Santulan ka Sameekaran- मानसिकता में सुधार से बदलेगा समाज, हिंसक घटनाएं होगी कम

Santulan ka Sameekaran

0 एशियन न्यूज का खास कार्यक्रम संतुलन का समीकरण का आयोजन
0 महिला उत्पीडऩ समाज, सरकार, कानून और मानसिकता

रायपुर। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया। ऐसी सोच और परंपरा वाले देश में यदि आए दिन महिलाओं का किसी ना किसी तरीके से उत्पीडऩ होता रहे और सरकार, समाज, क़ानून असहाय होकर हर घटना के बाद अफ़सोस ज़ाहिर करें तो इसे क्या कहेंगे? निर्भया से लेकर मोमिता तक की घटनाओं को लेकर समाज आंदोलित हैं। सरकार कड़े कदम उठाने की बात करती है और न्यायालय स्वयं संज्ञान लेकर कड़े निर्देश देती है। इसके बावजूद इसके अपराध के आंकड़े बताते हैं कि औसतन हर दिन बलात्कार के 86 मामले दर्ज किए जाते हैं जबकि हर 3 घंटे में 1 महिला रेप का शिकार होती है।
महिला उत्पीडऩ समाज, सरकार, कानून और मानसिकता ऐसे ही गंभीर विषय पर लोगों की राय जानने के लिए इस बार एशियन न्यूज के खास कार्यक्रम संतुलन के समीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस गंभीर विषय पर अलग-अलग वर्ग के लोग शामिल हुए और अपनी विचार रखे।
एशियन न्यूज के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र ने कहा कि आज के दौर में महिलाएं सभी क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। घर हो या कार्यस्थल महिलाएं आज पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाएं खड़ी हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां महिलाएं अपना योगदान न दे रही हों। घर से लेकर बाहर महिलाएं अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं, लेकिन भारत की बात करें तो यहां हर मिनट किसी न किसी महिला के साथ अपराध होता है। फिर चाहे वो अपने घर पर हो, ऑफिस या फिर पब्लिक प्लेस पर, उनकी सुरक्षा पर हमेशा सवाल खड़ा होता है। महिलाएं हर जगह पर अपने आपको असुरक्षित महसूस करती हैं। जमाना बदल गया है लेकिन आज भी समझ में ऐसी मानसिकता के लोग हैं जो इससे ऊपर नहीं उठ पाए हैं। आज जरूरी है लोगों की मानसिकता को बदलने की और समाज में महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करने करने की।

भारत में अपराध के आंकड़े
आंकड़ों की बात करें तो भारतीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो सीआरबी ने वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ 44 5256 अपराध के मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं वर्ष 2018 से 22 तक महिलाओं के विरुद्ध दर्ज अपराधों में 12.9फीसदी वृद्धि हुई है। भारत में महिलाओं और पुरुष 2023 रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के वर्ष 2017 के 3,59,849 मामलों की तुलना में वर्ष 2022 में बढ़कर 4,45,000 से अधिक हो गए हैं। इस आधार पर औसतन प्रतिदिन 1220 मामलों के साथ प्रति घंटे 51 प्रथम सूचना यानी की एफआईआर दर्ज की गई। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 में पाया गया कि भारत में 15 से 49 वर्ष की लगभग एक तिहाई महिलाओं ने किसी न किसी रूप में हिंसा का अनुभव किया। सबसे आम अपराधों में पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता 31.4 प्रतिशत अपहरण 19.2 प्रतिशत लज्जा भंग करने 18.7 प्रतिशत और बलात्कार 7.1 प्रतिशत शामिल हैं।
बीजेपी महिला विंग से जुड़ी लक्ष्मी वर्मा ने कहा कि आज हम 21वीं सदी में पहुंच गए हैं, लेकिन बहुत चिंता का विषय है कि आज हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। हम कहते हैं कि भारत में आजादी के बाद महिलाओं और बेटियों को सभी चीजों में बराबर का अधिकार मिला। हमारे संविधान में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया, लेकिन उसके बाद भी भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी बेटियों के साथ जघन्य अपराध हो रहे हैं। जब हम ऐसी घटनाओं को देखते हैं और सुनते हैं, तो मन बहुत व्यथित होता है और इसकी जितनी भी निंदा की जाए काम है। एक सभ्य समाज से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है। जिस प्रकार से कोलकाता में एक डॉक्टर बेटी के साथ घटना घटी वह बिल्कुल गलत है। इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियां अपने स्तर से सोचती है, लेकिन कानून अपने हिसाब से काम करता है और उनको अपना काम करना चाहिए। राजनीतिक दृष्टिकोण से बात करें तो मुझे बहुत दुख हो रहा है कि 21वीं सदी में पहुंचने के बाद भी जिस प्रकार से हम महिलाएं जीवन यापन कर रहे हैं, वह बहुत दुखदायी है। उन्होंने कहा कि जब हम राजनीतिक क्षेत्र में भी काम करते हैं तो हमें दोयम दर्जे के रूप में देखा जाता है। लोग यह सोचते हैं कि महिला होने के कारण महिला डिसीजन नहीं ले सकती हैं। अच्छे से काम नहीं कर सकती हैं। लेकिन हम लोग सक्षम हैं। मैंने तो यह एडमिनिस्ट्रेशन के रूप में भी देखा है। सुनीता विलियम ने अंतरिक्ष में पहुंचकर अपनी परचम लहरा सकती है तो इस देश के कई बेटियां अन्य क्षेत्रों में नया कृतिमान गढ़ रही हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर प्रीति सत्यपति ने कहा कि लोग कहते हैं कि पुरुषों के साथ महिलाएं काम नहीं कर सकती हैं। महिलाओं को काम करने में परेशानी होती है, लेकिन मेरा मानना है कि सभी पुरुष एक मानसिकता के नहीं होते हैं। आज भी महिलाएं पुरुषों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। इसका मैं जीता जागता उदाहरण हूं। मैं जिस संस्थान में पढ़ा रही हूं वहां 46 टीचरों में मैं एकमात्र महिला शिक्षिका हूं। उन्होंने कहा कि सभी चीज के लिए कानून बने हैं। कानून अपने तरीके से काम कर रहा है, लेकिन मेरा मानना है कि जो घृणित किस्म के लोग हैं उनके खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए।
समाजसेवी नीतू सिंह ने कहा कि हर चीज के दो पहलू होते हैं। अगर हम देखें तो पुरुष कई मामले में हमारे सहयोगी होते हैं तो कई मामले में विरोध में भी खड़ा नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा होता है जब हमें काम करने के लिए पूरी आजादी देते हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि जब वह विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक हमने जो अपनी जिंदगी में सीखा है उससे लगता है कि जो महिलाओं के दुख और तकलीफ हैं वह कहीं ना कहीं पीड़ादायक होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि जब हम महिलाएं ही अपनी बच्चियों को आगे बढऩे से रोकते हैं। हम महिलाएं ही कई बार विरोधी हो जाते हैं। मैं महिलाओं से निवेदन करना चाहती हूं कि पारिवारिक परिस्थितियों को समझें और अपनी बच्चियों और महिलाओं को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाएं।
