राजकुमार मल
भाटापारा। गेहूं में समय के पूर्व परिपक्वता का खतरा। धान के पौधों की जड़ें कमजोर होने की आशंका। सरसों में पुष्पन की प्रक्रिया जल्द। दाने छोटे हो सकते हैं। गुणवत्ता भी कमजोर होगी। यह सब इसलिए क्योंकि रबी सत्र की यह प्रमुख फसलें बढ़ते तापमान के घेरे में आ चुकीं हैं।
समय से पहले ठंड का जाना और गर्मी का आना। मौसम में आ रहा यह बदलाव रबी फसलों की चुनिंदा ऐसी प्रजातियों के लिए संकट का संदेश लेकर आ पहुंचा है, जिसकी बोनी को प्रदेश के किसान पहली प्राथमिकता देते हैं। तय समय से पहले आ रहा यह परिवर्तन, कमजोर उत्पादन और गुणवत्ता के रूप में देखे जाने की आशंका प्रबल होती नजर आ रही है।

समय के पूर्व परिपक्वता का खतरा गेहूं में
जनवरी मध्य और फरवरी का पहला व दूसरा सप्ताह। बालियां और दाने आने का समय होता है। इन दिनों में तापमान संतुलन बेहद अहम है। ऐसे में रात में ओस का कम गिरना और दिन में तापमान का बढ़ना, गेहूं के लिए संकट का संदेश लेकर आ पहुंचा है। दुष्प्रभाव, कमजोर गुणवत्ता और छोटे दाने जैसे रुप में देखा जा सकता है। असर कमजोर उत्पादन जैसा दृश्य लेकर आ सकता है। सबसे बड़ा खतरा बालियों में समय के पूर्व परिपक्वता जैसी स्थिति के रूप में सामने खड़ा है।

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कमजोर हो सकते हैं धान के पौधे
दिन और रात के तापमान में हो रही वृद्धि धान की फसल को भी संकट में डाल चुकी है। तापमान का यह बदलता रुप पौधों की जड़ों को कमजोर करेगा। नमी भी मानक मात्रा से बेहद कम होगी। लगने वाली बालियों की लंबाई कम तो होगी ही दानों की संख्या और गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर डाल सकती है। कमजोर उत्पादन जैसी स्थिति की आशंका यहां भी है।
सरसों के लिए चुनौती
फरवरी में ही बढ़ता तापमान सरसों के लिए चुनौती भरा माना जा रहा है। समय से पूर्व पुष्पन साफ तौर पर बता रहा है कि फूलों के गिरने की प्रक्रिया बहुत जल्द देखने में आ सकती है। फल्लियां न केवल छोटी होंगी बल्कि दानों की संख्या और गुणवत्ता कमजोर हो सकती है। अंततः यह उत्पादन में गिरावट के रुप में सरसों किसानों के सामने होगा। बतातें चलें कि सरसों किसान इस समय कीट प्रकोप का सामना कर रहे हैं।
बालियां छोटी हो सकती हैं
बढ़ता तापमान रबी सत्र में ली जाने वाली इन तीनों प्रमुख फसलों पर निश्चित रूप से प्रभाव डालेगा। बालियों की मानक लंबाई कम हो सकती है। दानों का आकार भी छोटा होने की आशंका है। यह सब मिलकर उत्पादन पर असर डालेंगे। किसान भाई सिंचाई हेतु स्प्रिंकलर पद्धति का उपयोग करें।
– डा. दिनेश पांडे, सस्य वैज्ञानिक एवं प्रमुख अन्वेषक एक्रीप वीट, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर