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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – चुनाव में बढ़ता बेनामी खर्च और महंगे होते चुनाव

-सुभाष मिश्र कोई गरीब ईश्वर तभी चुनाव लड़ सकता है जब उसके बेटे की हत्या हो गई हो और उसका इल्जाम ऐसे लोगोंं पर हो जो इस घटना को सहानुभूति के साथ जातिगत और साम्प्रदायिक रुप में वोट में बदलकर एक ऐसा नेरेटिव बना सके, जो किसी पार्टी को तत्कालिक रुप से लाभ का सौदा […]

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – बेटियों के समान हक की अनुकरणीय पहल

-सुभाष मिश्र सदी के महानायक कहे जाने वाले सिने स्टार अमिताभ बच्चन और उनकी अभिनेत्री पत्नी राज्यसभा सदस्य जया बच्चन ने अपनी बेटी श्वेता बच्चन नंदा के नाम अपना पसंदीदा बंगला प्रतीक्षा कर दिया। अमिताभ और जया की यह पहल उन पुरुष या पितृसतात्मक समाज की मानसिकता रखने वालों के लिए एक बड़ी मिसाल है

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – हमारा संविधान और हम

– सुभाष मिश्र  हमारा संविधान ही है जो हमें जाति, धर्म, समुदाय, अमीर गरीब से उपर उठकर बराबरी से गरिमापूर्ण तरीक़े से जीवन जीने का अधिकार देता है। संविधान की मूल भावना सबको बराबरी का हक़ और अवसर देने की है। संविधान दिवस के अवसर पर हम इस बात की पड़ताल कर रहे हैं कि

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – आत्मनिर्भरता की तेजस उड़ान

-सुभाष मिश्र आत्मनिर्भर भारत मोदी सरकार का सपना है। इसे लोकल फार वोकल कहें या कहें लोकल से ग्लोबल तक की यात्रा पर भी हम निकल पड़े हैं। इस बीच हमने विश्वगुरु बनने की उम्मीद को भी पंख लगा दिए हैं। आबादी के मामले में हम पूरे विश्व में चीन को पीछे छोड़ते हुए आगे

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – अपना अर्थ खोते और विलुप्त होते प्रचलित शब्द

– सुभाष मिश्र गांधी द्वारा दिया गया ‘हरिजन’ शब्द अब प्रतिबंधित हो गया है। दरअसल जिस भावना और सम्मान के साथ दलितों के लिए यह शब्द प्रयोग में लाया गया था, कालांतर में यह दलितों की पहचान और उन्हें प्रताडि़त करने का हथियार बन गया। अधिकांश भारतीय घरों में बच्चे का निक नेम ‘पप्पु’ होना

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जांच की पहेलियों में उलझा झीरम का स्याह सच

-सुभाष मिश्र छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच की रफ्तार कछुए की चाल से चल रही है, तो इसी मुद्दे पर राजनीति का घोड़ा सरपट दौड़ रहा है। यही वजह है कि घटना के एक दशक बाद भी जांच की आंच सही जगह नहीं पहुंच सकी। हां, सियासत की चाल ने मामले

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -करियर के प्रति सजग बच्चों की आत्महत्या के लिए दोषी कौन?

-सुभाष मिश्र हमारी परीक्षा प्रणाली कहें या बच्चों के माता-पिता की श्रेष्ठता की चाहत या उनके सपने जो अपने बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं, इन सबके चलते बच्चों पर बहुत ही मानसिक दवाब रहता है। इसी दवाब की वजह से वे आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठाते हैं। दुनियाभर में आत्महत्या के आंकड़े साल

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – हलाल या हराम: चुनाव तक है ये कोहराम

-सुभाष मिश्र कहावत है कि मुर्गा अपनी जान से जाये, खाने वाले को मजा न आये। मुर्गा या अन्य कोई जानवर जिसे खाने से आपका धर्म, संस्कार बाधित नहीं होता, उसे आप अपनी खान-पान की पद्धति जलवायु और उपलब्धता के आधार पर खाते हैं। बहुत सारे लोगों को मांसाहार कतई नहीं भाता वे शाकाहारी, फलहारी

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – खेल का बदला चरित्र

-सुभाष मिश्र   खेल पहले भी होते थे और टेलीविजन पर उनका प्रसारण भी होता था लेकिन जबसे इन सारी चीजों में बाजार का दखल शुरू हुआ, खेल का चरित्र ही बदल गया। खेल और दर्शकों के संबंध भी बदल गए। खेल और विशेषकर फुटबॉल , टेनिस और क्रिकेट पहले से ज्यादा उत्तेजक और आक्रामक

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – एक दूसरे के प्रभाव में साहित्य और सियासत

– सुभाष मिश्र क्लाइमेट चेंज दुनिया भर में एक बड़ी समस्या के रूप में पर्यावरणविदों के बीच चर्चा का विषय है। अब इसका एक बड़ा बुरा असर जापान के साहित्य जगत पर नजर आ रहा है। वहां बढ़ती गर्मी के चलते साहित्यकार नई रचना नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल साहित्यकार अपने आसपास घटने वाली

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