Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – आत्मनिर्भरता की तेजस उड़ान

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आत्मनिर्भर भारत मोदी सरकार का सपना है। इसे लोकल फार वोकल कहें या कहें लोकल से ग्लोबल तक की यात्रा पर भी हम निकल पड़े हैं। इस बीच हमने विश्वगुरु बनने की उम्मीद को भी पंख लगा दिए हैं। आबादी के मामले में हम पूरे विश्व में चीन को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गए हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र का दावा करने वाला जनवरी 2024 में लोकसभा चुनाव के जरिए लोकतांत्रिक सरकार का गठन करेगा। इस बीच हमने नए लोकसभा भवन में प्रवेश करते ही देश की आधी आबादी को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की गारंटी दी है, किंतु यह गारंटी जनगणना और जातिगत जनगणना के बिना क्या 2029 तक पूरी हो पाएगी, यह अभी साफ नहीं है। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है। तीन राज्यों में मतदान संपन्न होने के बाद चौथे राज्य राजस्थान में मतदान के दिन बैंगलुरु में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लड़ाकू विमान तेजस में उड़ान भरने की तस्वीरें टीवी चैनलों और सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं। चैनलों के उत्साहित एंकर इससे राजस्थान के युवा वोटरों को आकर्षित करने वाले उपक्रम के क्रम में देखकर आत्मनिर्भर भारत की ओर बड़ा कदम बता रहे हैं। इसके पहले भी लड़ाकू विमानों की सवारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भूतपूर्व रक्षा मंत्री कर चुके हैं, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सुखोई पर उड़ान भरी थी। राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू ने भी इसी साल अप्रैल सुखोई का सफर किया। भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और राजनेता राजेश पायलट पायलट रहे हैं।
पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में स्थानीय नेताओं का चेहरा न होकर यह चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और गांरटी पर लड़ा जा रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के हर कदम को चुनाव से जोड़कर देखा जाना स्वाभाविक है। आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत 2014 में की गई थी। इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाना था। इसका असर अब दिखने लगा है। भारत दुनिया के 70 देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है। एक समय में भारत सबसे ज्यादा रक्षा उपकरणों का आयात करने वाला देश था। भारत ने फिलीपींस के साथ ब्रह्मोस मिसाइल सौदे पर हस्ताक्षर कर आत्मनिर्भर भारत की ओर पहला कदम बढ़ाया था। इसके बाद मलेशिया ने भारतीय तेजस विमान में दिलचस्पीओ दिखाई तो इस प्रयास को और गति मिली। मलेशिया को हल्के लड़ाकू विमान बेचने के लिए प्रतिस्पर्धा में तुर्की, चीन, पाकिस्तान, रूस और दक्षिण कोरिया भी शामिल थे मगर, मलेशिया ने चीन और पाकिस्तान से लड़ाकू जेट विमानों को खरीदने से मना कर दिया। इसका कारण यह था कि कुआलालंपुर को सामूहिक रूप से पेश किए गए जेएफ-17 थंडर विमान, दक्षिण कोरिया और रूस की ओर से पेश एफए-50 गोल्डन ईगल और मिग-35 रायल मलेशियाई वायुसेना के लिए सस्ती नहीं थी। भारत अपनी डोमेस्टिक डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग को लगातार मजबूत कर रहा है और हथियारों का निर्यात भी कर रहा है। पिछले छह-सात सालों में भारत का रक्षा निर्यात आठ गुना बढ़ा है। हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल द्वारा विकसित एक सीट और