मनोरंजन की दुनिया में ओवर-द-टॉप (ओटीटी) के आगमन से एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। उसकी बढ़ती लोकप्रियता से टेलीविजऩ दर्शकों का रुझान बदल गया। साथ ही मनोरंजन की अवधारणा भी बदल गयी। घर बैठे उपभोक्ता सामग्री की डिलीवरी के युग में घर बैठे मनोरंजन की सहूलियत हासिल करना ही काफ़ी नहीं था। मनचाही सामग्री की मनचाहे प्लेटफ़ॉम्र्स पर उपलब्धता ने दर्शकों की स्वतंत्रता को एक ऐसे स्तर पर पहुँचा दिया जहाँ वह निर्बाध होकर प्रसारित सामग्री का उपभोग कर सकता था।
एक तरफ़ प्रसारक को अभिव्यक्ति की निर्बाध स्वतंत्रता का लाभ मिला, दूसरी तरफ़ दर्शक को उपभोग की निर्बाध स्वतंत्रता का अधिकार। नतीजा यह हुआ कि प्रसारण योग्य सामग्री के निर्माण में नैतिक-अनैतिक, अश्लील और सामाजिक-असामाजिक की सीमारेखा मिटने लगी। पूरी तरह उपभोक्ता में तब्दील हो चुके दर्शकों की उपभोग-लिप्सा को संतुष्ट करने की दृष्टि से यह सरल उपाय था कि नैतिक और मर्यादित सामग्री की बजाय इन्द्रिय-तुष्टि के लक्ष्य को साध लेने वाली अधिकाधिक सामग्री निर्मित की जाए। इस मामले में बढ़ती अराजकता के मद्देनजऱ किसी हद तक अनुशासन पैदा करना आवश्यक भी था। लेकिन स्व-नियमन (सेल्फ़ रेगुलेशन) की दलील के साथ ओटीटी सामग्री के निर्माण को लेकर सरकार की प्रोत्साहन नीति जारी रही। अब जाकर ओटीटी पर नियंत्रण और उसकी निगरानी की आवश्यकता वैश्विक स्तर पर महसूस की जा रही है तथा व्यापक रूप से यह चर्चा का विषय बन चुकी है। भारत में केंद्र सरकार ने हाल ही में अश्लील सामग्री के प्रसारण को लेकर 18 ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स, ऐप्स और यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगाया है। इसके साथ ही सरकार ओटीटी कंटेंट पर निगरानी के लिए एक तंत्र स्थापित करने पर विचार कर रही है। यह सवाल यह भी है कि ओटीटी कंटेंट की निगरानी की जाये या फिर बच्चों को इससे दूर रहने कहा जाये, उनकी निगरानी की जाये। यह मामला बहुत बार अभिव्यक्ति की आजादी बनाम नियंत्रण का भी आता है।
ओवर-द-टॉप प्लेटफ़ॉम्र्स मनोरंजन की दुनिया में क्रांति लाए हैं। भारत में नेटफ्लिक्स,अमेज़ॉन प्राइम, डिज़्नी+हॉटस्टार जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स बड़ी स्क्रीन से अधिक लोकप्रिय हो चुके हैं लेकिन इनके ज़रिए बच्चों और किशोरों तक एडल्ट या अश्लील कंटेंट पहुँचने का खतरा लगातार चिंता का विषय है। हाल ही में सरकार ने कुछ एप्स और चैनलों पर प्रतिबंध लगाकर संकेत दिया है कि
अब केवल सेल्फ-रेगुलेशन से काम नहीं चलेगा। मूल प्रश्न यह है कि क्या सेंसरशिप ही समाधान है? सेंसरशिप रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट कर सकती है। वहीं, पूरी तरह से आज़ादी देना नाबालिगों के लिए हानिकारक है। समाधान एक संतुलित दृष्टिकोण में है—तकनीक आधारित उम्र-प्रमाणन प्रणाली, अनिवार्य पैरेंटल कंट्रोल और प्लेटफ़ॉम्र्स की जवाबदेही बढ़ाना। साथ ही, सरकार को केवल प्रतिबंध नहीं बल्कि डिजिटल साक्षरता और अभिभावकीय जागरूकता पर भी बल देना होगा।
ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स की निगरानी का मक़सद कला और अभिव्यक्ति को कुचलना नहीं बल्कि समाज और विशेषकर बच्चों को सुरक्षित रखना होना चाहिए। इसलिए ज़रूरत है सहज नियमन की न कि कठोर सेंसरशिप की। इसको लेकर अब पूरी दुनिया में चर्चा शुरू हो चुकी है। यह समस्या अब स्थानीय या पारिवारिक न होकर ग्लोबल हो गई है। बाजार ओटीटी या कहें मनोरंजन या कहें जागरूकता के नाम पर आपके घर में पैठ कर चुका है। यह घर कहीं का किसी का और किसी भी देश के शहर गांव का हो सकता है।
विभिन्न देशों में ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स की सामग्री पर निगरानी के लिए विविध प्रणालियाँ अपनायी गयी हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स को मुख्यत: स्व-नियमन के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन किसी हद तक यह कार्य करता है और कुछ नियमों का पालन सुनिश्चित करता है, लेकिन अधिकांश सामग्री की निगरानी प्लेटफ़ॉम्र्स की अपनी जिम्मेदारी होती है। यदि सामाजिक नैतिकता के आधार पर स्व-नियमन की प्रणाली सुचारु रूप से काम करती है तो यह एक आदर्श स्थिति है। लेकिन मुनाफ़े की पूंजीवादी हवस के चलते यदि नैतिक मानदंडों का उल्लंघन होने लग जाये तो किसी बाह्य एजेंसी के नियत्रण की आवश्यकता अनिवार्य हो उठती है। कुछ सरकारें, जैसे की ब्रिटेन में, ओटीटी प्लेटफ़ाम्र्स की सामग्री पर निगरानी रखती है और निर्धारित मानकों का पालन सुनिश्चित करती है। ऑस्ट्रेलिया में भी ऑस्ट्रेलियन कम्युनिकेशन एंड मीडिया अथॉरिटी ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स की सामग्री की निगरानी करता है और सुनिश्चित करता है कि वे स्थानीय नियमों का पालन करें।
लेकिन प्रश्न यह है कि क्या ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स पर नियंत्रण और सेंसरशिप आवश्यक है? क्या यह अभिव्यक्ति और सृजन की स्वतंत्रता की दृष्टि से अवांछनीय प्रतीत नहीं होता? इस तथ्य पर भी गौर किया जाना चाहिए कि संवाद और संचार की वैश्विक वास्तविकता को देखते हुए जहाँ पूरी दुनिया में प्रसारकों द्वारा विपुल मात्रा में सामग्री का उत्पादन हो रहा हो उस पर किस तरह से नियंत्रण सम्भव है। उसके औचित्य की आवश्यकता और सेंसरशिप की उपादेयता को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण है। कुछ विशेषज्ञ सेंसरशिप के पक्ष में हैं तो कुछ विरोध में। सेंसरशिप की वकालत करने वाले कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चों और किशोरों को हानिकारक सामग्री से बचाने और समाज में नैतिकता और मर्यादा बचाये रखने की दृष्टि से ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स पर सेंसरशिप आवश्यक है। इसके विरोधियों का मुख्य तर्क यह है कि सेंसरशिप रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाती है। वे मानते हैं कि दर्शकों को अपनी पसंद के अनुसार सामग्री चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
भारत में फिलहाल ओटीटी सामग्री की निगरानी के लिए स्व-नियमन प्रणाली लागू है, जिसमें प्लेटफ़ॉमर्् को अपनी सामग्री की समीक्षा और वर्गीकरण करना होता है। अब माना जा रहा है कि यह प्रणाली पूरी तरह से प्रभावी नहीं है और इसमें सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक पहल की जानी चाहिए। एक सुझाव यह है कि स्व-नियमन तंत्र को मजबूत करने की ज़रूरत है। इसके तहत ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स को अपनी सामग्री की समीक्षा और वर्गीकरण के लिए अधिक जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए । ओटीटी सामग्री को उम्र-आधारित प्रमाणन के आधार पर वर्गीकृत किया जाना चाहिए। इसके लिए सभी प्रकार की सामग्री के लिए स्पष्ट आयु आधारित रेटिंग प्रदान करना होगा ताकि दर्शक अपनी पसंद के अनुसार सामग्री चुन सकें। दूसरा, ऐसी सामग्री पर अभिभावकीय नियंत्रण का एक तंत्र भी स्थापित किया जाना चाहिए। तीसरा यह कि सरकार और संबंधित प्राधिकरणों द्वारा नियमित निगरानी हो और निर्धारित मानदंडों के उल्लंघन के मामलों में उचित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। इस प्रकार, ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स की सामग्री की निगरानी और नियंत्रण के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। इससे रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए समाज की नैतिकता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
सरकार ने किसी सुचिंतित और सुदृढ़ नियमन व्यवस्था लागू करने के बजाय ड्रीम्स फिल्म, न्योन एक्स वीआईपी, मूड एक्स, हंटर, रैबिट, प्राइम प्ले आदि 18 ओटीटी प्लेटफार्म को प्रतिबंधित कर दिया। इसके साथ फेसबुक से 12 अकाउंट, इंस्टाग्राम से 17, ट्वीटर (एक्स) से 16 और यूट्यूब से 12 अकाउंट हटाए गए हैं। यह फैसला केन्द्र सरकार के अन्य मंत्रालयों/विभागों और मीडिया और मनोरंजन, महिला अधिकारों और बाल अधिकारों
में विशेषज्ञता वाले डोमेन विशेषज्ञों के परामर्श से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के तहत लिया गया है। इसमें संदेह नहीं कि ओटीटी प्लेटफ़ॉम्र्स पर अपलोड की गई सामग्री का एक बड़ा हिस्सा आपत्तिजनक, अशिष्ट और नैतिक रूप से वर्जनीय है। उनमें महिलाओं को अपमानजनक तरीके से चित्रित किया गया है। इसमें नग्नता और यौन चित्रण है जो किसी भी नैतिक मानदंड पर स्वीकार्य नहीं हैं, ख़ासतौर पर बच्चों पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों की दृष्टि से। महत्वपूर्ण है कि ओटीटी दर्शकों की संख्या करोड़ों में है जिनमें बच्चों सहित सभी उम्र के लोग शामिल हैं।
सरकार की नीति ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी बढ़ावा देने की है। भारत सरकार ने इस दिशा में अपनी प्रतिबद्धता को समय-समय पर व्यक्त भी किया है। इस संबंध में कई उपाय किए गए हैं, जिनमें 54वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में वेब सीरीज के लिए उद्घाटन ओटीटी पुरस्कार की शुरुआत, मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र में ओटीटी प्लेटफार्मों के साथ सहयोग और हल्के स्पर्श नियामक ढांचे की स्थापना शामिल है, के तहत स्व-नियमन पर जोर दिया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय बैठकों, वेबिनार, कार्यशालाओं आदि के माध्यम से आईटी नियम, 2021 के तहत स्थापित ओटीटी प्लेटफार्मों और उनके स्व-नियामक निकायों के साथ लगातार संवाद कर उनमें सजगता विकसित करने का प्रयास करता है। लेकिन स्व-नियमन की प्रणाली विकसित करने के बजाय ओटीटी चैनलों और ऐप्स पर पाबंदी लगाना पर्याप्त नहीं है। इससे मूल समस्या ज्यों कीत्यों बनी रहेगी। सामाजिक नैतिकता, मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य, सामाजिक सौहार्द्र, सदाशयता और समरसता की दृष्टि से स्व-नियमन के कतिपय अनिवार्य मानदंडों और स्व-नियमन के लिए प्रणाली क़ायम करना अधिक कारगर हो सकता है।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सामाजिक सौहार्द्र को बिगाडऩे वाली, किसी समुदाय विशेष के खि़लाफ़ वैमनस्य से भरी सामग्री को दलगत राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।