सुभाष मिश्र
वर्ष 2026 का हम स्वागत कर रहे हैं अपने प्रिय कवि स्वर्गीय विनोद कुमार शुक्ल जिनका जन्मदिन भी है, उनकी कविता के माध्यम से यही कहना चाहते हैं:-
जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के
जाते-जाते जाया जा सकेगा उस पार
जाकर ही वहाँ पहुँचा जा सकेगा
जो बहुत दूर संभव है
पहुँचकर संभव होगा
जाते-जाते छूटता रहेगा पीछे
जाते-जाते बचा रहेगा आगे
जाते-जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब
तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा
और कुछ भी नहीं में
सब कुछ होना बचा रहेगा।
नया साल मनुष्य के जीवन में समय का मात्र परिवर्तन नहीं है। यह आत्म-चेतना, आत्म-समीक्षा और आत्म-विकास का अवसर है। भारतीय दर्शन सदैव यह मानकर चला है कि जीवन पुनरावृत्ति और नवीकरण के द्वंद्व में चलता है। वैदिक ऋषियों ने लिखा ‘नवो नवो भवति जातवेदा:Ó अर्थात् अग्नि प्रतिदिन नयी हो उठती है। यह वाक्य बताता है कि जीवन में हर दिन और हर वर्ष नये अर्थ रचता है। इस नयेपन की पहली पहचान उम्मीद है। उम्मीद वह आंतरिक शक्ति है, जो मनुष्य को, परिस्थितियों के विपरीत, आगे बढऩे का आधार देती है। विक्टर ह्यूगो ने कहा है ‘ईवन द डार्केस्ट नाइट विल एंड ऐंड द सन विल राइज़।Ó ( सबसे अँधेरी रात भी बीतती है और सूरज अवश्य उदित होता है।) वर्ष का अंत भी इसी अंधकार और प्रकाश के संधिकाल की तरह है। बीती हुई कठिनाइयों के बावजूद आने वाले समय पर भरोसा करने का अवसर। उमंग नया साल का दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है। उमंग केवल प्रसन्नता नहीं, जीवन के प्रति उत्साह और ऊर्जा का भाव है। जीवन में जो उमंग है वह किसी न किसी उपयोगिता, सेवा और जिम्मेदारी से जन्म लेती है। नया साल इस उमंग को अधिक सार्थक रूप में देखने का अवसर प्रदान करता है कि हमारे लक्ष्य केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित न हों। वे समाज और मानवता से जुड़ें।
जीवन-ऊष्मा भी नए वर्ष का अनिवार्य तत्व है। ऊष्मा से तात्पर्य केवल भावनात्मक जीवंतता नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व को नए अर्थ देने की क्षमता है। जर्मन दार्शनिक हाइडेगर का कथन है ‘बीइंग इज़ ऑलवेज़ ए बीइंग-टुवर्ड-फ्यूचर।
( मनुष्य का अस्तित्व सदैव भविष्य की ओर उन्मुख होता है।)
नया वर्ष इस तथ्य को और अधिक स्पष्ट करता है कि मनुष्य अपने अतीत से निर्मित होता है, पर भविष्य में आकार लेता है। नए साल का प्रभाव व्यक्ति से घर तक और घर से समाज तक विस्तृत होता है। भारतीय परिवार-व्यवस्था में घर केवल रहने की जगह नहीं, बल्कि मूल्यों की पाठशाला रहा है। नया साल इस आत्मीयता को मजबूत करता है। समाज भी नए साल का केंद्र है। समाज विचारों और कार्यों से चलता है। यदि हमें भविष्य का समाज बेहतर चाहिए, तो अभी हमें अपनी भूमिका निभानी होगी। राष्ट्र के संदर्भ में नया साल और भी व्यापक अर्थ ग्रहण करता है। राष्ट्र केवल राजनीतिक सत्ता की संरचना नहीं, वह समूची सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। नया साल यह याद दिलाता है कि राष्ट्र का स्वरूप उसके नागरिकों के विचारों और व्यवहार से तय होता है।
अतीत की समीक्षा भी नए साल का महत्वपूर्ण आधार है। हर वर्ष अपने भीतर कुछ उपलब्धियाँ और कुछ विफलताएँ समेटे आता है। परंतु नए साल का दर्शन यह नहीं कहता कि अतीत को नकार दिया जाए। वह कहता है कि अतीत को समझा जाए। नया साल इन स्मृतियों को सार्थक बनाने का अवसर है।
नववर्ष का सांस्कृतिक अर्थ विश्व-मानसिकता से भी जुड़ा है। दुनिया की लगभग हर सभ्यता ने नववर्ष को आत्मिक पुनर्जागरण के उत्सव से जोड़ा है।
नववर्ष के संकल्प मात्र दिखावा नहीं होते। संकल्प उम्मीद की भाषा है। नया साल परिवर्तन की चेतना भी है। यह चेतना बाहरी उत्सवों में नहीं, भीतर की तैयारी में बसती है। जर्मन कवि रिल्के ने लिखा है— ‘ऐंड नाउ वी वेलकम द न्यू ईयर, फुल ऑफ थिंग्स दैट हैव नेवर बीन। ( नया साल उन अनदेखी संभावनाओं का स्वागत है जो पहले कभी नहीं थीं।)
मनुष्य समय तत्व से घिरा हुआ है। समय का प्रवाह अनवरत है, पर मनुष्य की समझ सीमित। नया साल इसी सीमितता में अर्थ खोजने का अवसर है। अंतत: नया वर्ष का अर्थ है कि उम्मीद, उमंग और जीवन-ऊष्मा तभी पूर्ण अर्थ ग्रहण करती है, जब वे घर, समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी से जुड़ें। नया साल समय का पर्व नहीं है। चेतना का आरम्भ है। यह मनुष्य को स्वयं से संवाद करवाता है, और यही संवाद जीवन की गहराई है।
इसीलिए नया साल कहता है कि मनुष्य अतीत को सीख बनाकर भविष्य को आकार दे, और वर्तमान को अर्थपूर्ण बनाकर अपने जीवन को प्रासंगिक रखे।
नव वर्ष शुभ हो !