Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – मोबाइल बना जी का जंजाल

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

पहले कहा जाता था कि ऊपरवाला सब देख रहा है। ईश्वर से कुछ नहीं छिपा है। तुम्हारे अच्छे बुरे कामों का एक दिन हिसाब होगा। लोगों ने देखा कि ईश्वर का गणित गड़बड़ाया हुआ है। इसकी आंखें ठीक से नहीं देख रही है। चोर, मक्कार, शोषण करने वाले अत्याचारी मजे कर रहे हैं, मेहनतकश पीस रहा है। टेक्नालॉजी के साथ चीजें बदली। अब जगह-जगह लिखा होता है कि आप कैमरे की निगरानी में है। यह सही भी है कि टेक्नॉलाजी ने हमारी सारी निजता लगभग छीन ली है। हमारे हाथ का मोबाईल हमारी लोकेशन, पसंद न पसंद के साथ हमारी सारी गोपनीय जानकारी भी इकट्ठा करता है और जानकार लोग इसका फायदा भी उठाते हैं। हम जो कुछ भी सर्च करते हैं, मोबाईल पर बोलते हैं, थोड़ी बात उसी से संबंधित नोटिफिकेशन आने लगते हैं। ये एआई यानी आर्टिफिशियल इन्टेलीजेंस का समय है। असल और नकल में फर्क मुश्किल है। आपकी आवाज आपकी छबि लूटने के काम आ रही है।

अब यह मोबाइल सरकारी क्षेत्र में ऑफि़शियल व्हाट्सअप ग्रुप के जरिए सीनियर आफिसर कंपनी के मालिक के लिए मीटिंग और मानिटरिंग का अड्डा बन गया है। उत्तर प्रदेश के 800 जीएसटी आफिसर्स ने ऑफि़शियल ग्रुप छोड़ते हुए कहा है कि उससे तनावपूर्ण माहौल बन गया है, एक अधिकारी ने सुसाईड कर लिया। मोबाईल, लैपटॉप, टेबलेट और कम्प्यूटर पर अब जूम मीटिंग के जरिए किसी भी समय कोई भी मीटिंग की जा सकती है, वर्कशॉप से लेकर कोचिंग क्लास जिसे ऑनलाईन एजुकेशन कहा जाता है या स्वास्थ्य से लेकर सेक्स संबंधी समझाईश दी जा सकती है। यूटय़ूब के जरिए अब महिलाओं की रसोई का स्वाद, डिश भी तेजी से बदली है। टेक्नालॉजी ने मनुष्य को बदल दिया है अब वह धीरे-धीरे टेक्नालॉजी का गुलाम बन गया है।

Related News

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के जीएसटी के 800 अफिसर्स का डिपार्टमेंट का आफिशियल व्हाट्सअप ग्रुप छोड़ दिया। ग्रुप से लेफ्ट करने वालों में 100 से अधिक आफिसर्स गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) के थे। नोएडा के एक डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह ने आफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप पर निर्मित काम के दबाव और उच्च अधिकारियों के निर्देशों के चलते तनावपूर्ण स्थिति में सुसाइड किया। ग्रुप छोडऩे वाले अधिकारियों का कहना है कि वरिष्ठ अधिकारी किसी भी समय ग्रुप मीटिंग रख लेते है। व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए 24 घंटे छुट्टी के दिन भी काम किया जाता है। यदि टारगेट और काम पूरा नहीं हो और निर्देशों का पालन नहीं हो तो दबाव बनाया जाता है, आफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप की वजह से पूरे डिपार्टमेंट में तनावपूर्ण माहौल बना है।

देश के वरिष्ठ कवि, लेखक विनोद कुमार शुक्ल के घर में जब भी जाता और मेरा मोबाईल बजता या मैसेज का नोटिफिकेशन आता जिससे बातचीत में व्यवधान होता तो वे अक्सर कहते सुभाष जी आप अपना दफ्तर बाहर छोड़कर आया कीजिए। मैं अपने बहुत से साथी अधिकारियों को जानता हूं, जो 24 घंटे अपने मोबाइल के कारण अपने वरिष्ठ अधिकारियों की गिरफ्त में रहते हंै और परिवार के लोगों को लगता है कि हमारे लिए तो इनके पास समय ही नहीं है। बहुत सारी औरतों ने मोबाईल को सौतन नाम दे रखा है। विभाग कंपनी के व्हाट्सअप ग्रुप पर आने वाली सूचना के लिए उनकी नजर बाज की रहे और वे तुरंत रिप्लाई करें यह उम्मीद उनका बॉस उनसे करता है। यदि खुदा न खास्ता आप मैसेज देखना भूल गये, आपने जवाब नहीं दिया तो फिर आपकी खैर नहीं।

