Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – हलाल या हराम: चुनाव तक है ये कोहराम

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कहावत है कि मुर्गा अपनी जान से जाये, खाने वाले को मजा न आये। मुर्गा या अन्य कोई जानवर जिसे खाने से आपका धर्म, संस्कार बाधित नहीं होता, उसे आप अपनी खान-पान की पद्धति जलवायु और उपलब्धता के आधार पर खाते हैं। बहुत सारे लोगों को मांसाहार कतई नहीं भाता वे शाकाहारी, फलहारी होते हैं। इस्लाम को मानने वाले लोग हलाल का खाते हैं। हलाल अरबी भाषा का शब्द है। इसका हिंदी में मतलब होता है स्वीकार्य। कुरान शरीफ में भी दो अरबी शब्दों का जिक्र है। हलाल और हराम। हलाल यानी कि इस्लाम धर्म के हिसाब से जो स्वीकार्य हो, जिसकी इजाजत हो। दूसरा शब्द हराम यानी कि जो अस्वीकार्य हो, जिसकी इजाजत नहीं हो। हलाल की परिभाषा को इस्लाम के मुताबिक क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए तक सीमित कर दिया है और इस्लाम के मुताबिक जो दो चीजें हर हाल में हराम हैं, वो है सुअर का मांस और शराब। परन्तु मैं बहुत सारे मुसलमानों को जानता हूं जो दोस्तों की महफिल में जाम से जाम टकराते हैं।
बकौल मिर्जा गालिब,
कहां मय-ख़ाने का दरवा•ाा गालिब और कहां वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।

इस्लामिक नियमों में जो भी मांस हलाल है, उसके बारे में भी साफ-साफ बताना पड़ता है कि वो मांस किस जानवर का है। हलाल एक तरीका है जिससे जानवरों का कत्ल होता है, इसमें जानवर की गर्दन की नस पर एक कट लगाया जाता, ताकि उसका पूरा खून बाहर निकल जाए। हलाल मीट के लिए जानवर का जिंदा होना अनिवार्य शर्त है। जानवरों के कत्ल के दौरान शाहदा पढ़ा जाता है, जो अरबी का एक शब्द है, जिसका मतलब अल्लाह में यकीन रखना है। इसे जानवरों के कत्ल के दौरान पढ़ा जाता है। हिंदू या सिख जानवरों का कत्ल करने के लिए झटका टर्म का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें चाकू के एक ही वार में जानवर की मौत हो जाए और उसे ज्यादा दर्द न हो। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हलाल सर्टिफिकेट प्रोडक्ट को प्रदेश में बैन कर दिया है। 18 नवंबर के आदेश पर मंगलवार को कार्रवाई तेज होती दिखी। अधिकारी दुकानों और शॉपिंग माल में हलाल उत्पादों की जांच करते दिखे। मीडिया के सवालों पर अधिकारियों ने हलाल उत्पादों की बिक्री पर पूरी तरह रोक लगाने की बात की। योगी आदित्यनाथ सरकार के हलाल सर्टिफिकेट वाले प्रोडक्ट्स को पूरी तरह से बंद करने के आदेश के बाद से ही प्रदेश में बहस चल पड़ी है कि क्या खाने के किसी भी सामान को यूं ही बैन कर देना जायज है। अब जायज और नाजायज का फैसला तो अदालत और सरकार का काम है।
इस्लाम कहता है कि जानवर का मीट तो खाया जा सकता है, लेकिन उसमें खून नहीं होना चाहिए। लिहाजा जानवर की गर्दन पर एक कट लगाया जाता है, ताकि धीरे-धीरे उसका पूरा खून बह जाए। इस दौरान जानवर तड़पकर दम तोड़ता है। वहीं, झटका में एक ही झटके में गर्दन कटकर अलग हो जाती है। तो इस्लाम के जो अनुयायी मांस बेचते हैं, वो कहते हैं कि उनका मीट हलाल है, जबकि जो हिंदू या सिख समुदाय के लोग इस काम में शामिल हैं, वो कहते हैं उनका मीट झटका है।
योगी सरकार के आदेश में तो दवाओं को शामिल किया गया तो बात इससे आगे की भी है। एक अन्य बात ये है कि दवाइयां और खासतौर से कैप्सूल बनाने में जिलेटिन का इस्तेमाल होता है, जो सुअर की चर्बी से बनता है। इसलिए कई बार मुस्लिम परिवार के लोग कैप्सूल खाने से इनकार कर देते हैं।
