scam-मनेन्द्रगढ़ वनमंडल में करोड़ों का घोटाला

ई-कुबेर पोर्टल के माध्यम से मजदूरों के नाम पर लूट
अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप

राजेश राज गुप्ता
मनेन्द्रगढ़। मनेन्द्रगढ़ वनमंडल में एक बड़े वित्तीय घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें करोड़ों रुपये की सरकारी धनराशि को ई-कुबेर पोर्टल के माध्यम से अवैध रूप से निकालने का आरोप लगाया गया है। इस घोटाले में वन विभाग के उच्च अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है, जिससे पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई है।
यह मामला तब सामने आया जब कुछ मजदूरों ने मजदूरी के भुगतान में अनियमितता की शिकायत की। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि कई मजदूरों के नाम पर फर्जी खाते खोले गए और उनमें सरकारी धनराशि जमा की गई, जिसे बाद में निकाल लिया गया। आरोप है कि यह धनराशि वन विभाग के अधिकारियों द्वारा हड़प ली गई है।
ई-कुबेर पोर्टल का दुरुपयोग
ई-कुबेर पोर्टल, जिसे सरकारी भुगतानों को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाने के लिए बनाया गया था, इस घोटाले का केंद्र बन गया है। सूत्रों के अनुसार, अधिकारियों ने इस पोर्टल का दुरुपयोग करके मजदूरों के नाम पर फर्जी बिल बनाए और भुगतान जारी किए। यह भुगतान सीधे उन खातों में जमा किए गए जो या तो फर्जी थे या अधिकारियों के नियंत्रण में थे। एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ई-कुबेर पोर्टल का इस्तेमाल पारदर्शिता के लिए होना था, लेकिन यहाँ इसका इस्तेमाल भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए किया जा रहा है। अधिकारियों ने मिलकर एक ऐसा तंत्र बनाया है जिसमें वे बिना किसी डर के सरकारी धन लूट रहे हैं।
भू-जल संरक्षण कार्य में भी गड़बड़ी
घोटाले की परतें यहीं तक सीमित नहीं हैं। केल्हारी, जनकपुर, बिहारपुर, कुँवारपुर और बहरासी परिक्षेत्र में चल रहे भू-जल संरक्षण कार्यों में भी भारी गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है। इन क्षेत्रों में कंटूर और चेकडैम के निर्माण में भारी अनियमितताएं पाई गई हैं। आरोप है कि इन परियोजनाओं के लिए आवंटित धनराशि का एक बड़ा हिस्सा फर्जी बिलों और भुगतानों के माध्यम से निकाल लिया गया है। कई जगहों पर निर्माण कार्य अधूरा है या मानकों के अनुसार नहीं है, जिससे परियोजनाओं के उद्देश्य पर ही सवाल उठ रहे हैं। हमने देखा है कि कई चेकडैम आधे-अधूरे बने हुए हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो पहली बारिश में ही टूट गए। यह सब भ्रष्टाचार का नतीजा है, केल्हारी के एक स्थानीय निवासी राम सिंह ने बताया। अधिकारी आते हैं, कुछ तस्वीरें लेते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। हमें नहीं पता कि इस परियोजना का क्या होगा।
इस पूरे फर्जीवाड़े में डीएफओ (जिला वन अधिकारी), एसडीओ (अनुमंडल अधिकारी), रेंजर और डिप्टी रेंजर स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका है। आरोप है कि इन अधिकारियों ने मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया और अपने अधीनस्थों पर दबाव डालकर मजदूरों के खातों की जानकारी मंगवाई। सूत्रों के अनुसार, बीट गार्डों पर भी दबाव डाला गया कि वे मजदूरों के आधार कार्ड और बैंक खातों की जानकारी उपलब्ध कराएं। जो बीट गार्ड ऐसा करने से इनकार करते हैं, उन्हें प्रताडि़त किया जाता है या उनका तबादला कर दिया जाता है। एक बीट गार्ड, जिसने अपनी पहचान गुप्त रखने का अनुरोध किया, ने बताया, हमें लगातार दबाव में रखा जाता है। हमसे कहा जाता है कि हम मजदूरों के खातों की जानकारी दें। जब हम ऐसा करने से इनकार करते हैं, तो हमें धमकी दी जाती है। हम अपनी नौकरी बचाने के लिए चुप रहने को मजबूर हैं।

जांच की मांग
इस घोटाले के सामने आने के बाद क्षेत्र के लोगों में आक्रोश है। कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए और उनसे लूटी गई धनराशि वसूल की जाए। यह गरीबों का पैसा है जो इन भ्रष्ट अधिकारियों ने लूटा है। हम मांग करते हैं कि इस मामले की सीबीआई जांच हो और सभी दोषियों को कड़ी सजा मिले, एक सामाजिक कार्यकर्ता सुनीता देवी ने कहा।
प्रशासन का रुख
घोटाले के आरोपों के बाद प्रशासन हरकत में आया है और जांच शुरू कर दी गई है। हालांकि, लोगों का मानना है कि यह जांच लीपापोती करने के लिए की जा रही है और असली दोषियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। मनेन्द्रगढ़ के जिला कलेक्टर [कलेक्टर का नाम] ने कहा, हमें घोटाले की जानकारी मिली है और हमने जांच शुरू कर दी है। हम किसी भी दोषी को बख्शेंगे नहीं और कड़ी कार्रवाई करेंगे। हालांकि, लोगों को प्रशासन की जांच पर भरोसा नहीं है। उनका मानना है कि जब तक किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच नहीं कराई जाती, तब तक इस मामले में इंसाफ की उम्मीद करना बेमानी है।

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