एडवोकेट आशना चंद्राकर ने कहा कि मेरा वर्क प्लेस बहुत सुरक्षित है। क्योंकि मैं कोर्ट जाति हूं, मैं वकालत कर रही हूं, लेकिन अभी भी कई महिलाएं ऐसी जगह पर काम कर रही हैं जहां वह सुरक्षित महसूस नहीं करती। उन्होंने कहा कि ऐसे अपराध को रोकने के लिए हमे घर से ही शुरू करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सबसे पहले समाज में बच्चों को सही चीजें सिखाने की आवश्यकता है। जैसे राइट टच या बेड टच या फिर कौन किस तरह का व्यवहार कर रहा है। वहीं उन्होंने कहा कि आज जरूरी है कि बच्चों या युवाओं को स्कूल और कॉलेज स्तर पर ऐसी शिक्षा दी जाए, जिससे वह सही गलत की पहचान कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि जिस तरीके से आज सभी लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। खास करके युवक युवतियां। लेकिन सोशल मीडिया पर भी कहीं ना कहीं लोग ज्यादा प्रताडि़त हो रहे हैं। इसकी ज्यादा शिकायत भी नहीं हो रही है। आज जरूरी है कि सोशल मीडिया पर भी सभी चीजों का ख्याल रखें इसके लिए सोशल मीडिया ने सभी चीजें दे रखी है। उन्होंने बताया कि इसके लिए अपने प्रोफाइल को लोक रख सकते हैं, लेकिन जानकारी की कमी के कारण लोग इसे इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में ये भी देखा जाता है कि किसी घटना का ज्यादा तर लोग रिपोर्ट नहीं करते हैं। अपने बड़ों से बात नहीं करते हैं। मैं ऐसे लोगों से अपील करती हूं कि आप छोटी से छोटी चीजों को अपने परिवार वालों को बताएं और पुलिस में रिपोर्ट जरूर करवाएं।
छत्तीसगढ़ महिला मंच की सचिव शताब्दी पांडे ने कहा कि आज परिचर्चा का विषय संतुलन का समीकरण है यानी वर्तमान में समाज में संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। उन्होंने समाज और राजनीतिक पार्टियों पर तंज कसते हुए कहा कि हम सभी लोग किसी ऐसे प्रतिनिधि को विधानसभा और संसद भेज रहे हैं, जो एक अपराधी प्रवृति की है। इससे साफ जाहिर होता है कि इसमें पार्टी और जनता दोनों कसूरवार हैं। किसी ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया जाता है जो अपराधिक प्रवृति का है। ऐसे लोगों को जनता को नकारना पड़ेगा। जीतने के बाद पार्टी को यह पता चलता है कि इनका किसी प्रकार से महिलाओं या युवतियों के प्रति ऐसा कोई प्रकरण चल रहा है तो ऐसे लोगों की पार्टी से तुरंत बाहर का रास्ता दिखा देना चहिए। सभी राजनीतिक पार्टियों को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि ऐसे लोगों को टिकट न दें, इससे बहुत बदलाव आएगा।
फिजियोथैरेपिस्ट डॉक्टर नीतू वर्मा ने कहा कि हमारे देश में जिस प्रकार की घटनाएं हो रही है, इसमें कानून को और सख्त करना पड़ेगा ताकि अपराध करने वाले कोई भी बच ना पाए। उन्होंने कहा कि इस समाज में अगर 90 प्रतिशत लोग महिलाओं को स्वतंत्र काम करने या फिर घर से बाहर निकलने की इजाजत तो 10 प्रतिशत ऐसे पुरुष हैं जो आज भी इसके विरोध में खड़े होंगे। मेरा यह मानना है कि हम इन चीजों को बदलने का इंतजार ना करें बल्कि कुछ ऐसे कानून बनाए जाए जिससे इन चीजों को दूर किया जा सके। महिलाओं को 100 फीसदी निर्णय उनके हाथ में हो।
सेल्फ डिफेंस एक्सपर्ट हर्षा साहू ने कहा कि मैं इतने सालों से सेल्फ डिफेंस के क्षेत्र में काम कर रही हूं। इससे मैं यह अनुभव किया कि लड़कियों को सेल्फ डिफेंस सिखाना जरूरी है, लेकिन यह भी जरूरी है कि लड़कों को हम संस्कार दें। यह अपने घर से ही शुरू करना पड़ेगा। हमें अपने लड़कों को यह सिखाना पड़ेगा कि एक महिला या लड़कियों के साथ किस तरीके का व्यवहार करना है। लड़कों की मानसिकता या पुरुष मानसिक बदलने की बहुत जरूरत है। आज लड़की चाहे जितना भी आगे निकल जाए लेकिन उनके मानसिकता बदलने की जरूरत है। मैं बच्चियों को सेल्फ डिफेंस सिखाते वक्त ये सिखाती हूं कि आपके पास जो कुछ भी है विपत्ति के समय उसका एक हथियार के रूप में कैसे इस्तेमाल करें।
महिला एडवोकेट हेमल शर्मा ने कहा कि जमाना बदला है लेकिन लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। उन्होंने कहा अभी एक देखा जा रहा है कि इनरिलेशनशिप में लोग रहते हैं लेकिन कई बार ऐसा होता है कि युवतियां या महिलाएं अपने अधिकारों को मिसयूज करती हैं। मैं एक महिला अधिवक्ता होने के बाद भी यह पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रही हूं कि हमारे पास कई ऐसे कैस आते हैं जिसमें यह साफ दिखता है कि महिलाएं अपने अधिकार को मिसयूज कर रही है।
भारत सेवा फाउंडेशन के सहसंयोजक आरती दुबे ने बताया कि भारत सेवा फाउंडेशन ऐसे असहाय महिलाएं को लगातार मदद कर रही हैं। लेकिन जिस प्रकार से कोलकाता में डॉक्टर के साथ घटना हुई है इससे पूरे देश में लोग दहशत में हैं और आक्रोशित भी हैं। लेखक और गोल्डन बुक ऑफ़ वल्र्ड रिकॉर्ड सीजी हेड सोनल शर्मा ने कहा कि आज जरूरी है कि हमारे समाज में जिस प्रकार से बेटियों को संस्कार दिया जा रहा है वैसा ही बेटों को भी संस्कार देने की आवश्कता है। उन्होंने कहा कि हम तभी सभ्य समाज की कल्पना कर सकते हैं जब समाज में सभी की सोच बदलेगी।

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