-सुभाष मिश्र
देश का चुनाव आयोग बहुत जल्दी में है, बिहार में जो मतदाता गहन पुनरीक्षण २००३ के बाद नहीं हुआ उसे चुनाव आयोग दो-तीन महीने में, बिहार चुनाव के पहले कराने पर आमदा है।
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इन्टेंसिव रिविज़न-एसआईआर) की प्रक्रिया को लेकर चल रही राजनीतिक और कानूनी बहस ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई 2025 को हुई सुनवाई ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है, खासकर चुनाव आयोग (ईसीआई) की निष्पक्षता, प्रक्रिया के समय और आधार कार्ड व राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को शामिल न करने को लेकर।
सुप्रीम कोर्ट ने ईसीआई से पूछा कि बिहार विधानसभा चुनाव (नवंबर 2025) से कुछ महीने पहले एफआईआर शुरू करने का क्या औचित्य है? कोर्ट ने टिप्पणी की कि अगर नागरिकता की जांच करनी थी तो इसे पहले करना चाहिए था। कोर्ट ने ईसीआई से सवाल किया कि 11 स्वीकृत दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा कार्ड क्यों शामिल नहीं हैं, जबकि ये बिहार में व्यापक रूप से उपलब्ध है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आधार और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को न मानना लाखों मतदाताओं को वोटिंग से वंचित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने 200३ को कट- ऑफ तारीख मानने को ‘मनमाना करार दिया। कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि 200३ के बाद पांच लोकसभा और पांच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, और अब पुरानी सूची को आधार बनाना तर्कसंगत नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया नागरिकों पर अपनी और अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने का अनुचित बोझ डालती है, जो बिहार जैसे गरीब और प्रवासी-प्रधान राज्य में अव्यावहारिक है।
चुनाव आयोग ने अपने बचाव में तर्क देते हुए एसआईआर को 200३ के बाद पहला व्यापक पुनरीक्षण बताया, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची से अवैध और डुप्लिकेट नाम हटाना और केवल पात्र मतदाताओं को शामिल करना है। ईसीआई का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद ३24 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21 के तहत उसका अधिकार है। ईसीआई ने कहा कि आधार, राशन कार्ड और पेन कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं, इसलिए इन्हें 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया। हालांकि, 200३ की मतदाता सूची में शामिल 4.96 करोड़ मतदाताओं को कोई दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है।
समूचा विपक्ष चुनाव आयोग की निष्पक्षता, पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करके आंदोलित है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग से कुछ तीखे और व्यवहारिक सवाल पूछे। ईसीआई ने दावा किया कि वह सभी राजनीतिक दलों को प्रक्रिया में शामिल कर रहा है और बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) की नियुक्ति को प्रोत्साहित कर रहा है ताकि दावों और आपत्तियों को समय पर सुलझाया जा सके।
इस संबंध में गहराए राजनीतिक विवाद के बीच विपक्ष ने आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये है। कांग्रेस, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने एसआईआर को चुनावी हेराफेरी और एनआरसी का गुप्त कार्यान्वयन करार दिया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह प्रक्रिया गरीब, दलित और मुस्लिम मतदाताओं को निशाना बनाती है। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ साजिश बताया। दूसरी ओर चुनाव आयोग को सत्तारूढ़ दल का समर्थन प्राप्त है। एनडीए ने एसआईआर का समर्थन किया है, इसे मतदाता सूची की शुद्धता के लिए जरूरी बताया। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रक्रिया कुछ क्षेत्रों जैसे सीमांचल में जनसांख्यिकीय बदलाव को प्रभावित कर सकती है जिससे राजनीतिक लाभ की आशंका जताई जा रही है।
विपक्ष ने ईसीआई पर सत्तारूढ़ दल के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र चुनाव 2024 के बाद मतदाता सूची की पवित्रता पर सवाल उठाए थे, लेकिन अब इसे विडंबना मान रही है कि ईसीआई ने बिहार में इतनी सख्त प्रक्रिया शुरू की।
आधार कार्ड और राशन कार्ड को एसआईआर में शामिल न करने से बिहार के ग्रामीण और गरीब मतदाताओं के लिए मुश्किलें बढ़ गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार आधार कार्ड बिहार के कई जिलों में सबसे आम दस्तावेज है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ये दस्तावेज जन्म तिथि और पते का प्रमाण दे सकते हैं, और इन्हें खारिज करना अनुचित है। ईसीआई का कहना है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, क्योंकि इसे गैर नागरिकों को भी जारी किया जा सकता है। हालांकि, फॉर्म 6 (नए मतदाता पंजीकरण) में आधार को पते और जन्मतिथि के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता है जो प्रक्रिया में असंगति को दर्शाता है।
