बदलता बस्तर : कितना आंतरिक कितना बाहरी !

(नक्सली हिंसा की आँच जंगल से शहर की ओर )

सुभाष मिश्र

पिछले कुछ समय से नक्सलवाद को लेकर शासन और प्रशासन को बहुत सफलताएँ मिलने की सूचनाएँ हैं। लेकिन नक्सलवाद के सफाये को लेकर प्रशासनिक घोषणाओं की अंतरकथाओं को भी समझना जरूरी होगा। नक्सलवाद के खात्मे को लेकर मीडिया में जो खबरें हैं, वह सामान्य जन और प्रशासन को बहुत आश्वस्त करती हैं और उम्मीदें जगाती हैं।
जैसे हाल ही में कांकेर से खबर थी-नक्सल मोर्चे पर सुरक्षा बल के जवानों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। कांकेर के छिंदखड़क के जंगल पहाड़ी क्षेत्र में रविवार को डीआरजी और बीएसएफ की संयुक्त कार्रवाई के दौरान मुठभेड़ में एक महिला और 2 पुरुष नक्सली मारे गए हैं। इन नक्सलियों पर 14 लाख रुपए का इनाम घोषित है। घटनास्थल से भारी मात्रा में हथियार और अन्य नक्सली सामग्री भी बरामद की गई है। जानकारी के मुताबिक रविवार को मध्य जंगल में चलाए गए सर्चिग अभियान के दौरान सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच गोलीबारी हुई। मुठभेड़ के बाद तलाशी के दौरान घटनास्थल से तीन नक्सलियों के शव और भारी मात्रा में राइफल और विस्फोटक बरामद हुआ। पुलिस प्रशासन ने अभियान की सफलता की जानकारी दी और कहा कि माओवादी कैडरों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर दिया जा रहा है।
आईजी बस्तर रेंज सुंदरराज पी ने कहा कि नक्सली यथार्थ स्वीकार करें कि नक्सलवाद समाप्ति के कगार पर है। हिंसा का मार्ग त्याग कर पुनर्वास नीति का लाभ उठाते हुए मुख्यधारा से जुड़े। यह कोई इकलौती घटना नहीं है। पूरे बस्तर में नक्सल मूवमेंट के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। अनेक नक्सली मारे गए हैं और छोटे-बड़े अनेक नक्सलियों ने समर्पण किया है। लेकिन नक्सलवादी जिस आसानी से समर्पण कर रहे हैं, शासन-प्रशासन को इसे सफलता की मुग्धावस्था से बाहर आकर सोचना पड़ेगा। क्योंकि नक्सलवादियों के लिए मुठभेड़ में मृत्यु का भय कोई बहुत बड़ा नहीं है। वे काफी हद तक मृत्यु के भय से बाहर होते हैं। डकैत को मृत्यु का भय होता है। वे जीवन में घटित छोटी सी घटना से बदले पर उतारू होकर डकैत बनते हैं। लेकिन नक्सलवादी विचारधारा से गहरे तक जुडऩे के बाद इसमें शामिल होते हैं। इसलिए नक्सलियों के इस आसन समर्पण को बड़ी उपलब्धि समझकर खुश होने पर पुनर्विचार जरूरी है। समर्पण के बाद नक्सलवादियों की क्या गतिविधियां हैं! समर्पण के बाद का जीवन क्या है? वे अब कहां और किस तरह जीवन बिता रहे हैं-इसका बहुत सारा हिस्सा अलक्षित और अज्ञात के परदे में है। इस बात की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ गई है कि जंगलों से निकलकर नक्सली अब शहर में गतिविधियां बढ़ा सकते हैं। जंगल में उन्हें खोजने जितना कठिन था, एक बड़े शहर की विशाल भीड़ में नक्सली जो सामान्य काम करता हुआ आम आदमी की तरह रहता हो उसे खोजना भी उतना ही मुश्किल है। ऐसा तो नहीं कि अर्बन नक्सल का राजनीतिक जुमला नक्सलियों ने यथार्थ जीवन में अपना लिया हो! और यह बात कोई कोरी कल्पना या सिर्फ संभावना भर नहीं है। इसकी शुरुआत की आहट इन खबरों में देखी जा सकती है!
हाल ही में खबर आई थी कि राज्य अन्वेषण अभिकरण (एसआईए) ने भाठागांव बस स्टैण्ड से रामा हिंचाम पिता मंगू हिंचाम को गिरफ्तार 10 तोला सोने का एक बिस्किट, 81000 नकद और एक मोबाइल जब्त किया गया है। साथ ही पूछताछ करने के बाद एनआईए के बिलासपुर स्थित कोर्ट में पेश करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया है। पकड़ा गया नक्सली बीजापुर जिले के मिरतुर थाना क्षेत्र के ग्राम उर्रपाल का रहने वाला है। बीजापुर एरिया कमेटी सदस्य रामा नक्सलियों के शहरी नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। वह पिछले काफी समय से डीडीनगर थाना क्षेत्र में रहता था। कोरबा में एसईसीएल में काम करने और कोल कर्मचारी संगठन का लीडर भी बताया जाता है। इस इनपुट को जांच के दायरे में लेते हुए उसके करीबी लोगों से पूछताछ की जा रही है। बताया जाता है कि रामा किचाम चंगोराभाठा से पकड़े