ऐसा सर्टिफिकेट जारी करने के लिए देश में कोई आधिकारिक सरकारी संस्था नहीं है। कुछ संस्थाएं हैं, जिन्हें मुस्लिम धर्म के अनुयायी और दुनिया के तमाम इस्लामिक देश मान्यता देते हैं और मानते हैं कि उस संस्था की ओर से जारी हलाल सर्टिफिकेट सही होगा। भारत से जो भी प्रोडक्ट दुनिया के तमाम इस्लामिक देशों को भेजे जाते हैं, उनके लिए ये सर्टिफिकेशन जरूरी होता है।
हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अरबों की कमाई हो रही है। अकेले भारत में लगभग 400 एफएमसीजी कंपनियों ने हलाल सर्टिफिकेट लिया है। लगभग 3200 उत्पादों का यह सर्टिफिकेशन हुआ है। यह सर्टिफिकेट लेने की कतार में यूपी सहित देशभर के फाइव स्टार होटलों से लेकर रेस्टारेंट तक शामिल हैं। यूपी में हलाल सर्टिफिकेट लेने वाले होटलों व रेस्तरां की संख्या लगभग 1,400 है। यहां हलाल सर्टिफाइड उत्पादों का बाजार 30 हजार करोड़ रुपये का है। ऐसे में इससे कहीं अधिक कमाई का लालच कंपनियों को है। इसके प्रभाव का असर ऐसे समझा जा सकता है कि वर्ष 2020 में योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि को भी हलाल सर्टिफिकेट लेना पड़ा था। दरअसल, आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के तहत आने वाले 57 देशों में उत्पाद बेचने के लिए यह सर्टिफिकेट जरूरी है। हलाल सर्टिफिकेट के एवज में कंपनियों को बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ता है। पहली बार की फीस 26 हजार से 60 हजार रुपये तक है। प्रत्येक उत्पाद के लिए 1,500 रुपये तक अलग से देने पड़ते हैं। सालाना नवीनीकरण फीस 40 हजार रुपये तक है।
वर्ष 1974 में हलाल प्रमाणिकता के रूप में हुई थी। यह साल 1993 तक सिर्फ स्लॉटर मांस उत्पादों पर लागू था, लेकिन बाद में अन्य खाद्य उत्पादों, दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों समेत कई चीजों के लिए किया जाने लगा।
यूपी में शासनादेश जारी होने के बाद स्थानीय बाजार में बिकने वाली खाद्य सौंदर्य प्रसाधन एवं दवा सामग्री के हलाल प्रमाणन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। अब सिर्फ निर्यात वाले उत्पाद पर ही हलाल प्रमाणन अंकित किया जाएगा। खाद्य एवं औषधि निरीक्षक नियमित जांच के दौरान संबधित उत्पाद की गुणवत्ता के साथ ही हलाल प्रमाणन संबंधी तथ्य की जांच करेंगे।
हलाल प्रमाणन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। अब सिर्फ निर्यात वाले उत्पादन पर ही हलाल प्रमाणन अंकित किया जाएगा। इस दौरान किसी उत्पाद तैयार करने वाली कंपनी और बेचने वाले के खिलाफ भी कार्रवाई की जायेगी। हलाल सर्टिफिकेशन देकर उत्पाद बेचने वाली कंपनियों पर लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज हुई है। शैलेंद्र शर्मा की शिकायत पर हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली, हलाला काउंसिल आफ इंडिया मुंबई और जमीयत उलेमा महाराष्ट्र मुंबई हलाल सर्टिफिकेशन देकर सामान बेचने वाली अज्ञात कंपनियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी/153ए/298, 284, 420, 467, 468, 471, 505 में केस दर्ज किया गया है।
उत्तरप्रदेश से शुरू हुआ यह सिलसिला अन्य प्रदेशों में भी रंग लायेगा। लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे को गर्म रखा जायेगा ताकि इसे एक अलग नजरिए से देखा जा सके। इस बीच हलाल या झटके से मरने वाले जानवर यही कह सकते हैं-
वो बेदर्दी से सर काटे और अमीर मैं कहूं उनसे
हुजूर आहिस्ता… आहिस्ता जनाब आहिस्ता…।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU