हाल ही में सम्पन्न लोकसभा सत्र ने भारतीय राजनीति को एक बार फिर गरमाया। इस सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयक और संवैधानिक संशोधन पारित हुए, लेकिन गतिरोध, बहिर्गमन और अव्यवस्था ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कमियों को भी उजागर किया। पूरा सत्र शोर-शराबे और बहिर्गमन के लिए ज्यादा चर्चा में रहा।
लोकसभा के इस सत्र में कुल 15 विधेयक पारित हुए जिनमें से कुछ प्रमुख हैं महिला आरक्षण विधेयक- यह विधेयक संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें सुरक्षित करने का प्रावधान करता है। इसे ऐतिहासिक कदम बताया गया। हालांकि इसके क्रियान्वयन को लेकर प्रश्न उठे।
डिजिटल इंडिया एवं ऑनलाइन गेमिंग नियमन विधेयक- यह विधेयक साइबर सुरक्षा, डेटा प्राइवेसी और ऑनलाइन गेमिंग पर नियंत्रण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। विपक्ष ने निजता के अधिकार और नियमों की कठोरता पर सवाल उठाए।
स्वास्थ्य सेवा सुधार विधेयक- यह विधेयक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच सुधारने के उद्देश्य से लाया गया। सरकार ने इसे महामारी से मिली सीख पर आधारित बताया।
संविधान संशोधन-एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन पारित हुआ, जिसे सरकार ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कदम बताया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह संशोधन राजनीतिक लाभ के लिए जल्दबाज़ी में लाया गया।
लोकसभा सत्र के दौरान कई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएँ भी हुईं जिनमें महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर विपक्ष ने बार-बार बहिर्गमन किया, जिससे बहस का बड़ा हिस्सा अधूरा रह गया। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे ने राजनीति में हलचल पैदा की और नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया पर चर्चा हुई। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विशेष अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूरÓ को संसद में प्रस्तुत किया। विपक्ष ने पारदर्शिता और सैन्य अभियानों की जानकारी सार्वजनिक करने को लेकर सवाल उठाए। निर्वाचन आयोग की पहल को लेकर संसद में बहस हुई, जिसमें मतदाता सूचियों की पारदर्शिता और फर्जी नामों को हटाने पर जोर दिया गया।
इस सत्र में कई कमियां भी रहीं। 15 विधेयक और एक संविधान संशोधन के बावजूद पर्याप्त बहस का अभाव रहा। महंगाई, किसानों की स्थिति और बेरोजगारी जैसे मूल मुद्दों को पर्याप्त समय नहीं मिला। बहिर्गमन और गतिरोध ने लोकतांत्रिक विमर्श को कमजोर किया। लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद सत्र से अपेक्षित जनसरोकार उभरकर नहीं आए।
यह सत्र विधायी दृष्टि से उत्पादक रहा, लेकिन संवाद और लोकतांत्रिक विमर्श की कसौटी पर अधूरा रहा। महिला आरक्षण, ऑनलाइन गेमिंग नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवा सुधार और ‘ऑपरेशन सिंदूरÓ जैसे मुद्दे इसमें दजऱ् हुए, लेकिन बार-बार के गतिरोध ने इसकी गंभीरता को कम कर दिया। आगामी सत्रों में आवश्यकता होगी कि सरकार और विपक्ष मिलकर जनहित मुद्दों पर अधिक समय दें। यही लोकतंत्र की परिपक्वता और जनता के विश्वास का आधार बन सकता है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए संवाद और सहयोग की आवश्यकता है, ताकि जनता के मुद्दों को प्राथमिकता दी जा सके।
शोर-शराबे का लोकसभा सत्र

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