आदिवासी साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

आदिवासी साहित्य पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

0 केंद्रित हिंदुस्तानी प्रचार सभा ने मुंबई में कराया आयोजन

मुंबई। विगत दिनों 5 जुलाई 2025 को मुंबई की 1942 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित संस्था ‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा’ द्वारा एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । आयोजन का मुख्य विषय था ‘आदिवासी साहित्य और उसकी चुनौतियाँ ‘ । संभवतः पहली बार किसी भाषा और संस्कृति पर केंद्रित संस्था ने आदिवासी साहित्य विषय पर केंद्रित आयोजन किया है। दो सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम में सुबह के सत्र में मुख्य अतिथि टैगोर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति संतोष चौबे , सत्र के अध्यक्ष मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुख करुणाशंकर उपाध्याय थे । सत्र की शुरुआत में संस्था की विशेष कार्यअधिकारी डॉ. रीता कुमारी की प्रस्तावना के पश्चात ट्रस्टी एवं मानद सचिव फिरोज पैच ने स्वागत वक्तव्य दिया । संतोष चौबे ने आदिवासी साहित्य को लेकर अनुभव और अनुभूति के संदर्भ में विस्तार से चर्चा की । श्री चौबे ने अनुभूति और सहानुभूति जैसे पदों की आदिवासी साहित्य लेखन में उपस्थित को लेकर वक्तव्य दिया । मुख्य विषय पर केंद्रित इस सत्र में रांची से आई कवि और एक्टिविस्ट वंदना टेटे ने इस बात पर जोर दिया कि आदिवासी साहित्य के गंभीर पाठक तैयार होने चाहिए और आदिवासियों को सहानुभूति की नहीं सहयोग की जरूरत है । डॉ हूबनाथ पांडे ने ‘आदिवासी संस्कृति और उसके भविष्य’ को लेकर अपने वक्तव्य में आदिवासी संस्कृति के अनछुए पहलुओं का उल्लेख किया । प्राध्यापक डॉ विनोद कुमरे ने ‘समकालीन आदिवासी साहित्य : स्वरूप और दिशाएँ ‘ में इधर लिखा जा रहे आदिवासी साहित्य पर विस्तार से चर्चा की । भोपाल से आए डॉ . जवाहर कर्नावट ने ‘आदिवासी हिंदी साहित्य : विमर्श और विविध आयाम’ के संदर्भ में देश – दुनिया में लिखे जा रहे आदिवासी साहित्य का उल्लेख किया ।
दोपहर को दूसरे सत्र में लेखिका मधु कांकरिया ने ‘भूमंडलीकरण और बाजारवाद के दौर में आदिवासी जीवन की चुनौतियाँ ‘ विषय परअपने संस्मरण सुनाए और बाजार द्वारा पैदा की जा रही चुनौतियों का उल्लेख किया । अविनाश पोईनकर ने ‘आदिवासी साहित्य , संस्कृति और यथार्थ ‘ को लेकर अपने संस्मरण सुनाए और बताया कि आदिवासियों का जीवन जिस तरह का है , उस तरह का यथार्थ साहित्य में आना चाहिए । बजरंग बिहारी तिवारी ने ‘पूर्व आधुनिक हिंदी साहित्य में आदिवासी ‘ विषय को केंद्र में रखकर दलित साहित्य के संदर्भ में आदिवासी साहित्य की जरूरत और उसकी प्रस्तुति को लेकर चर्चा की । श्री तिवारी ने पूर्व साहित्य के संदर्भ में समकालीन साहित्य की चुनौतियों को भूमंडलीकरण के संदर्भ में देखने का आग्रह भी किया । दिल्ली से आए कहानीकार और उपन्यासकार भालचंद्र जोशी ने कहा कि , आदिवासी साहित्य विशेषकर कहानी और उपन्यास में भी वही कठिनाई सामने आएगी जो अन्य भाषा की कहानियों – उपन्यासों के लिए आती है , यानी जीवन यथार्थ के कथा यथार्थ में रूपांतरण में अनुभव को एक जरूरी संवेदना की उपस्थिति के साथ अभिव्यक्त किया जाए ।श्री जोशीने इस बात का विशेष उल्लेख किया कि आदिवासी जीवन -परिवेश और संस्कृति सूचनाओं और जानकारी की तरह नहीं ,वह कथा का जरूरी हिस्सा बनकर रचना में शामिल हो । उन्होंने आदिवासियों के बीच अपनी उम्र का एक लंबा हिस्सा जो बिताया है , उसको लेकर संस्मरण भी सुनाए ।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मराठी के वरिष्ठ लेखक श्री दामोदर खडसे ने सारे वक्ताओं के वक्तव्यों पर अपनी टिप्पणी करते हुए अंत में कहा कि इस आयोजन की बड़ी उपलब्धि यह रही कि हिंदी के महत्वपूर्ण लेखकों ने आदिवासी साहित्य और जीवन को लेकर इतनी विस्तार में और गंभीर चर्चा की है । आयोजन को लेकर अंत में डॉ रीता कुमार ने आभार व्यक्त किया और दोनों सत्रों का संचालन संस्था के राकेश कुमार त्रिपाठी ने किया ।
इस आयोजन में लगभग सभी वक्ताओं ने इस बात की विशेष प्रशंसा की , मुंबई की तेज बारिश के इस मौसम में भी हॉल श्रोताओं से भरा हुआ था बल्कि कुछ लोग हॉल के बाहर खड़े होकर सुन रहे थे । श्रोताओं की ऐसी उपस्थित सामान्यतः साहित्यिक आयोजनों में कम ही होती है । यह आयोजन और संस्था की अतिरिक्त उपलब्धि की तरह देखा जा सकता है ।

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