-सुभाष मिश्र
वैसे तो दिल्ली केंद्र में काबिज सत्ता की होती है किन्तु दिल्ली में एक विधानसभा है जिसमें 70 सीटें हंै। पिछले 26 साल से दिल्ली विधानसभा की सत्ता से भाजपा बाहर है। बहुत सारे एग्जिट पोल भाजपा की सत्ता सौंपते नजर आ रहे हैं। 15 साल कांग्रेस फिर दस साल आप पार्टी के पास दिल्ली का ताज रहा किन्तु केंद्र की सरकार ने बहुत से कारणों से जिनमें से एक बड़ा कारण है, देश की राजधानी की सुरक्षा, संवेदनशीलता को देखते हुए उपराज्यपाल के जरिए दिल्ली की चाबी अपने हाथ में रखी। दिल्ली सरकार एक प्रकार से उपराज्यपाल के हाथों की कठपुतली की तरह होती। यदि आप विपक्षी खेमे से है और केंद्र में आपकी सरकार नहीं है तो आपके लिए दिल्ली का तखत कांटो का साबित हो सकता है। आप पार्टी अपने प्रारंभ काल से ही दिल्ली के आकाओं की आंखों की किरकिरी बनी रही। अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजी इस आप पार्टी ने जिस सुचिता, सादगी और ईमानदारी की बात की थी कालांतर में सत्ता की माया में वे भी वहीं सब करते दिखे जिसके खिलाफ वे लामबंद हुए थे। अन्ना हजारे भी अब हाशिए पर जा चुके हैं। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन, भूख हड़ताल तो करते हैं किन्तु उन्हें महाराष्ट्र के कद्दावर नेताओं का भ्रष्टाचार नहीं दिखता था। कोई साफ विचारधारा और दिशा नहीं होने के कारण इतिहास पुरुष होकर रह गये। अरविंद केजरीवाल और आप पार्टी को गरियाने के अलावा अन्ना हजारे के पास फिलहाल कोई काम नहीं है।
बहरहाल, आप पार्टी की उड़ान ने बहुत सारे लोगों के मन में एक नये उत्साह का संचार किया था, किन्तु धीरे-धीरे लोगों का मोहभंग होता गया। मूल्यों की राजनीति करने वाले जब शीशमहल जैसी सजावट अपने बंगलों में करने लगे तो लोग उनसे सवाल तो पूछेंगे ही। राजनीति के हमाम में सभी नंगे हैं किन्तु वे अकसर एक दूसरे की नंगाई को उजागर करते हैं। जिस भ्रष्टाचार, लालफीताशाही को वे समाप्त करने की बात करते हैं, कालांतर में वह और व्यवस्थित तरीका अख्तियार कर लेती है। मीडिया के बहुत सारे चैनल बहुत ही बायस तरीके से सत्ता पक्ष के सुर में सुर मिलाते दिखते हैं। आप पार्टी उनके लिए सबसे साफ्ट टारगेट रही। दिल्ली यमुना को दूषित होते देखती है, प्रदूषण का बढ़ता स्तर दिल्ली के लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है पर नेतानगरी बयानबाजी से बाज नहीं आ रही है।
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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के एग्जिट पोल के नतीजों ने संभावित सत्ता परिवर्तन के संकेत दिए हैं। दस में से 8 एग्जिट पोल भाजपा की बढ़त बता रहे हैं। 26 साल के बाद भाजपा की वापसी के संकेत हैं। 15 साल तक शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस दस साल अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी दिल्ली पर काबिज रही। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली के मतदाताओं को दी गई गारंटियों ने चुनाव परिणामों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ऐसा विश्लेषकों का मानना है। दिल्ली में लगभग 60.42 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछले चुनावों की तुलना में थोड़ा कम है। मतदान प्रतिशत को लोग सत्ता परिवर्तन के बदलाव का संकेत मान रहे हैं। महिला वोटरों के वोट भी इस बार अहम रोल अदा करेंगे।
दिल्ली में संभावित सत्ता परिवर्तन के कारणों में लोग आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं पर हाल ही में लगे गंभीर आरोपों से जोड़कर देख रहा है। चुनाव से कुछ दिन पहले, आप पार्टी के चार मौजूदा विधायकों राजेश ऋषि, नरेश यादव, भावना गौड़ और रोहित कुमार मेहरौलिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इन विधायकों ने पार्टी नेतृत्व पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप लगाए हैं। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन जैसे नेता लंबे समय जेल में रहे। आप के पूर्व मंत्री और अब भाजपा नेता कैलाश गहलोत ने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी ने बिजवासन विधानसभा सीट से ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया है, जिसके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। विधानसभा टिकिट नहीं मिलने के बाद इस्तीफा देने वाले आठ विधायकों ने बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण की। इन नेताओं ने आप पर भ्रष्टाचार और नेतृत्व में पारदर्शिता की कमी के आरोप लगाए हैं। चुनाव से ठीक पहले इन विधायकों का भाजपा में शामिल होना आप के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। चुनाव में दिल्ली के यमुना नदी के पानी में जहर की बात हो या फिर रवेड़ी कल्चर या फिर भ्रष्टाचार की बात हो, ये मुद्दे चुनाव में हावी रहे। दिल्ली का चुनाव देश की सबसे बड़ी और ताकतवर पार्टी भाजपा के लिए नाक का सवाल बन जाता है किन्तु सभी पार्टियां चलो दिल्ली का नारा लगाती हैं।
चर्चित पत्रकार लेखक खुशवंत सिंह का एक बहुचर्चित ऐतिहासिक उपन्यास ‘दिल्लीÓ है, जो 1989 में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास में दिल्ली शहर के 600 वर्षों के इतिहास, इसके वैभव, पतन और परिवर्तनों की गाथा है। उपन्यास का नायक एक यायावर पत्रकार है जो लंबे समय बाद दिल्ली लौटता है। दिल्ली के प्रति उसका प्रेम और घृणा का द्वंद्व उपन्यास की मुख्य भावना है। उसका संबंध एक हिजड़ा भागमती से होता है जो दिल्ली के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक है—सुंदर भी और कुरूप भी। भागमती के माध्यम से दिल्ली की उथल-पुथल, उसकी राजनीति और सामाजिक पतन को दिखाया गया है। कहानी में दिल्ली के इतिहास को 14वीं शताब्दी से लेकर 1980 के दशक तक विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें तुगलक, मीर तकी मीर, औरंगज़ेब, नादिर शाह, बहादुर शाह जफ़र, ब्रिटिश राज, 1857 की क्रांति, विभाजन, और 1984 के सिख दंगों तक की झलक देखने को मिलती है। दिल्ली अभी भी खुशवंत सिंह के उपन्यास के चरित्र भागमती के जैसा ही है। वैसे लोग दिल्ली को दिलवालों की भी कहते हैं पर आजकल दिल्ली मीडिया वालों की ज्यादा दिखती है जिसकी निष्ठा हस्तिनापुर के राजसिंहासन की तरफ है।