एक जेट इंजन वाला, अनेक भूमिकाओं को निभाने में सक्षम हल्का युद्धक विमान है। इसका विकास हल्का युद्धक विमान या एलसीए नामक कार्यक्रम के अंतर्गत हुआ है। इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी। विमान का आधिकारिक नाम तेजस 4 मई 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था। यह विमान पुराने पड़ रहे मिग-21 का स्थान लेगा। तेजस की सीमित श्रृंखला का उत्पादन 2007 में शुरू हुआ। भारत सरकार ने 83 एलसीए एमके 1ए विमानों की डिलीवरी के लिए 36,468 करोड़ रुपये के ऑर्डर एचएएल को दिए हैं। इसकी डिलीवरी फरवरी 2024 से शुरू होने की उम्मीद है। एलसीए तेजस के अपडेटेड वर्जन और एलसीए एमके 2 के विकास के लिए 9000 करोड़ रुपये से अधिक की मंजूरी दी गई है। विमान इंजन सहित स्वदेशीकरण को और बढ़ावा देने के लिए जून 2023 में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत में जेट इंजन के निर्माण के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर जीई एयरोस्पेस के साथ बातचीत भी की गई थी। भारत अपनी डोमेस्टिक डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग को लगातार मजबूत कर रहा है और हथियारों का निर्यात भी कर रहा है। पिछले छह-सात सालों में भारत का रक्षा निर्यात आठ गुना बढ़ा है। 2016 से 2022 तक भारत ने 13,900 करोड़ का रक्षा निर्यात किया। 2024-25 तक डिफेंस एक्सपोर्ट को 35000 करोड़ रुपये तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक इंडोनेशिया को 250 मिलियन डॉलर के 155 एमएम और 40 एमएम राइफल का एक्सपोर्ट किया गया। इसके बाद अर्मेनिया के साथ 375 मिलियन डॉलर के पिनाका मिसाइलों का सौदा मेक इन इंडिया पहल का ही परिणाम है। भारत में सैन्य उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा देने के क्रम में मोदी सरकार रक्षा के क्षेत्र में भी स्वदेशी विनिर्माण को प्रोत्साहित कर रही है। अमेरिकी दिग्गज रक्षा कंपनी ‘जीई एरोस्पेस के साथ मिल कर एचएएल ने एम-के-टू तेजस बनाने के लिए करार किया है। इस करार पीएम मोदी ने अमेरिका दौरे में किया था। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया था कि भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 2022-23 में 15,290 करोड़ रुपये रहा। तेजस नि:संदेह हमारी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, लेकिन हमने तो आजादी के बाद हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने का सपना देखा था। अब सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिस आत्मनिर्भर भारत होने की बात कही है। वह भारत क्या वास्तव में आत्मनिर्भर हो गया है। अगर इसका जवाब हां है तो आखिर गरीबों को सालोंभर मुफ्त अनाज क्यों देना पड़ रहा है? हमारा युवा बेरोजगार क्यों है और उसे बेरोजगारी भत्ता क्यों देना पड़ रहा है? किसान कर्जमाफी के बाद भी क्यों बार-बार कर्जदार बनते जा रहे हैं, जबकि उनको खाद-बीज के साथ सस्ते दर पर बिजली और पानी तक दिया जा रहा है। महिलाओं को पेंशन देने की बात क्यों चुनावी मुद्दा बन रहा है। महिलाओं और पिछड़ों का आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण की बात करनी पड़ रही है? आधे दर बिजली क्यों देना पड़ रहा है? चुनाव में रेवड़ी बांटने की परंपरा तो आत्मनिर्भर भारत का संकेत नहीं है। आज तेजस के बहाने आत्मनिर्भर होने का दावा कर रहे हैं तो यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि दुनिया कौन-कौन से प्रमुख लड़ाकू विमान हैं और तेजस उनसे अलग कैसे है? पूरी दुनिया में आज ऐसी कोई भी सेना नहीं है, जिनके पास लड़ाकू विमान नहीं है। विश्व के अधिकतर देश अपनी