Bhatapara news- जानें कौन सी कटीली झाड़ियां हैं जल और फसल संरक्षक….

पर्यावरण सुधार के लिए है प्रमाणिक

 

राजकुमार मल

भाटापारा- मजबूत और तीखे कांटे। पहचान है इन पांच वृक्षों के लेकिन इसके ही दम पर फसलों की रक्षा तय की जाती है। बेमिसाल इसलिए क्योंकि यह पांचों वृक्ष जल संरक्षण के प्राकृतिक माध्यम है। इस गुण की वजह से ही इन्हें मरुस्थलीकरण जैसी समस्या से निजात दिलाने वाला माना जा रहा है।

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जलवायु परिवर्तन के दौर में अल्प या अतिवृष्टि। मौसम में असमय उतार-चढ़ाव जैसी प्रतिकूल परिस्थितियां हर साल देखी जा रहीं हैं। पर्यावरण सुधार के लिए पौधरोपण पर जोर दिया जा रहा है लेकिन भरपूर उपेक्षा की जा रही है बबूल, कीकर, खेजड़ी, सीसल और बोगेनवेलिया की। यह तब, जब इनमें पर्यावरण सुधार के गुणों की प्रामाणिकता सिद्ध हो चुकी है।

अहम है यह गुण

कांटेदार वृक्षों की यह प्रजातियां इसलिए विशेष मानी जाती हैं क्योंकि शुष्क क्षेत्र में भी भरपूर बढ़वार लेती हैं। बेहद कम पानी में तैयार होने वाले यह वृक्ष अपने कांटों की वजह से पक्षियों को सुरक्षित आश्रय स्थल देते हैं, तो पत्तियों से मवेशियों की भूख मिटाते हैं। बेहद अहम इसलिए क्योंकि कठिन परिस्थितियों में पनपने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की ताकत रखते हैं। इस वजह से वानिकी वैज्ञानिक संरक्षण और संवर्धन की जरूरत महसूस कर रहे हैं।

बेहद उपयोगी छाल और फल

बबूल की छाल और गोंद का उपयोग औषधि निर्माण ईकाइयां कर रहीं हैं। कीकर के फल और छाल का उपयोग पेट की बीमारियां दूर करने व घाव को शीघ्र भरने में अहम माना जाता है। सीसल के फल में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होते हैं। यह गुण इन्हें इसलिए अहम बनाते हैं क्योंकि औषधि निर्माता इकाइयां बड़ी मात्रा में छाल, फल और बीज की खरीदी को प्राथमिकता दे रहीं हैं।

मजबूत होती है लकड़ियां

बबूल और कीकर की लकड़ियों से कृषि उपकरण तो बनाए ही जाते हैं, अब फर्नीचर उद्योग में भी मांग बढ़ने लगी है। इसके अलावा ईंधन और चारकोल इंडस्ट्रीज भी नया मांग क्षेत्र बन रहा है। गोंद और रेजीन इंडस्ट्रीज पहले से ही खरीददार क्षेत्र रहे हैं। यानी हर क्षेत्र के लिए उपयोगी है बबूल, कीकर, खेजड़ी, सीसल। बोगेनवेलिया का नाम इसलिए तेजी से अपनी पहचान बना रहा है क्योंकि इसे गार्डनिंग में जगह मिल रही है।

पर्यावरणीय संतुलन के लिए जरूरी

कांटेदार वृक्ष मृदा संरक्षण, बायोफेंसिंग और जलवायु अनुकूलन में सहायक होते हैं। इनकी पत्तियां व फल पशुओं के लिए चारे का स्रोत होते हैं, और कई वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इनकी लकड़ी ईंधन और काष्ठ उद्योग में उपयोगी होती है। समग्र रूप से, ये वृक्ष पर्यावरणीय संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

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