Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -करियर के प्रति सजग बच्चों की आत्महत्या के लिए दोषी कौन?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हमारी परीक्षा प्रणाली कहें या बच्चों के माता-पिता की श्रेष्ठता की चाहत या उनके सपने जो अपने बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं, इन सबके चलते बच्चों पर बहुत ही मानसिक दवाब रहता है। इसी दवाब की वजह से वे आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठाते हैं।
दुनियाभर में आत्महत्या के आंकड़े साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। भारत की बात करें तो आंकड़े आपको परेशान कर सकते हैं। 15 से 24 साल के बच्चों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। देश में रिकार्ड की गई आत्महत्याओं में से 35 प्रतिशत इसी आयु वर्ग के होते है। सरकार का 2020 का डेटा स्पष्ट करता है कि भारत में हर दिन औसतन 31 बच्चों ने अपनी जान ली। नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो के डेटा के अनुसार, साल 2020 में कुल 11,396 बच्चों की मौत का कारण आत्महत्या रही। 2019 में यही आंकड़ा 9613 था, यानी 18 प्रतिशत बढ़ गया और 2018 की तुलना में 21 प्रतिशत बढ़ गया।
आत्महत्या के प्रमुख कारणों में समाज और परिवार की नजरों में अपने आपको को साबित न कर पाने का प्रेशर, प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल न हो पाना, पारिवारिक समस्याएं और 18 साल से कम उम्र के बच्चों में प्रेम प्रसंग आत्महत्या के प्रमुख कारण थे। अभी हाल में देश के सबसे बड़े एजुकेशन हब राजस्थान के कोटा में देशभर से हर साल हजारों बच्चे डाक्टर और इंजीनियर बनने के सपने को पूरा करने के लिए आते हैं। जानकारों के अनुसार, कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री दो हजार करोड़ रुपये से भी अधिक का उद्योग है।
विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृति को लेकर मुंबई निवासी अनिरुद्ध नारायण ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि आत्महत्या अभिभावकों के कारण हो रही हैं।
छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या की प्रवृति के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया। 20 नवंबर को कोर्ट ने कहा कि छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के लिए कोचिंग सेंटर को दोषी नहीं ठहराना उचित नहीं है, क्योंकि माता-पिता की उम्मीदें बच्चों को आत्महत्या के लिए उकसा रही हैं। कोर्ट ने यह टिप्पणी मुख्य रूप से राजस्थान के कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्या को लेकर की है। गौरतलब है कि इस वर्ष राजस्थान के कोटा जिले में लगभग 24 आत्महत्याओं की सूचना मिली है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस बी एन भट्टी की पीठ ने बेबसी व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायपालिका ऐसे परिदृश्य में निर्देश पारित नहीं कर सकती है।
नवगीतकार भगवान स्वयं सरस की कविता है-
दूध कटोरा तशक को शैशव को सिसकी
सबका सब आकाश बांधकर चीले खिसकी
कब तक अपनी भूख नारो और झुनझुनों से बहलाए
छोटे-छोटे दरवाजे हैं आदम कद इच्छाएं।
इस समय कैरियर को लेकर बच्चों के माता-पिता की आदमकद इच्छाएं हमें आये दिन देखने को मिलती है। माता-पिता अपने बच्चों में यह सब देखना चाहते हैं, जो उनके अवचेतन में अधूरी इच्छाओं के रूप में दर्ज है। एकल परिवार के रूप में एक या दो बच्चे के परिवार में माता-पिता अपने बच्चों में वो सब देखना चाहते हैं, हासिल करना चाहते हैं जो बच्चे को बाकी से खास बनाये।

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