बिहार में 61 फीसदी साक्षरता दर और जन्म प्रमाणपत्रों की ऐतिहासिक कमी के कारण कई मतदाताओं के पास स्वीकृत 11 दस्तावेज (जैसे पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र) नहीं हैं। इससे लाखों मतदाता वंचित हो सकते हैं।
ईसीआई के अनुसार, 200३ के बाद बिहार में कोई व्यापक पुनरीक्षण नहीं हुआ और इस दौरान डुप्लिकेट और अवैध मतदाताओं की संख्या बढ़ी। एसआईआर का लक्ष्य 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची को शुद्ध करना है। विपक्ष का कहना है कि अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 तक एक विशेष सारांश पुनरीक्षण (एसएसआर) पहले ही हो चुका है, और कोई बड़ी अनियमितता नहीं पाई गई। इतने कम समय में स्क्रूटनी शुरू करना संदेहास्पद है। चुनाव आयोग ने निर्धारित किया है जा एसआईआर का समय (25 जून से 25 जुलाई) अव्यावहारिक है और 200 की सूची अप्रचलित है।
सुप्रीम कोर्ट ने ईसीआई से जवाब मांगा है और याचिकाकर्ताओं की मांग पर विचार कर रहा है, जिसमें एसआईआर के 24 जून के आदेश को रद्द करना या कम से कम अंतरिम स्थगन शामिल है। कोर्ट ने संकेत दिया कि वह मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई के बीच यह आरोप लगाया जा रहा है कि यदि कोर्ट एसआईआर को असंवैधानिक या मनमाना मानता है, तो इसे रद्द किया जा सकता है और ईसीआई को नई प्रक्रिया शुरू करनी पड़ सकती है। सुप्रीम कोर्ट ईसीआई को निर्देश दिए हंै कि आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को शामिल किया जाए और समय सीमा बढ़ाई जाए। एसआईआर को फिलहाल कोर्ट ने अभी जारी रखने का निर्देश दिया है, इस पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
एसआईआर का परिणाम बिहार की राजनीति को प्रभावित कर सकता है, खासकर सीमांचल जैसे क्षेत्रों में, जहां जनसांख्यिकीय संवेदनशीलता अधिक है। विपक्ष का दावा है कि यह एनडीए को लाभ पहुंचाने की रणनीति हो सकती है, जबकि ईसीआई इसे निष्पक्ष बताता है। विपक्ष और एनजीओ जैसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने ईसीआई पर पक्षपात का आरोप लगाया है। आरजेडी सांसद मनोज झा ने इसे ”लक्षित बहिष्करणÓÓ बताया, जो मुस्लिम, दलित, और प्रवासी समुदायों को प्रभावित कर सकता है।
ईसीआई ने कहा कि वह संवैधानिक दायित्वों का पालन कर रहा है और केवल भारतीय नागरिकों को वोट देने का अधिकार सुनिश्चित कर रहा है। ईसीआई ने 57फीसदी फॉर्म जमा होने का हवाला देकर प्रक्रिया की सफ लता का दावा किया। ईसीआई की निष्पक्षता पर सवाल तब और गंभीर हो जाते हैं, जब प्रक्रिया का समय और दस्तावेजों की सख्ती को देखा जाता है। हालांकि, ईसीआई का कहना है कि वह राजनीतिक दलों के साथ सहयोग कर रहा है, लेकिन विपक्षी नेताओं का दावा है कि उन्हें पहले से परामर्श नहीं किया गया।
बिहार में एसआईआर प्रक्रिया ने मतदाता सूची की शुद्धता और लोकतांत्रिक अधिकारों के बीच एक जटिल टकराव पैदा किया है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से यह स्पष्ट है कि प्रक्रिया में कई खामियां हैं, खासकर समय, दस्तावेजों की सूची और नागरिकों पर बोझ के मामले में। न्यायालय ने कहा कि बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन जारी रहेगा और हम संवैधानिक संस्था के काम को नहीं रोक सकते। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति धूलिया ने दस्तावेजों को देखने के बाद चुनाव आयोग से कहा कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेजों की सूची में 11 दस्तावेज शामिल हैं और यह संपूर्ण नहीं है। इसलिए हमारी राय में यदि आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी इसमें शामिल किया जाए तो यह न्याय के हित में होगा। कोर्ट ने कहा कि इससे याचिकाकर्ता भी संतुष्ट होगा।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने तीन सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग की शक्तियां, प्रक्रिया और ड्राफ्ट लिस्ट तैयार करने के लिए दिया गया वक्त बहुत कम है, क्योंकि बिहार में चुनाव नवंबर में होने हैं। कोर्ट ने कहा कि हमारा भी यही मानना है कि इस मामले की सुनवाई ज़रूरी है। इसकी तारीख 28 जुलाई तय की जाए। इस बीच चुनाव आयोग जवाबी हलफनामा दाखिल करेगा।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस प्रक्रिया के भविष्य को तय करेगा। यदि कोर्ट एसआईआर को रद्द करता है या संशोधन का आदेश देता है तो यह बिहार के चुनावी परिदृश्य और ईसीआई की विश्वसनीयता पर गहरा प्रभाव डालेगा। दूसरी ओर यदि प्रक्रिया जारी रहती है, तो यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि कोई भी पात्र मतदाता वंचित न हो।