Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – खेल का बदला चरित्र

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र
-सुभाष मिश्र

 

खेल पहले भी होते थे और टेलीविजन पर उनका प्रसारण भी होता था लेकिन जबसे इन सारी चीजों में बाजार का दखल शुरू हुआ, खेल का चरित्र ही बदल गया। खेल और दर्शकों के संबंध भी बदल गए। खेल और विशेषकर फुटबॉल , टेनिस और क्रिकेट पहले से ज्यादा उत्तेजक और आक्रामक हो गए हैं। क्रिकेट में सिर्फ कपड़ों में ही रंगीनियत नहीं आई बल्कि जैसे-जैसे इसमें धन की आवक अपार होती गई, क्रिकेट से खेल भावना कम होती गई है। क्रिकेटर्स के रवैये बदल गए हैं, बॉडी लैंग्वेज बदल गई है। बाजार ने कुछ ऐसी माया रची कि क्रिकेट में अब दर्शकों के बीच में उन्माद पैदा किया गया है।

इस उन्माद से बाजार को बढ़त मिलती है। क्रिकेट के मैच में अब फिल्म स्टार्स को भी बुलाया जाता है और राजनेताओं को भी बुलाया जाता है। देशों की अंतरराष्ट्रीय राजनीति को क्रिकेट में इस तरह से प्रवेश कराया गया है कि इससे दर्शकों का उन्माद और बढ़ गया है और परस्पर वैमनस्य से भरे देशों की टीमों के बीच मैच प्राय: रविवार को रखे जाते हैं ताकि छुट्टी के दिन मैच के टिकट अधिक बिक सके और टेलीविजन को अधिक दर्शक मिले और फिर उत्पाद के विज्ञापनों की भरमार आ जाती है। विज्ञापन भी कुछ इसी तरह तैयार किए जाते हैं कि जैसे ये कोल्डड्रिंक्स या स्नैक्स क्रिकेट मैच देखते हुए खाने के लिए ही बने हैं या उस समय उसका स्वाद और बढ़ जाएगा। ये क्रिकेट मैच एक तरह से अब खेल भावना से आगे जाकर एक युद्ध की तरह लगने लगे हैं जैसे दो देशों की टीमें नहीं खेल रही है बल्कि दो देशों के बीच युद्ध हो रहा है और इन सब के बीच खिलाड़ी भी सबसे ज्यादा तनाव में रहते हैं। उन पर इतना अधिक मानसिक दबाव बढ़ जाता है कि मैच की जीत जीवन-मरण का जैसे प्रश्न हो गया हो और लगभग ऐसा होता भी है। यदि मैच भारत और पाकिस्तान के बीच होता है तो यह दर्शकों का उन्माद और बढ़ जाता है। ऐसे में किसी भी एक टीम की हार उनके देश में राष्ट्रीय पर पराजय की तरह मानी जाती है। उनके घर पर उनके फैंस हमला करते हैं। बाजार अपने लाभ के लिए किस हद तक जा सकता है क्रिकेट मैच इसका उदाहरण है। इन सबको देखते हुए यह लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब बाजार किसी की मृत्यु को भी अपने लाभ के लिए इस तरह का इस्तेमाल करेगा। मीडिया और बाजार मिलकर किस तरह की छबि क्रिएट करते हैं इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह क्रिकेट मैच था। पूरे स्टेडियम में फैला सन्नाटा और खामोशी, लोगों की आँखों के आँसू और उनके मायूस चेहरे बता रहे थे कि वे केवल जीत और जीत ही देखना चाहते थे। उन्हें हार किसी भी क़ीमत पर मंज़ूर नहीं थी। बाज़ार, मीडिया और राजनीतिक लोगों द्वारा रचे गये इस छद्म कि़स्म के राष्ट्रवाद की यही नियति होनी थी। जीत से आगे किसी को कुछ मंज़ूर नहीं था। लगातार दस मैच जीतने वाली टीम के खिलाडिय़ों के चेहरे पराजित योद्धा में तब्दील हो गये।

आईसीसी वनडे क्रिकेट वल्र्ड कप-2023 के अहमदाबाद में होने वाले फ़ाइनल मैच के एक दिन पहले (18 नवंबर) अहमदाबाद जाने वाली फ्लाइट के वनवे टिकट की कीमत 6-7 गुना तक बढ़ गई है। मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों से अहमदाबाद का किराया 30,000 से ज्यादा हो गया है। 19 नवंबर को अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच फाइनल दोपहर 2 बजे से खेला जा रहा है। 1 लाख 32 हजार की दर्शक की क्षमता वाले स्टेडियम में पहुंचकर मैच देखना भी एक तरह का स्टेटस सिम्बल बन गया। देश के कई बड़े नेता और सेलिब्रिटी मैच के दौरान मौजूद रहे।

आज इंडिया और आस्ट्रेलिया के बीच फाइनल मुकाबले में आल्ट्रेलिया वल्र्ड चैंपियन बना। टॉस जीतकर पहले ऑस्ट्रेलिया ने फील्डिंग चुनी और भारत को 240 रनों पर ऑलआउट कर दिया। भारत की ओर से पहले रोहित शर्मा ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए अच्छी शुरुआत दी लेकिन निरंतर अंतराल में विकेट गिरने का सिलसिला जारी रहा और भारत निर्धारित 50 ओवर में मात्र 240 रनों पर ऑल आऊट हो गई। भारत के लिए विराट कोहली और केएल राहुल ने अर्धशतकीय पारी खेली वहीं रोहित शर्मा अर्धशतक से 3 रनों से चूक गए। आस्ट्रेलिया के लिए मिशैल स्टार्क ने 3 विकेट लिए साथ ही पैट कमिंस, हेजलवुड ने 2-2 विकेट निकाले। भारत और न्यूजीलैंड का सेमीफाइनल मुकाबला देखने लगभग 34 हजार दर्शक वानखेड़े स्टेडियम में पहुंचे थे। इसके अलावा ओटीटी प्लेटफार्म पर इस मैच को 5 करोड़ से ज्यादा लोगों ने मैच को देखा। आस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के बीच हुए सेमीफाइनल मुकाबले में भी लगभग 30 हजार से ज्यादा दर्शक स्टेडियम में मौजूद थे।

आस्ट्रेलिया ने सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए भारत को 6 विकेट से शिकस्त दी। भारतीयों पर बाजार और मीडिया ने देशभक्ति की चाशनी पिलाई थी जैसे जैसे भारत की हार नजदीक आई पूरे स्टेडियम में सन्नाटा पसरा और अंत में रोहित शर्मा आंखों में आंसू लिए ड्रेसिंग रूम में गए। सभी भारतीय और खिलाडिय़ोंं की आंखों में आंसू और निराशा थी। दरअसल, ये खेल भावना न होकर एक युद्ध हारने जैसा था।

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