Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – बेटियों के समान हक की अनुकरणीय पहल

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

सदी के महानायक कहे जाने वाले सिने स्टार अमिताभ बच्चन और उनकी अभिनेत्री पत्नी राज्यसभा सदस्य जया बच्चन ने अपनी बेटी श्वेता बच्चन नंदा के नाम अपना पसंदीदा बंगला प्रतीक्षा कर दिया। अमिताभ और जया की यह पहल उन पुरुष या पितृसतात्मक समाज की मानसिकता रखने वालों के लिए एक बड़ी मिसाल है जो लड़के-लड़की में फर्क समझते हैं। हमारे समाज की मानसिकता ही कुछ ऐसी है कि पिता की संपत्ति पर बेटे ही अपना हक समझते हैं। बेटा और बेटी में फर्क नहीं समझने वाले अमिताभ बच्चन और जया बच्चन के पुत्र अभिषेक बच्चन के लिये भी उन्होंने संपत्ति छोड़ी है किन्तु बेटी श्वेता के नाम जिस तरह से प्रतीक्षा किया गया है। देश की बहुत सारी बेटियों को अपने पिता से संपत्ति को लेकर इसी तरह की प्रतीक्षा है।

हमारी बेटियां सडिय़ों से एक गाना गुनगुना रही है।

काहे को ब्याही बिदेस रे लखि बाबुल मोरे।

हम तो बाबुल तोरे बागों की कोयल, कुहकत घर घर जाऊँ

लखि बाबुल मोरे। हम तो बाबुल तोरे खेतों की चिडिय़ा चुग्गा चुगत उडि़ जाऊँ

जो माँगे चली जाऊँ लखि बाबुल मोरे, हम तो बाबुल तोरे खूंटे की गइया।

जित हॉको हक जाऊँ लखि बाबूल मोरे लाख की बाबुल गुडिय़ा जो छाड़ी।

काहे को ब्याही विदेस रे लखि बाबुल मोरे।

भइया को दी है बाबुल महला-दुमहला, हम को दी है परदेस,

लखि बाबुल मोरे। मैं तो बाबुल तोरे पिंजड़े की चिडिय़ा

 

हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में बनाया गया था। इसके अनुसार पिता की संपत्ति पर बेटी का उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का।  बेटियों के अधिकारों को पुख्ता करते हुए इस उत्तराधिकार कानून में 2005 में हुए संशोधन और 2020 में सुनाए गए एक फैसले ने पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर किसी भी तरह के संशय को समाप्त कर दिया।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 में संशोधन करके जहां यह स्पष्ट कर दिया गया कि पिता द्वारा खुद से अर्जित की गई संपत्ति पर बेटी का बेटों के बराबर हक है। इस दावे पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि पिता का देहांत बिना वसीयत बनाए हो गया है या बेटी विवाहित है अथवा नहीं। वहीं दूसरी ओर 2020 में सुनाए गए एक फैसले में कहा गया कि बंटवारे में मिलने वाली पैतृक संपत्ति पर भी बेटी अपना दावा कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल जनवरी में पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसमें प्रावधान किया गया कि पिता की संपत्ति (खुद से अर्जित की हुई और बंटवारे में मिली हुई) को विरासत में पाने का हक बेटियों को है। हिंदू पिता जिसका बिना वसीयत किए देहांत हो जाता है उनकी संपत्ति पर बेटी को परिवार के दूसरे सदस्य जैसे कि पिता के भाई या भाई के बेटे-बेटियों पर वरियता दी जाएगी और अपने भाइयों के बराबर अधिकार होंगे।

2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार की सदस्य मानी जाती थीं, हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी नहीं, हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते/होती हैं जिनका अपने से पहले की चार पीढिय़ों की अविभाजित संपत्तियों पर हक होता है। हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार का भी हिस्सा नहीं माना जाता है। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।

अमिताभ बच्चन और जया बच्चन का जुहू में सबसे पुराना बंगला ‘प्रतीक्षाÓ है, जो उनके दिल के बेहद करीब है। यही वह बंगला है, जहां अमिताभ अपने पिता हरिवंश राय बच्चन और मां तेजी बच्चन के साथ रहा करते थे। बच्चन परिवार ने दोनों उपहार कार्यों के लिए कुल 50.65 लाख रुपये की स्टांप ड्यूटी का भुगतान किया है। बंगले का बाजार मूल्य 50.63 करोड़ रुपये से अधिक दिखाया गया है।

हमारी सामाजिक व्यवस्था में काफी बदलाव आ गया है लेकिन सोच अभी भी पूरी तरह बदल नहीं पाई है। लोगों की आज भी सोच हैं कि पिता की जायदाद पर पहला हक बेटों का होता है। जबकि भारत में बेटियों के हक में कई कानून बने हैं। उसके बाद भी समाज में कई पुरानी परंपरा आज भी विद्यमान है। आज भी सामाजिक स्तर पर पिता की प्रापर्टी पर पहला हक पुत्र को दिया जाता है। बेटी की शादी होने के बाद वह अपने ससुराल चली जाती है। तो कहा जाता है कि उसका जायदाद से हिस्सा खत्म हो गया। बेटियां अपने पिता-भाई-भाभी और घर के सदस्यों से मुंह खोलकर कानूनी रूप से प्रदत्त अपना हिस्सा भी नहीं मांग सकती। वे तो इसी बात से खुश हो जाती हैं कि रखाबंधन, तीजा, भाई दूज और बाकी त्यौहार में उसकी पूछ परख हो जाये। मायके में उसे थोड़ा सम्मान मिल जाये। एक स्त्री की चाहत को लेकर सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम की कविता-

अपने पूरे होश-ओ-हवास में

लिख रही हूँ आज

मैं वसीयत अपनी

मेरे मरने के बाद

खंगालना मेरा कमरा

टटोलना, हर एक चीज़

घर भर में, बिन ताले के

मेरा सामान.. बिखरा पड़ा है

दे देना… मेरे खवाब

उन तमाम.. स्त्रियों को

जो किचेन से बेडरूम

तक सिमट गयी.. अपनी दुनिया में

गुम गयी हैं

वे भूल चुकी हैं सालों पहले

खवाब देखना !

बाँट देना.. मेरे ठहाके

वृद्धाश्रम के.. उन बूढों में

जिनके बच्चे

अमरीका के जगमगाते शहरों में

लापता हो गए हैं !

टेबल पर.. मेरे देखना

कुछ रंग पड़े होंगे

इस रंग से ..रंग देना उस बेवा की साड़ी

जिसके आदमी के खून से

बोर्डर रंगा हुआ है

तिरंगे में लिपटकर

वो कल शाम सो गया है !

आंसू मेरे दे देना

तमाम शायरों को

हर बूँद से

होगी गज़़ल पैदा

मेरा वादा है !

मेरा मान, मेरी आबरु

उस वैश्या के नाम है

बेचती है जिस्म जो

बेटी को पढ़ाने के लिए

इस देश के एक-एक युवक को

पकड़ के

लगा देना इंजेक्शन

मेरे आक्रोश का

पड़ेगी इसकी ज़रुरत

क्रांति के दिन उन्हें!

 

दीवानगी मेरी

हिस्से में है

उस सूफी के

निकला है जो

सब छोड़कर

खुदा की तलाश में !

 

बस !

बाक़ी बची

मेरी ईष्र्या

मेरा लालच

मेरा क्रोध

मेरा झूठ

मेरा स्वार्थ

तो

ऐसा करना

उन्हें मेरे संग ही जला देना…!

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