Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – चुनाव में बढ़ता बेनामी खर्च और महंगे होते चुनाव

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कोई गरीब ईश्वर तभी चुनाव लड़ सकता है जब उसके बेटे की हत्या हो गई हो और उसका इल्जाम ऐसे लोगोंं पर हो जो इस घटना को सहानुभूति के साथ जातिगत और साम्प्रदायिक रुप में वोट में बदलकर एक ऐसा नेरेटिव बना सके, जो किसी पार्टी को तत्कालिक रुप से लाभ का सौदा लगे। हमारे देश में दिन प्रतिदिन महंगे होते चुनाव के बीच कोई साधारण व्यक्ति लोकसभा, विधानसभा तो दूर की बात है, नगरनिगम, जनपद पंचायत का चुनाव लडऩे की नहीं सोच सकता। चुनाव में रेवड़ी कल्चर के अलावा प्रत्याशी और पार्टी की ओर से जिस तरह के अनाप-शनाप खर्च किये जा रहे हैं, वह चुनाव आयोग की तमाम व्यय सीमाओं को ठेंगा दिखाते हुए बढ़ते ही जा रहे हैं।
चुनाव आयोग अपनी आदर्श आचार संहिता और वित्तीय व्यय भार की सीमा निर्धारित करने के लिए चाहे कितने भी पैरामीटर तय कर ले और व्यय प्रवेक्षक नियुक्त कर ले, किंतु पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में साल दर साल बेनामी खर्च बढ़ता ही जा रहा है। इस समय हो रहे पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव के बीच कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने 1,760 करोड़ की नकदी, शराब और फ्रीबीज जब्त किया है। भारतीय निर्वाचन आयोग के मुताबिक, यह राशि 2018 के विधानसभा चुनाव से पहली की गई जब्ती से 7 गुना अधिक है।
चुनाव आयोग ने बताया कि पांच राज्यों के चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के उद्देश्य से अब तक 1,760 करोड़ रुपये से अधिक के सामान, ड्रग्स, नकदी, शराब और कीमती धातुएं जब्त की गई हैं। अभी तेलंगाना में सबसे अधिक 659.2 करोड़ रुपये के सामान जब्त किए गए हैं। इसके बाद राजस्थान का नंबर है। वहां से 650.7 करोड़ रुपये से अधिक का सामान जब्त किया गया। सबसे कम करीब 50 करोड़ की जब्ती मिजोरम से हुई है, जबकि अभी तेलंगाना में मतदान बाकी है। अनुमान है कि जब्ती का यह आंकड़ा बढ़ सकता है। यह जब्ती 9 अक्टूबर को 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद की गई है।
पिछले चुनाव में यहां 239.15 करोड़ रुपये जब्त किए गए थे। चुनाव आयोग के अनुसार, इससे पहले गुजरात, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में 1400 करोड़ रुपये से अधिक की जब्ती की गई थी। हम राज्यवार जब्ती के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाते हैं कि वर्ष 2018 और 2023 में तेलंगाना में क्रमश: 128 करोड़ और 659 करोड़, राजस्थान में 66 करोड़ और 650 करोड़, छत्तीसगढ़ में 6.2 करोड़ और 76.9 करोड़, मध्य प्रदेश में 33.3 करोड़ और 323 करोड़ और मिजोरम में 4.39 करोड़ और 49.6 करोड़ जब्त किए गए।
ये अलग बात है कि चुनाव आयोग की तरफ से चुनावी खर्चे की एक सीमा तय की जाती है। अब विधानसभा चुनाव में कोई भी विधायक 40 लाख रुपए तक खर्च कर सकता है। इससे पहले चुनाव आयोग ने विधायकों के लिए खर्चे की सीमा 28 लाख तय की थी, जिसे बढ़ाकर अब 40 लाख किया गया है। हालांकि, छोटे राज्यों के लिए ये सीमा 28 लाख है, जो पहले 20 लाख रुपए तक थी। पिछले साल यानी 2022 में चुनाव आयोग ने ये सीमा बढ़ाई थी। चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक इन 40 लाख में से कैश में सिर्फ 10 हजार रुपए खर्च किए जा सकते हैं।
बाकी का ट्रांजेक्शन ऑनलाइन तरीके से करना होता है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने सभी प्रत्याशियों को चुनावी खर्चे के लिए एक बैंक अकाउंट खोलने के भी निर्देश दिए हैं, इसी अकाउंट से चुनाव संबंधी तमाम खर्चे होंगे, जिससे चुनाव आयोग इसकी निगरानी कर पाएगा। इतना ही नहीं प्रत्याशी को चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए एक रजिस्टर में खर्चे से जुड़ी हर जानकारी लिखनी होगी, जिसमें तमाम तरह की रसीदें भी होनी जरुरी है।
चुनाव में पहले तो किसी राष्ट्रीय पार्टी का टिकिट मिलना ही अपने आप में बड़ी बात होती है। राजनीतिक पार्टियां चाहे जो हों वे उम्मीदवार की जाति, धर्म, आर्थिक हालत के साथ जनबल, धनबल, बाहुबल सब देखकर ही चयन करती है। छोटी-छोटी पार्टियां कुछ उम्मीदवार वोट कटवा की तरह भी चुनाव में खड़े होकर बाकी पार्टियों उम्मीदवारों से कुछ न कुछ कमा लेेते हैं। किंतु एक संजीदा, गंभीर उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए वह सारे उपक्रम करता है जैसा उसके प्रतिद्वंदी करते हैं। हम देख रहे हैं कि हमारे देश में सभी तरह के चुनाव दिन प्रतिदिन महंगे और खर्चीले हो रहे हैं। चुनाव में जितने तरह के प्रलोभन, सामान, आश्वासन और मतदाता को तत्कालिक रुप से प्रभावित करने के लिए जो भी संभव हो वह सब किया जाता है। तंग बस्तियों में दारु, मुर्गा और तरह-तरह की रोजमर्रा के उपयोग में आने वाली सामग्री बांटना आम होते जा रही है।

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