Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जांच की पहेलियों में उलझा झीरम का स्याह सच

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच की रफ्तार कछुए की चाल से चल रही है, तो इसी मुद्दे पर राजनीति का घोड़ा सरपट दौड़ रहा है। यही वजह है कि घटना के एक दशक बाद भी जांच की आंच सही जगह नहीं पहुंच सकी। हां, सियासत की चाल ने मामले को उलझाने और भटकाने का काम जरूर किया। नेताओं की बयानबाजी और पलटवार ने 32 लोगों की मौत को भी मजाक बनाकर रख दिया। इस मामले में चाहे एनआईए जांच हो या न्यायिक जांच या फिर पुलिस की जांच सच सामने आना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस नक्सली वारदात में प्रदेश नेतृत्व को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना की जांच को दल के चश्मे से नहीं, प्रदेश के दिल की धड़कन से समझने की जरूरत है। झीरम कांड को लेकर सियासत प्रारंभ हो गई है। नरसंहार और साजिश की अलग-अलग जांच नहीं करने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए से जांच लेकर छत्तीसगढ़ पुलिस को दे दी। कांग्रेस-भाजपा के नेता एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह रहे हैं कि भाजपा की 15 साल की सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विधानसभा से प्रस्ताव पास होने के बाद सीबीआई से जांच क्यों नहीं कराई तो विपक्ष कह रहा है भूपेश बघेल के कुरते की जेब में रखा झीरम का सच कब निकलेगा।
गत दिनों झीरम घाटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें एनआईए ने दावा किया था कि जांच का अधिकार केवल उसके पास है। एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दावा तब किया था, जब हमले में मारे गए उदय मुदलियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार द्वारा कांग्रेस की सरकार आने के बाद 2018 में इस घटना को राजनीतिक साजिश बताकर एफआईआर की। जितेंद्र मुदलियार द्वारा अचानक पुलिस में दिये गये नये आवेदन के साथ अपराध दर्ज करने की मांग पर नई एफआईआर दर्ज की गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने नई एफआईआर की जांच करने का आदेश पुलिस को दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से स्पष्ट है कि पुलिस को जितेंद्र मुदलियार की शिकायत पर दर्ज प्राथमिकी के मामले में जांच का अधिकार मिला है न कि पूरे झीरम घाटी मामले की जांच का। यह अलग बात है कि भविष्य में सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को आधार बनाकर पुलिस पर पूरे झीरम घाटी वारदात की जांच का दवाब बनाया जाए।
यदि हम झीरम घाटी की सिलसिलेवार पड़ताल करें तो पाते हैं कि छत्तीसगढ़ के तत्कालीन दिग्गज कांग्रेस नेता 25 मई 2013 को बस्तर में परिवर्तन रैली कर लौट रहे थे, तभी सुकमा जिले के झीरम घाटी के पास उनके काफिले पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था। इस बड़े नरसंहार में प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं और जवानों के साथ 32 लोगों की मौत हो गई थी। तत्कालीन केंद्र की यूपीए सरकार ने इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी थी। बाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गई, मगर जांच जारी रही। इसके समानांतर न्यायिक जांच भी चल रही थी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एनआईए की जांच पर सवाल उठाए जाने लगे। इतना ही नहीं न्यायिक जांच की रिपोर्ट को भी सरकार ने खारिज दिया और पांच बिंदुओं के साथ नया जांच आयोग बनाने की घोषणा कर दी गई। झीरम मामले में एनआईए ने बिलासपुर की विशेष अदालत में सितंबर 2015 में पहला चालान पेश किया था। चालान में 9 लोगों की गिरफ्तारी के अलावा पूरी साजिश और हमले को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की गई। एनआईए ने कहा कि जांच के दौरान और मुल्जिम पकड़े जाएंगे या नए तथ्य सामने आएंगे तो पूरक चालान पेश किया जाएगा। जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग ने जगदलपुर में इस मामले की जांच करते हुए दर्जनों गवाहों के बयान दर्ज किए। झीरम हमले के दौरान बस्तर एसपी मयंक श्रीवास्तव, तत्कालीन एएसपी समेत दर्जनों अफसर तथा कांग्रेस से शीर्ष आला नेताओं की भी गवाही हुई है। झीरम घाटी हत्याकांड के 8 साल बाद जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की अगुवाई वाले आयोग ने तत्कालीन राज्यपाल अनुसूईया उइके को रिपोर्ट सौंप दी थी। यह रिपोर्ट 10 खंडों और 4 हजार 184 पेज में तैयार की गई थी।
झीरम घाटी का नक्सली हमला देश का दूसरा सबसे बड़ा माओवादी हमला था। इस हमले को कांग्रेस ने सुपारी किलिंग करार दिया था। इस घटना के 10 साल बाद भी इस जघन्य हत्याकांड की कई सच्चाईयों से पर्दा नहीं उठ पाया है। इस घटना को अंजाम देने के पीछे आखिर क्या वजह थी, यह आज तक पूरी तरह साफ नहीं हो पाया है। यहां एक और बिन्दु गौरतलब है कि एनआईए की चार्जशीट कोर्ट में जमा करते ही नक्सली नेता गणपति और रमन्ना जिनका नाम पहले आरोपी लिस्ट में था और जिन्हें फरार घोषित किया गया था, उनकी संपत्ति कुर्क की जानी थी। उनका नाम चार्जशीट से हट गया।
25 मई 2013, करीब 5 बजे का समय था। भीषण गर्मी के बीच लोग अपने घरों और कार्यालयों में पंखे-कूलर की हवा के नीचे बैठे थे। इसी बीच अचानक टीवी पर एक खबर आई। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के झीरम घाटी में करीब डेढ़ घंटे पहले एक माओवादी हमला हुआ था। यूं तो यहां आज भी रोजाना माओवादी हिंसा होती है, लेकिन यह घटना उन घटनाओं से कहीं अधिक खौफनाक और भीषण थी। प्रारंभिक खबर आने के करीब 15 मिनट बाद अपडेट खबर आई। इस खबर में बताया गया कि हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा और नंद कुमार पटेल सहित कई लोग मारे गए हैं। विद्याचरण शुक्ल की हालत गंभीर है। इसके बाद धीरे-धीरे खबर का दायरा बढऩे लगा। रात करीब 10 बजे जब यह जानकारी आई कि हमले में कुल 32 लोग मारे गए हैं, तो लोगों को इस खबर पर भरोसा कर पाना मुश्किल हो रहा था। एक-एक कर घटना में मारे गए लोगों के नाम सामने आने लगे। इनमें वे नाम थे जो उस वक्त छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के पहली कतार के नेता थे। यह देश के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा नक्सल हमला था।
झीरम मामले की जांच आज भी चल रही है, लेकिन अब तक पूरे षड्यंत्र का खुलासा नहीं हो पाया है। इस घटनाक्रम के अंदर की कहानी आज भी अनसुलझी ही है। घटना को भले ही 10 साल से अधिक हो गए, लेकिन इसके जख्म आज भी पूरी तरह ताजा हैं। घटना की जांच लंबे समय तक अटकी रही और फिर राज्य में कांग्रेस की सरकार के सत्ता में आने के बाद इसकी जांच फाइल दोबारा खोली गई है। इस घटना में कुछ नक्सली लीडर के नाम सामने आए, जिन पर एनआईए ने भी नकद इनाम की घोषणा कर रखी है, लेकिन इनमें से कुछ को छोड़कर अधिकांश नक्सली पकड़ में नहीं आए हैं।

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