गए नक्सली दंपति जग्गू कुरसम उर्फ रवि उर्फ रमेश उसकी पत्नी कमला के घर पर आनाजाना था। जग्गू से मिली जानकारी के आधार पर उसे पकड़ा गया है। इसकी जांच के दौरान दो अन्य आरोपियों का सुराग मिलने पर उसके चंगोराभाठा स्थित घर से हिरासत में लिया गया है। गिरफ्तार नक्सली रामा किचाम, जग्गू कुरसम उर्फ रवि उर्फ रमेश और उसकी पत्नी कमला के संपर्क में दर्जनों नक्सलियों के संबंध में जानकारी मिली है। इसे देखते हुए किसी भी तरह का खुलासा नहीं किया जा रहा है। उक्त सभी के शहरी नेटवर्क से जुड़े होने का इनपुट मिला है। उक्त सभी को शहरी क्षेत्र की जानकारी जुटाने के साथ ही संगठन से जुड़े लोगों को सुरक्षित ठिकाना दिलाने की जिम्मेदारी दी गई थी। साथ ही पहचान छिपाकर काम दिलाने भी कहा गया था। रामा किचाम द्वारा ही जग्गू और उसकी पत्नी कमला का फर्जी आधार कॉर्ड बनाने में मदद करना बताया गया है।
हालांकि एसआईए की ओर से अधिकृत रूप से इसकी पुष्टि नहीं की गई है।
बस्तर में फोर्स का दबाव काफी बढ़ा है। ऐसे में मिशन 2026 के परिणाम में नक्सलियों ने अब शहरों को शरण स्थली बनाने के साथ ही आगे की योजना में भी शामिल करना शुरू किया है। इसके लिए वे जंगल छोड़कर शहरों का रुख कर रहे हैं। देशभर में ऐसे करीब 20 बड़े महानगर हैं, जो अब नक्सल नेटवर्क के नए ठिकाने बनते जा रहे हैं।
नक्सली विरोध अभियान में हाल ही के दिनों में फोर्स ने 300 से ज्यादा नक्सलियों ढेर किया है। इनमें 4 से ज्यादा सेंट्रल कमेटी मेंबर (सीसीएम) भी शामिल हैं। सरकार के मिशन 2026 को देखते हुए पहले चरण में नक्सलियों के बड़े नेता अंडरग्राउंड हो गए या बस्तर छोड़ दिया है। अब दूसरे चरण में नक्सलियों के खाने-पीने का इंतजाम, उन्हें फोर्स के आने की सूचना देने और रोड़ खोदकर आईईडी प्लांट और सड़क जाम करने में मदद करने वाले सदस्य भी बस्तर छोड़ रहे हैं। ऐसे हजारों नक्सली सदस्यों के बस्तर छोडऩे की सूचना है। एक जानकारी के अनुसार, बस्तर से निकलकर ये नक्सली अब गोवा, कर्नाटक, बैंगलूरु, मुंबई, कोलकात्ता, जम्मू व श्रीनगर, पूणे, हैदराबाद, दिल्ली, लुधियाना और मप्र के अलग-अलग शहरों समेत देश के 20 से ज्यादा महानगरों में मजदूर, पेंटर, कारपेंटर जैसे काम में लगे हुए हैं। यह ऐसे कामकाज में लगे हुए हैं, जहां उनकी आसानी से पहचान नहीं हो सकती है । खबरें यह भी हैं कि स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एसआईए) ने कथित अर्बन नक्सलियों की तलाश में बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़ और भिलाई में छापेमारी की है। इसमें दो नक्सलियों को हिरासत में लिया गया है। इनमें एक डीवीसी मेंबर और दूसरा एसीएम है। दोनों अलग-अलग शहरों में रहकर नक्सली संगठन के लिए काम कर रहे थे। दोनों से रायपुर में पूछताछ की जा रही है। नक्सली रामा कोरबा के रेलवे स्टेशन के पास सब्जी बेचता था, रायपुर में किराए का मकान लेकर रहता था ।
दरअसल विचारहीन और उद्देश्यविहीन अपराध को खत्म करना अपेक्षाकृत आसान है, एक विचारधारा के साथ आगे चल रहे संगठन की हिंसक गतिविधियों को खत्म करना। विचारधाराएँ विरासत की तरह आगे बढ़ती हैं। अपराध विरासत की तरह आगे नहीं बढ़ता है। इस अंतरसंबंध को समझे बगैर नक्सलवाद के फैलाव को समझना भी आसान नहीं है। विचारधारा में उद्देश्य की पवित्रता को सामने प्रस्तुत करके व्यक्ति को संगठन से जोड़ते हैं। अपराधिक संगठन में व्यक्ति पैसों के लालच, छोटी-मोटी बदले की इच्छाएं और पावर के फिल्मी आकर्षण में आता है। जबकि नक्सलवाद का मसला इससे बिलकुल भिन्न है। बस्तर से नक्सलवाद खत्म हो रहा है ,राजनीतिक बस्ती इसकी सफलता का उत्सव मनाती है तो समझ में आता है लेकिन प्रशासन और विशेष कर आमजन को गंभीरता से सोचना होगा कि चीजें और स्थितियां इतनी आसान नहीं, जैसी नजर आ रही हैं।
यदि नक्सलवाद शहर में फैलता है या अपनी जड़ें जमा लेता है तो शासन और प्रशासन के लिए और बड़ी चुनौतियां सामने आएंगी। कई दशकों का यह नक्सली आंदोलन इतनी जल्दी खत्म हो जाएगा ,इसके अंतरसूत्र और गहरे विश्लेषण के बगैर आगामी योजनाएं बनाना कठिन है।

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