तिरंगा रैली: राष्ट्रभक्ति का उत्सव या राजनीतिक एजेंडा?

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस साल भी ‘हर घर तिरंगा अभियान और तिरंगा रैलियों का आयोजन पूरे देश में जोर-शोर से हो रहा है। 1 से 15 अगस्त 2025 तक चलने वाला यह अभियान नागरिकों को घर-घर राष्ट्रीय ध्वज फहराने और राष्ट्र प्रेम जागृत करने के लिए प्रेरित करता है। स्कूलों में प्रतियोगिताएं, साइकिल रैलियां, बाइक रैलियां और स्वच्छता अभियान से जुड़ी गतिविधियां इसकी मुख्य विशेषताएं हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और किरेन रिजिजू ने ‘हर घर तिरंगा बाइक रैली को हरी झंडी दिखाई जबकि जम्मू-कश्मीर के शोपियां में स्थानीय लोगों ने तिरंगा रैली निकाली। मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में भी सरकारी विभागों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ताओं ने रैलियां आयोजित की, जहां स्वच्छ भारत मिशन से जोड़कर ‘हर घर तिरंगा, हर घर स्वच्छता का संदेश दिया गया।
इस अभियान की महत्ता असंदिग्ध है। यह न केवल राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति को मजबूत करता है, बल्कि युवाओं में फिटनेस, स्वास्थ्य और पर्यावरण जागरूकता भी बढ़ाता है। फिट इंडिया संडे के 25वें संस्करण में तिरंगा रैली को जवानों के बलिदान से जोड़ा गया। सामयिकता के लिहाज से स्वतंत्रता दिवस के आसपास यह अभियान देशवासियों को आजादी के मूल्यों की याद दिलाता है। खासकर, जब वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति मजबूत हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया वारसॉ दौरा और रूस-भारत संबंधों पर चर्चा इसका उदाहरण है तब तिरंगा रैली राष्ट्रीय गौरव को और बढ़ाती है। छत्तीसगढ़ में भी जहां मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने स्वच्छता संगम-2025 के साथ तिरंगा रैली को जोड़ा, यह अभियान स्थानीय स्तर पर सामाजिक जागरूकता और एकता का प्रतीक बन गया है।
हालांकि, विपक्षी दलों के इस अभियान से दूरी सवाल उठाती है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल इस तरह के आयोजनों में सक्रिय भागीदारी से बचते दिखते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि वे ‘हर घर तिरंगाÓ को भाजपा के राजनीतिक एजेंडे के रूप में देखते हैं। यह अभियान, जो 2022 में आजादी का अमृत महोत्सव के तहत शुरू हुआ, केंद्र सरकार और भाजपा के नेतृत्व में बड़े स्तर पर प्रचारित होता है। विपक्ष को लगता है कि यह उनकी वैचारिक स्थिति को कमजोर कर सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां वे सत्ता में हैं या जहां सामाजिक-धार्मिक मुद्दों पर मतभेद है। उदाहरण के लिए कुछ विपक्षी नेताओं ने इसे ‘भाजपा का प्रचार तंत्रÓ करार दिया है, यह दावा करते हुए कि राष्ट्रीय ध्वज को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
क्या तिरंगा रैली वाकई में राष्ट्रभक्ति से ज्यादा भाजपा का एजेंडा है? इस सवाल का जवाब इतना सरल नहीं। एक ओर तिरंगा रैली का मूल उद्देश्य देशवासियों को एकजुट करना है जो कि किसी भी राजनीतिक दल से ऊपर होना चाहिए। तिरंगा हर भारतीय का प्रतीक है, न कि किसी एक पार्टी का। दूसरी ओर जिस तरह यह अभियान भाजपा शासित राज्यों और केंद्र सरकार के मंत्रियों द्वारा प्रचारित होता है, उससे विपक्ष का संशय स्वाभाविक लगता है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के साथ तिरंगा रैली को जोड़कर भाजपा ने इसे अपनी उपलब्धियों से जोड़ा। ऐसे में विपक्ष की अनुपस्थिति को उनकी रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है ताकि वे इस अभियान को भाजपा का ‘वोट जुटाने का हथकंडा’ करार दे सकें।
लेकिन यह दूरी देश के लिए कितनी सही है? विपक्ष का यह रवैया न केवल राष्ट्रीय एकता के संदेश को कमजोर करता है, बल्कि उनके अपने समर्थकों को भी भ्रमित करता है। तिरंगा रैली में भाग न लेकर वे शायद अपनी वैचारिक लड़ाई को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इससे उनकी छवि ऐसी बनती है जैसे वे राष्ट्रीय प्रतीकों से दूरी बना रहे हों। दूसरी ओर भाजपा को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि तिरंगा रैली का आयोजन सच्चे अर्थों में समावेशी हो न कि सिर्फ उनकी पार्टी की उपलब्धियों का मंच।
अंतत: तिरंगा रैली का मकसद हर भारतीय को एकजुट करना है। यह समय है कि सभी दल सत्तापक्ष और विपक्ष इसे राजनीति से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय उत्सव के रूप में अपनाएं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य जहां सामाजिक और धार्मिक विवाद पहले से ही चुनौती बने हुए हैं, वहां तिरंगा रैली सामाजिक सद्भाव और एकता का प्रतीक बन सकती है। आइए, तिरंगे को सिर्फ एक झंडा न समझें, बल्कि इसे उस गौरव का प्रतीक बनाएं जो हर भारतीय के दिल में बसता है।

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