर कहा कि चुनाव आयोग खुद सामने आने की बजाय सूत्रों से खबर ‘प्लांट’ करवा रहा है, ताकि इसका फायदा उठा सके। उन्होंने सूत्र को ‘मूत्र’ कहा, और उदाहरण दिया कि ये वही सूत्र हैं जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान इस्लामाबाद, लाहौर और कराची पर कब्जा कर चुके थे – एक व्यंग्य जो फर्जी खबरों की ओर इशारा करता है। तेजस्वी ने यह बात अपनी एक्स पोस्ट में भी दोहराई, जहां उन्होंने बिहार हैशटैग के साथ लिखा कि ऐसे सूत्र केवल दुर्गंध फैलाते हैं।

तेजस्वी का यह बयान विवादास्पद है, लेकिन यह चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।आरजेडी नेता मानते हैं कि अगर घुसपैठिए हैं, तो यह गृह मंत्रालय का काम है, न कि चुनाव आयोग का। सुप्रीम कोर्ट ने भी पहले सुनवाई में यही कहा था कि नागरिकता का निर्धारण चुनाव आयोग का क्षेत्र नहीं है। प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। 10 जुलाई 2025 को हुई सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर अभियान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह आधार या वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों पर विचार करे। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, और उसे रोकना उचित नहीं, लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। अगली सुनवाई 28 जुलाई 2025 को तय है, जहां याचिकाकर्ता (जैसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने एसआईआर को मनमाना बताया है। कोर्ट ने ईसीआई से 21 जुलाई तक जवाब मांगा है।
यह मुद्दा केवल बिहार तक सीमित नहीं है। चुनाव आयोग ने पूरे देश में एसआईआर जैसा अभियान शुरू करने की तैयारी की है। कई राज्यों में अंतिम पुनरीक्षण पुराना है – दिल्ली में 2008, उत्तराखंड में 2006, और अधिकांश राज्यों में 2002-2004 के बीच। बिहार का एसआईआर राष्ट्रीय टेम्पलेट बन सकता है, लेकिन अगर इसमें राजनीतिक पूर्वाग्रह है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है। विपक्षी दल, जैसे आरजेडी और कांग्रेस, इसे मुस्लिम और गरीब मतदाताओं को निशाना बनाने का षड्यंत्र बताते हैं। राहुल गांधी और तेजस्वी ने बिहार बंद का आह्वान किया, दावा करते हुए कि यह ईसीआई का ‘फिल्टर’ बनना है।

दूसरी तरफ, भाजपा और एनडीए ने तेजस्वी के बयान की कड़ी आलोचना की है। वे कहते हैं कि यह चुनाव आयोग की अपमान है, और घुसपैठ का मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने पुराने टीवी क्लिप शेयर कर नागरिकता बहस को जोड़ा। लेकिन सवाल उठता है कि अगर जानकारी सही है, तो ईसीआई क्यों आधिकारिक बयान नहीं देता? मीडिया रिपोर्ट्स सूत्रों पर निर्भर हैं, और ईसीआई की वेबसाइट पर कोई विवरण नहीं। यह पत्रकारिता के सिद्धांतों का उल्लेख है, जहां सूत्र गोपनीय होते हैं, लेकिन जब वे संवेदनशील राजनीतिक मुद्दों पर हों, तो पारदर्शिता जरूरी है। इस पूरे प्रकरण से कुछ महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं। पहला, सूचना के सूत्रों की विश्वसनीयता जांचनी चाहिए, खासकर चुनावी मौसम में। दूसरा, चुनाव आयोग को राजनीतिक दबाव से मुक्त रहना चाहिए। तीसरा, घुसपैठ का मुद्दा गंभीर है-अगर सत्य है, तो गृह मंत्रालय को कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना लोकतंत्र को कमजोर करता है। तेजस्वी का ‘मूत्र’ बयान भले ही तीखा लगे, लेकिन यह सूचना के दुरुपयोग पर रोशनी डालता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले को स्पष्ट करेगा, और उम्मीद है कि इससे मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित होगी, बिना किसी पूर्वाग्रह के। अंत में, आम लोगों को याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र में तथ्य राजनीति से ऊपर हैं – और सूत्रों को मूत्र बनने से बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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