-सुभाष मिश्र
आत्मनिर्भर भारत बनने की दिशा में अभी बहुत सारी चुनौतियॉं है। जब हम देश की आजादी के सौ साल का जश्न मनायेंगे तब हम क्या दुनिया के सिरमौर होंगे? क्या दुनिया हमें विश्व गुरू मानेगी। क्या हम अमेरिका जैसों के आर्थिक और सामरिक दबावों से मुक्त होंगे। ये सही है की लंबी ग़ुलामी और संघर्ष के बाद हमने आज़ादी हासिल की है। भारत ने 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इस प्रकार, 2026 में भारत की स्वतंत्रता के 79 वर्ष पूरे होंगे। स्वतंत्रता के इस सफर में भारत ने अनेक संघर्षों और बलिदानों का सामना किया। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपने विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इस दौरान देश ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कई सुधार किए हैं। भारत की स्वतंत्रता का यह सफर न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक रहा है। 79 वर्षों के इस सफर में भारत ने अनेक चुनौतियों का सामना किया है और आज एक मजबूत और विविधता से भरे देश के रूप में उभरा है। भारत, एक ऐसा देश जो अपनी विविधता और समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है, 2047 में अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करेगा। इस अवसर पर, हमें यह विचार करना होगा कि क्या हम वास्तव में उस मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे हम आत्मनिर्भर, समृद्ध और विश्व गुरु भारत के रूप में परिभाषित करते हैं।
आत्मनिर्भर भारत का सपना केवल आर्थिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी प्रगति की आवश्यकता को दर्शाता है। हालांकि, वर्तमान में, 80 करोड़ लोग नि:शुल्क राशन की लाइन में खड़े हैं। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में सभी के लिए समृद्धि सुनिश्चित कर पा रहे हैं।
भारत का चुनाव आयोग, जो लोकतंत्र की नींव है, आज सवालों के घेरे में है। धर्म निरपेक्षता और समाजवाद जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर बहस चल रही है। एक ओर, कुछ राजनीतिक दल इन सिद्धांतों का विरोध कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर, विपक्षी दल संविधान की रक्षा की गुहार लगा रहे हैं। यह राजनीतिक अस्थिरता और विचारों का टकराव हमें एकजुटता की दिशा में आगे बढऩे से रोकता है।
धर्म, जाति और पंथ के मुद्दे आज भी हमारे समाज में गहरे धंसे हुए हैं। मंदिर, मस्जिद, चर्च और धर्मांतरण जैसे विषयों पर बहसें अक्सर समाज में विभाजन का कारण बनती हैं। क्या हम एक ऐसी पहचान बना पाएंगे, जो भारतीयता को प्राथमिकता दे? क्या हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे, जहाँ सभी धर्मों और जातियों का सम्मान हो?
आने वाले समय में, हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। आर्थिक असमानता, सामाजिक विभाजन, और राजनीतिक अस्थिरता जैसी समस्याएँ हमारे सामने हैं। लेकिन यदि हम एकजुट होकर काम करें, तो हम इन चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
2047 का भारत एक ऐसा भारत होना चाहिए, जहाँ आत्मनिर्भरता केवल एक नारा न हो, बल्कि एक वास्तविकता हो। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा, जहाँ सभी लोग समान अवसर प्राप्त करें और जहाँ भारतीयता की पहचान धर्म, जाति और पंथ से परे हो। यह एक लंबा सफर है, लेकिन यदि हम मिलकर प्रयास करें, तो हम निश्चित रूप से उस मंजिल तक पहुँच सकते हैं, जहाँ भारत विश्व गुरु के रूप में स्थापित हो।
इस दिशा में आगे बढऩे के लिए, हमें अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में मोडऩा होगा और एकजुटता के साथ काम करना होगा। तभी हम 2047 में एक सशक्त और समृद्ध भारत का सपना साकार कर सकेंगे। मंजिलें अभी और भी हैं, चुनौतियाँ अभी और भी हैं पर मन में हैं विश्वास पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन।
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ , बधाई
सुभाष मिश्र, प्रधान संपादक
मंजिलें अभी और भी हैं

15
Aug