सत्ता की अंधी दौड़: प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा यौन अपराध और समाज की जिम्मेदारी

प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा यौन अपराध और समाज की जिम्मेदारी

कर्नाटक के पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना को बलात्कार के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। यह फैसला बेंगलुरु की विशेष अदालत ने दिया, जहां रेवन्ना पर अपनी घरेलू सहायिका के साथ बलात्कार का आरोप सिद्ध हुआ। इस मामले में रेवन्ना को पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है, जो एक बार फिर सत्ता और प्रभाव के दुरुपयोग की कड़वी सच्चाई को उजागर करता है। प्रज्वल रेवन्ना, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते और पूर्व मंत्री एचडी रेवन्ना के बेटे होने के नाते, राजनीतिक रूप से एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन यह घटना पूछती है क्या प्रभावशाली और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय प्रतिष्ठित व्यक्ति अक्सर ऐसे घिनौने कृत्यों में लिप्त होते हैं? हां, इतिहास और वर्तमान की घटनाएं इसकी पुष्टि करती हैं।
सत्ता का मद अक्सर इंसान को अंधा बना देता है। प्रभावशाली लोग, चाहे वे राजनीतिज्ञ हों, धार्मिक गुरु, बॉलीवुड सितारे या कॉरपोरेट दिग्गज, यौन अपराधों में फंसते रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका रुतबा उन्हें कानून से ऊपर रखता है। इसके पीछे कारण कई हैं, सबसे पहले, शक्ति का असंतुलन। सत्ता में बैठे लोग खुद को हकदार समझते हैं और कमजोरों का शोषण करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पीडि़त की आवाज दबा दी जाएगी। दूसरा, सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड, जहां पितृसत्तात्मक समाज पुरुषों को महिलाओं पर हावी होने की छूट देता है। तीसरा, कानूनी प्रक्रिया की सुस्ती और प्रभावशाली लोगों की पहुंच जो गवाहों को प्रभावित करती है या मामलों को दबाती है। इसके अलावा नशीले पदार्थों का सेवन, बचपन की अनुभूतियां और हिंसा को सामान्य मानने की प्रवृत्ति भी ऐसे अपराधों को बढ़ावा देती है।
भारत में ऐसे कई चर्चित मामले हैं जो इस समस्या की गहराई दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, धार्मिक गुरु आसाराम बापू को नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में आजीवन कारावास की सजा मिली। इसी तरह डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को दो महिलाओं से बलात्कार के लिए 20 साल की सजा सुनाई गई। मीटू आंदोलन के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर कई महिलाओं ने यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाए, जिससे उनका राजनीतिक करियर प्रभावित हुआ। पत्रकार तरुण तेजपाल पर अपनी सहकर्मी से यौन उत्पीडऩ का आरोप लगा जो गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान हुआ। हाल ही में कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों ने छेड़छाड़ के आरोप लगाए, हालांकि मामला अभी अदालत में है। मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड में ब्रजेश ठाकुर को कई लड़कियों के यौन शोषण के लिए सजा मिली। ये मामले दिखाते हैं कि सत्ता का दुरुपयोग केवल राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि धर्म, मीडिया और खेल जगत में भी व्याप्त है।
अब सवाल यह है कि छेड़छाड़, बलात्कार और महिलाओं की प्रताडऩा पर कैसे रोक लगेगी? सबसे पहले कानूनी सुधार जरूरी हैं। फास्ट-ट्रैक अदालतों को मजबूत बनाना, जहां मामलों का निपटारा जल्दी हो, ताकि प्रभावशाली लोग बच न सकें। दूसरा, स्कूलों से ही बच्चों को लिंग समानता, सहमति और सम्मान सिखाना चाहिए। समाज में ‘रेप कल्चरÓ को चुनौती देनी होगी, जहां बलात्कार के चुटकुले या महिलाओं पर हिंसा को सामान्य माना जाता है। तीसरा पीडि़तों का समर्थन किया जाए। हेल्पलाइन, काउंसलिंग और कानूनी सहायता को मजबूत करना, ताकि वे बिना डर के आगे आएं। पुरुषों को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। दोस्तों के बीच गलत व्यवहार को रोकना और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करना। अंत में राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं में पारदर्शिता लानी होगी, जहां ऐसे आरोपों की जांच निष्पक्ष हो।
प्रज्वल रेवन्ना का मामला एक चेतावनी है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं। लेकिन जब तक समाज सामूहिक रूप से नहीं जागेगा, ऐसे अपराध जारी रहेंगे। समय आ गया है कि हम सत्ता को जवाबदेह बनाएं और महिलाओं को सुरक्षित समाज दें। यह न केवल न्याय की मांग है, बल्कि मानवता की भी।

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