कुम्भ मेला: मीडिया की नज़रों में बंजारन से लेकर श्रद्धा की गंगा तक, सौंदर्य की खोई हुई पहचान..

Prayagraj Maha Kumbh :

कुम्भ के मेले में बंजारन
ध्रुव शुक्ल, गङ्गा के किनारे भरे कुम्भ के मेले में एक बंजारन लड़की रंगीन पत्थरों से बने गुरियों की मालाएं बेचने आयी है। बिल्लौरी आंखों वाली इस लड़की के पीछे पड़कर मीडिया के कैमरे उसे रगेद रहे हैं। वह परेशान है। कहती है —- मैं थक गयी हूॅं। पर कैमरे उसका पीछा नहीं छोड़ रहे।

आखिरकार किसी ब्यूटी पार्लर नै उस बंजारन के नैसर्गिक सौन्दर्य को बाजारू प्रसाधनों से पोतकर और उसे नकली ब्यूटी क्वीन बनाकर फिल्मी दुनिया की अंधी गलियों में धकेल दिया है। वह बंजारन अब अपने सहज प्राकृतिक सौन्दर्य को खो चुकी है। मीडिया उसके नैसर्गिक मुख की तुलना अब उसके पुते हुए चेहरे से करके दिखा रहा है और कह रहा है कि अब वह पहले से ज़्यादा सुंदर दिखने लगी है!। वह लड़की उस कलाविहीन मीडिया की मोनालिसा बन गयी है जो लियोनार्दो द विंची की रची मोनालिसा ( पेस्टिंग ) की मुस्कान के कोड को खोलने में असमर्थ है।

कुम्भ के मेले में यह बंजारन लड़की ही नहीं, वे मीलों पैदल चलती  हुई ग्रामीण स्त्रियाॅं मीडिया के कैमरों के छल से अनजान हैं जो गङ्गा में डुबकी लेने के लिए उतर रही हैं। डुबकी लेते हुए उनके गीले होते वस्त्रों के कारण देह कुछ पारदर्शी हो जाती है। वे नारियाॅं तो श्रद्धा से भरकर गङ्गा में डूबा साध रही हैं। इतनी भीड़ में वे नहीं देख पा रहीं कि कि उन्हें कौन घृणित दृष्टि से देख रहा है। पर गङ्गा के किनारे ताक में बैठा बगुला भगत मीडिया का कैमरा उनके स्तनों और नितम्बों को क्लोजप करके अपने चैनल पर दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ा रहा है।

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कुम्भ के मेले में सूर्य प्रभा से सहज ही प्रकट होता भगवा रंग लाखों शरीरों पर छाकर बिना किसी भेदभाव के उन्हें अपने सौन्दर्य से आच्छादित किये हुए है। देश की ही नहीं, परदेस से आयी साध्वियाॅं उसे धारण किये हुए हैं। मीडिया का दिमाग़ ब्यूटी क्वीन प्रतियोगिता के मानकों के अलावा स्त्री के सौन्दर्य को पहचानने में असमर्थ है। वह इन्हीं दैहिक मानकों के आधार पर अपने कैमरे की कामुक आंख नारी साध्वियों पर गड़ाकर पागल हुआ जा रहा है और अपने पागलपन को पूरी दुनिया में प्रचारित भी कर रहा है।

गङ्गा में फिल्मी अभिनेत्रियाॅं भी डूबा साधने आ रही हैं। जैसे ही उनके उरोज जल की सतह का स्पर्श करने लगते हैं तभी घात लगाकर बैठा मीडिया अपना कैमरा उन पर तान देता है। मीडिया फिल्मों के स्वीमिंगपूल के पानी में डूबी अभिनेत्रियों की  देह और गङ्गा के श्रद्धा से परिपूर्ण जल में डूबा साधती उनकी देह में अंतर नहीं कर पा रहा है। गङ्गा के किनारे अपना डेरा डाले अनगिनत महामण्डलेश्वर मीडिया को यह बात क्यों नहीं समझा पा रहे कि गङ्गा जल में सूक्ष्मतम रूप से श्रद्धा बसी हुई है। गङ्गा स्नान स्वीमिंगपूल स्नान नहीं है।

गङ्गा जल के प्रति श्रद्धा से भरे अनेक सुंदर शरीर कुम्भ के मेले की भगदड़ में कुचलकर दुनिया छोड़ चुके हैं। सरकार उनकी गिनती नहीं कर पा रही। कोई पाखण्डी कह रहा है कि उनका तो मोक्ष हो गया है। मोक्ष की समझ से बेखबर मीडिया उस पाखण्डी के बयान को खूब प्रसारित कर रहा है पर उन लोगों की खबर नहीं दे पा रहा जिनकी श्रद्धा से भरी देह बीच राह में ही कुचल गयी। श्रद्धा के आंतरिक सौन्दर्य को जाने बिना मीडिया कभी नहीं जान पायेगा कि कुम्भ स्नान का क्या अर्थ है। मीडिया अंधी भीड़ खूब दिखा रहा है पर वह उन लाखों चेहरों को नहीं दिखा पा रहा जिन पर गङ्गा में डुबकी लेते हुए श्रद्धा भाव का आंतरिक सौन्दर्य झलक रहा है।

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