सेना को आधुनिक बनाने के साथ-साथ अपने हथियारों को भी अत्याधुनिक बनाने पर जोर दे रहे हैं। भारत ने हाल ही में करीब 59,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमान को फ्रांस से खरीदा है। अमेरिकी फाइटर जेट वायएफ-12 के पंखों का फैलाव करीब 55 फीट 6 इंच का है, जबकि इसकी लंबाई करीब 101 फीट 8 इंच है। यह विमान लगभग 18 फीट 4 इंच ऊंचा है। विमान का अधिकतम भार 127,000 पाउंड है। मिग-25 और मिग-31 दुनिया का दूसरा सबसे तेज फाइटर विमान है, जिसको रूस ने अमेरिकी विमान वायएफ-12 को रोकने के लिए बनाया था। 1980 के दशक से ही रूसी सेना में यह विमान अपनी सेवा दे रहा है। अमेरिका निर्मित एफ-15 ईगल विमान दुनिया के तीसरे सबसे तेज गति से उड़ान भरने वाला विमान है, जिसको अमेरिका ने रूस के मिग-25 और मिग-31 से मुकाबला करने के लिए बनाया था। अमेरिकी सेना इस विमान को 40 से अधिक सालों को इस्तेमाल कर रही है। सुखोई एसयू-27 को सुखोई कंपनी ने बनाया है। यह विमान दो इंजनों वाला लड़ाकू विमान है। रूस ने इस विमान को अमेरिका के वायएफ-12 और एफ-15 ईगल विमान को टक्कर देने के लिए बनाया है। इस विमान को चीन और भारत सहित कई देशों की सेनाएं इस्तेमाल कर रही हैं। अमेरिकी विमान ग्रुम्मन एफ-14 एक सुपरसोनिक विमान है। दो इंजनों वाले इस विमान में दो सीट लगे हुए हैं। इस विमान को 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के वायु सेना द्वारा इस्तेमाल किया गया। तेजस की खूबियां-तेजस दूर से ही दुश्मन के विमानों पर निशाना साधने में सक्षम है। अत्याधुनिक सिस्टम से लैस होने के कारण दुश्मन के रडार को चकमा देकर उस पर गाज गिरा सकता है। यह विमान उतने ही हथियारों और मिसाइलों को लेकर उडऩे में सक्षम है, जितना सुखोई विमान ले जा सकता है। तेजस विमान आठ से नौ टन तक भारी बोझ लेकर उड़ान भर सकता है। तेजस अपनी गति और वजन के कारण दुनिया के अन्यल विमानों की तुलना में श्रेष्ठ है। हल्केर होने के कारण तेजस की गति बेजोड़ है। इसके अलावा यह 52 हजार फीट की ऊंचाई तक ध्वनि की गति से उड़ सकता है। यह इलेक्ट्रानिक रूप से स्कैटन रडार, बियांड विजुअल रेंज मिसाइल, इलेक्ट्रा निक वारफेयर सुइट से संपन्नै है। तेजस हवा में ईंधन भरकर जंग के लिए दोबारा तैयार हो सकता है। यह क्षमता दुनिया के कम युद्धक विमानों के पास है। तेजस एक साथ नौ तरह के हथियारों से फायर करने में सक्षम है। इस पर एंटीशिप मिसाइल, बम और राकेट भी लगाए जा सकते हैं। यह हवा से हवा में, हवा से जमीन पर और हवा से पानी में भी मिसाइल दागने की क्षमता रखता है। तेजस महज 460 मीटर के रनवे पर दौड़कर उड़ान भर सकता है। यही कारण है कि यह नौ सेना के किसी भी विमानवाहक पोत से टेक आफ और उस पर लैंडिंग करने में सक्षम है। कम उंचाई पर भी यह उड़ान भरकर शत्रु सेना पर नजदीक से हमला कर सकता है। इसके अलावा लेजर गाइडेंड मिसाइल से आक्रमण कर सकता है। जैमर प्रोटेक्शन तकनीक से लैस होने के कारण दुश्मन की आंखों में धूल झोंकने में सक्षम है। भारत की अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे मजबूत हो रही है, भारत रक्षा क्षेत्र के लिए जरूरी सामानों के आयात को कम कर रहा है और उसके लिए मेक इन इंडिया अभियान के तहत घरेलू बुनियादी ढांचे का निर्माण पर ज़ोर दे रहा है। हालांकि, रक्षा के क्षेत्र में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होने में वक्त लगेगा। रक्षा के साथ ही कृषि, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म करनी होगी। फिलहाल इस रास्ते पर तो हम चल पड़े हैं लेकिन मंजिल अभी भी काफी दूर है।

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