वर्चुअल तरीके से सम्पर्क करने के जितने भी माध्यम टेक्नालॉजी हैं, उसने समूची मानव सभ्यता के इतिहास में जो क्रांति लाई है वैसी क्रांति न तो आग से, न चक्के, से ना इंजन के अविष्कार से आई थी। अब तक की ‘गति संबंधी सारी खोज का पीछे छोड़कर इंटरनेट कनेक्टीविटी के चलते सही मायने में हम अब ‘ग्लोबल विलेज में रह रहे हैं। जहां कभी भी कहीं भी हम वर्चुअल रूप से किसी से भी कनेक्ट हो सकते हैं बशर्ते कि वहां नेटवर्क हो। जिसका जितना बड़ा नेटवर्क उसका उतना पावर।

जब मोबाईल आया तो उसके साथ एक स्लोगन भी आया ‘कर लो दुनिया मुट्टी में धीरे-धीरे बहुत सारी सुविधाएं, सूचनाएं और अधिक लेनदेन, खरीद बिक्री, रोजमर्रा की चीजों की उपलब्धता के लिए बाजार और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म से बेतहाशा सूचनाएं, ज्ञान भले ही आया हो पर वह आधा अधूरा है। इस टेक्नालॉजी सोशल मीडिया के जरिए दमित इच्छाओं को पूरा करने, देखने, दोस्त बनाने, ठगी करने, खुलकर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर छिपकर कुछ भी करने की स्वतंत्रता मिल गई। मोबाइल और खासकर व्हाट्सएप के ज़रिए पैदा होने वाला तनाव आजकल बहुत आम हो गया है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। मोबाइल के जरिए 24×7 उपलब्ध रहने का दबाव बना रहा है। राजनैतिक सामाजिक और शासकीय सेवा में कार्यरत लोगों से व्हाट्सएप पर हर समय ऑनलाइन रहने की उम्मीद की जाती है। अगर कोई तुरंत जवाब नहीं देता, तो लोग नाराज़ हो सकते हैं या गलतफहमी हो सकती है। नई तरह की टेक्नालॉजी में नीली टिक (क्चद्यह्वद्ग ञ्जद्बष्द्मह्य) और ऑनलाइन स्टेटस का दबाव जब किसी ने आपका मैसेज पढ़ लिया लेकिन जवाब नहीं दिया तो यह तनाव और चिंता का कारण बन सकता है।

सोशल मीडिया के जरिए फालतू और फेक न्यूज वाले लोग भी काफी सक्रिय रहते हैं। राजनीतिक पार्टियों के तो अपने अपने वाररूम भी बन गये हैं। इस तरह के वाररूम और कथित इन्फ्लुएंसर व्हाट्सएप पर फेक न्यूज, अफवाहें और बेकार की बहस कई बार मानसिक तनाव बढ़ा देती हैं। खासकर राजनीति, धर्म और समाज से जुड़े ग्रुप्स में यह ज्यादा होता है। लगातार मैसेज और ग्रुप नोटिफिकेशन का आना दिमाग को थका सकता है और ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत हो सकती है।

व्हाट्सएप स्टेटस और ग्रुप चैट्स में लोग अपनी अच्छी बातें या महंगी चीजें दिखाते हैं, जिससे कई बार दूसरों को हीन भावना या जलन महसूस होती है। यदि आपको अपने पास की लोगों की ज्यादा परवाह नहीं है तो आप कम करने के लिए आपको हर समय नोटिफिकेशन ऑन रखने की जरूरत नहीं है। यह भी देखने में आया है कि मोबाइल के अधिक इस्तेमाल के कारण पारिवारिक और ऑफिस लाइफ दोनों में तनाव बढ़ रहा है।

ये सही है कि मोबाइल बहुत जरूरी है, लेकिन अगर इसे कंट्रोल नहीं किया गया तो यह तनाव का बड़ा कारण बन सकता है। सही समय पर सही इस्तेमाल करके हम पारिवारिक और ऑफिस लाइफ में बैलेंस बना सकते हैं किन्तु ऐसा हो नहीं रहा है। एक शासकीय सेवक से 24×7 ड्यूटी की अपेक्षा रखने वाला तंत्र ये कैसे स्वीकार करेगा कि आप तुरंत जवाब न दें। मिसकाल पर काल बेक से लेकर व्हाट्सएप ग्रुप पर तुरंत रिप्लाय नहीं करना कई बार कोप भाजन का कारण बन जाता है।

Related News