-सुभाष मिश्र
मध्य प्रदेश से अलग होकर 1 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए छत्तीसगढ़ ने अपने 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक जनभावना की परिणति है, उन सपनों का उत्सव है जो कभी लोकगीतों, परंपराओं और जनचेतना में धड़कते थे। ‘अरपा पैरी के धार, महानदी के अपारÓ केवल गीत नहीं, बल्कि उस भूगोल, समाज और संस्कृति का प्रमाण है जिसने वर्षों पहले अपने भीतर एक अलग पहचान अंकित कर ली थी।
छत्तीसगढ़ के गठन के पीछे कोई हिंसक आंदोलन नहीं था। यह इस भूमि की विनम्रता, सहिष्णुता और धैर्य का प्रतीक है। यहां के लोग सरल हैं, मेहनती हैं, प्रकृति के निकट हैं। यही कारण है कि ‘छत्तीसगढिय़ा सबसे बढिय़ा केवल एक नारा नहीं, बल्कि इस प्रदेश की जीवंत आत्मा है। नरेन्द्र वर्मा, विनोद कुमार शुक्ल, स्वर्गीय लक्ष्मण मस्तूरिया, हरिहर वैष्णव और जीवन यदु जैसे साहित्यकार जब इस धरती की बोली लिखते हैं, तो उसमें मिट्टी की सोंधी खुशबू और श्रम की गरिमा दिखाई देती है।
राज्य गठन के शुरुआती दिनों में संसाधनों की भारी कमी थी, न अपनी विधानसभा, न मंत्रालय, न राजधानी का ढांचा। रायपुर के डीके अस्पताल में मंत्रालय, वाटरशेड संस्थान में विधानसभा, बिलासपुर में अस्थायी हाईकोर्ट और विभागों की तदर्थ व्यवस्थाएँ, इन सबने मिलकर एक नवोदित राज्य की संघर्षगाथा लिखी। लेकिन इसी संघर्ष में भविष्य का नक्शा भी तैयार हुआ। नया रायपुर (अटल नगर), आधुनिक हाईकोर्ट परिसर, नया विधानसभा भवन और संस्थागत ढांचे, इन 25 वर्षों में बियाबान से व्यवस्थित प्रशासनिक राजधानी तक का सफर असाधारण रहा।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पास एक स्पष्ट दृष्टि थी। वे छत्तीसगढ़ को देश के अग्रणी राज्यों में शामिल करना चाहते थे। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ विजन डाक्यूमेंटÓ तैयार किया, जो राज्य के दीर्घकालिक विकास का आधार बना। उनके बाद डॉ. रमन सिंह ने लगातार पंद्रह वर्षों तक मुख्यमंत्री रहते हुए विकास कार्यों को गति दी और स्थायित्व प्रदान किया। भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की अस्मिता को जगाया और जनता को अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाया। अब जनजातीय बहुल छत्तीसगढ़ को विष्णुदेव साय जैसे सहज, सरल और सुशासनकारी नेतृत्व में रजत जयंती मनाने का अवसर प्राप्त हुआ है।
राज्य के खाते में जहाँ अनेक उपलब्धियाँ दर्ज हैं, वहीं कुछ कलंक भी हैं। खनिज संपदा की लूट, निर्माण कार्यों में अनियमितताएँ, शराब नीति पर विवाद, पीएससी परीक्षा से लेकर भारतमाला प्रोजेक्ट तक अनेक मामलों ने प्रशासनिक छवि को धूमिल किया। परंतु आज का अवसर आलोचना का नहीं, आत्ममंथन और उपलब्धियों के मूल्यांकन का है।
खनिज संपदा, वन संसाधन, जल और मानव संसाधन की प्रचुरता ने छत्तीसगढ़ को देश के संसाधन-संपन्न राज्यों में स्थापित किया है। औद्योगिक विकास, ऊर्जा उत्पादन, कृषि आधारित नीतियाँ और लघु वनोपज केंद्रित अर्थव्यवस्था ने राज्य को राष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य में सशक्त बनाया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाली खरीद नीति, लघु वनोपज के समर्थन मूल्य और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों ने विकास को जनकल्याण से जोड़ा है।
छत्तीसगढ़ की असली पहचान उसकी संस्कृति में है। लोकसंगीत, पंथी नृत्य, ददरिया, चंदैनी, रामनामी परंपरा—ये सब उसकी सभ्यता के स्तंभ हैं। यह समाज सह-अस्तित्व का प्रतीक है—जहां आदिवासी विरासत, कृषक संस्कृति और शहरी परिवर्तन का संगम एक नई सामाजिक चेतना रचता है। इन 25 वर्षों में शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं की भागीदारी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हालांकि चुनौतियाँ भी बनी हुई हैं-स्वास्थ्य ढांचे के विस्तार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और रोजगार के अवसरों को लेकर अभी सतत प्रयासों की आवश्यकता है।
राज्य के ये 25 वर्ष राजनीतिक दृष्टि से भी परिपक्वता के प्रमाण हैं। सत्ता परिवर्तन की लोकतांत्रिक प्रक्रिया, शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण और विभिन्न नेतृत्वों के अंतर्गत विकास की निरंतरता ने छत्तीसगढ़ को स्थायित्व दिया है। यह लोकतंत्र के स्वस्थ अभ्यास का उदाहरण है। आज छत्तीसगढ़ ऊर्जा, कृषि, वनोपज आधारित अर्थव्यवस्था और सामाजिक कल्याण के मॉडल के रूप में देश में पहचाना जा रहा है। आने वाले समय में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तकनीकी निवेश और हरित विकास के क्षेत्रों में अधिक समन्वित और तीव्र प्रयासों की आवश्यकता होगी। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विकास की प्रक्रिया को और आगे बढ़ाना भी समान रूप से जरूरी है। विकास केवल अवसंरचना तक सीमित न रहे, बल्कि मानव विकास सूचकों में भी अग्रणी स्थान मिले, यह आने वाले वर्षों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
रजत जयंती का यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और नवसंकल्प का है। छत्तीसगढ़ ने विनम्रता के साथ शुरुआत की, धैर्य के साथ आगे बढ़ा और आज आत्मविश्वास के साथ भविष्य की ओर देख रहा है। यह केवल एक राज्य नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति, स्वाभिमान और संवेदना का प्रतीक है, जहां मिट्टी बोलती है, लोक गाता है और भविष्य आकार ले रहा है। आने वाले वर्षों में यही अपेक्षा है कि यह धरती विकास के साथ-साथ अपनी आत्मा—जनता की सरलता, संस्कृति की गरिमा और प्रकृति से जुड़ाव—को भी सहेजकर रखे। छत्तीसगढ़ के 25 वर्ष मुबारक, यह सफर और अधिक उज्ज्वल हो, और समृद्धि की धुनें आने वाली पीढिय़ों तक गूंजती रहें।