सुभाष तेरा नाम ही तो इन्कलाब है,
जन-जन में आज तू ही जिन्दाबाद है।
आज 23 जनवरी को भारत के प्रथम राष्ट्रपति नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयन्ती मनाई जा रही है। जैसे रूस में कामरेड लेनिन ने “लाल सेना” की मदद से नवम्बर क्रान्ति को सफल बनाया था, वैसे ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने “आजाद हिन्द फौज” के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी।
लेकिन 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के बावजूद, कुछ देशद्रोहियों और अंग्रेजों के साथी जयचन्दों ने मिलकर सत्ता का खेल रचा, जिससे देश की स्वतंत्रता पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाई।
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नेताजी ने सन 1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद पर चुनाव जीते, और 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में गांधी के समर्थक पट्टाभि सीतारमैया को हराकर पुनः अध्यक्ष बने। गांधीजी को यह नहीं भाया, और उन्होंने कांग्रेस के संविधान में संशोधन कर नेताजी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया। इसके परिणामस्वरूप नेताजी को भारत छोड़कर अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी जाना पड़ा, जहां हिटलर से सहयोग न मिलने पर उन्होंने जापान का रुख किया और वहां ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया।
हालांकि आज भारत औद्योगिक दृष्टि से एक प्रगति की ओर बढ़ रहा है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से यह अत्यंत कमजोर और कर्ज में डूबा हुआ है। देश की अधिकांश संपत्ति विदेशी कंपनियों के हाथों में जा रही है, जिससे महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के खिलाफ जन असंतोष एक बड़ी क्रांति का रूप ले सकता है, जिसकी आहट देश में तेजी से महसूस हो रही है।
आज के दिन हम सबको नेताजी के शहीदी आत्मा को सम्मान देने के लिए शिक्षित और संगठित होकर उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लेना चाहिए। नेताजी की जयन्ती को मनाने की यही सही और सार्थक विधि है।