महात्मा गांधी की छवि और विचारधारा पर हाल के वर्षों में जो विवाद और नकारात्मकता बढ़ी है, वह भारतीय समाज में गहरे वैचारिक, सामाजिक विभाजन और विचारधारात्मक संघर्ष का संकेत है। यह स्थिति न केवल गांधी की विरासत को चुनौती देती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि हम किस प्रकार का भारत बनाना चाहते हैं। विभाजन के लिए गांधीजी को दोष देने वाले कथित तौर पर उनको मुसलमानों का मसीहा बताने वाले लोग ये भूल जाते हैं कि अपने आपको हिन्दू कहलाने पर गर्व करने वाले ईश्वरवादी गांधीजी धर्म में आस्था रखते थे किन्तु गांधीजी राजनीति में धर्म के मेल की बात करते थे, तब उनका मतलब था कि राजनीति में नैतिकता हो, सत्य हो, अहिंसा हो जो धर्म सिखाता है। देश में जब लोकतंत्र आया तो धर्म को राजनीति में कुछ दलों ने घुसाया। धर्म के नाम से साम्प्रदायिकता घुस आई। धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर संगठन बने और धर्म के आधार पर वोट मांगने लगे। वास्तव में यह धर्म नहीं साम्प्रदायिकता है जो एक-दूसरे से नफरत से पनपती है। धर्म व्यक्तिगत श्रद्धा की चीज है। धर्म की राजनीति सच्चे लोकतंत्र को नष्ट करती है। किन्तु आज धर्म, जाति, सम्प्रदाय जाति के केन्द्र में है।
कथित रूप से हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले लोग अक्सर ये धर्म पर आधारित राष्ट्र राज्य में लोकतंत्र नहीं रहता। किसी इस्लामी देश में लोकतंत्र महीं है। हिन्दू राष्ट्र अगर हुआ तो तानाशाही होगी। हिन्दू को साम्प्रदायिक बनाने की साजिश वे शक्तियां करती हैं जो सामंतवाद और पूँजीवाद को जीवित रखना चाहती हैं।
बहुत सारे लोग हिन्दुओं के धर्मनिरपेक्ष होने को किसी सजा के रूप में देखते हैं जैसे यह कोई बुराई हो। यदि बहुसंख्यक हिन्दू भी साम्प्रदायिक हो जाएंगे तो उनका अपना नाश तो होगा ही साथ ही देश में लोकतंत्र भी नहीं रहेगा और न हम स्वाधीन राष्ट्र रह सकेंगे। हम किस तरह का अखंड भारत चाहते हैं, हमें इस पर विचार करना होगा।
आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे व्हाट्सएप पर फैली हुई आधी-अधूरी जानकारी और गलतफहमियां तेजी से फैल रही हैं। यह जानकारी अक्सर बिना किसी संदर्भ या प्रमाण के होती है, जिससे लोगों के विचारों में विकृति आ जाती है। इस प्रकार की जानकारी ने एक बड़ा वर्ग तैयार किया है जो गांधी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखता है।
पिछले एक दशक में कुछ राजनीतिक और सामाजिक समूहों ने गांधी को निशाना बनाकर एक नफरत भरा नरेटिव तैयार किया है। यह नरेटिव विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने, देश विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के लिए गांधी को जिम्मेदार ठहराने पर केंद्रित है। इस प्रकार की विचारधारा ने समाज में विभाजन को बढ़ावा दिया है और गांधी की छवि को धूमिल किया है।
यह नकारात्मकता अब छोटे-छोटे समुदायों और कॉलोनियों तक पहुंच गई है। जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुबह उठकर गांधी की समाधि पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, फिर लाल किले से भाषण देने जाते हैं। वहीं दूसरी ओर कॉलोनियों में लोग गांधी जी की तस्वीरें हटाने की मांग कर रहे हैं। यह विरोधाभास समाज में गहरी विभाजन की स्थिति को दर्शाता है।
दरअसल हुआ यह है कि गांधी का विरोध देशभर में 90 प्रतिशत से ज्यादा वे लोग कर रहे हैं जिन्होंने गांधी को 10 प्रतिशत भी नहीं पढ़ा है। गांधी मुसलमानों के पक्षधर नहीं थे। गांधी सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे। यही कारण है कि आज 200 से अधिक देशों में उनकी मूर्तियां और संग्रहालय स्थापित है। गांधी से कितनी भी घृणा की जाए या घृणा का प्रचार किया जाए लेकिन गांधी के विचार को खत्म करना किसी भी शक्ति के बस की बात नहीं है। गांधी के धुर विरोधी भी गांधी की समाधि पर माथा टेकने जरूर जाते हैं। क्योंकि उनमें इतनी राजनीतिक समझ तो है कि गांधी का विरोध अंतत: सत्य, अहिंसा और मानवीयता का विरोध हो जाएगा। यह देखा जाता है कि कोई भी राजनीतिक दल गांधी के प्रति रुचि या आदर चाहे ना रखें लेकिन खुलकर स्पष्ट रूप से अपनी घृणा प्रकट नहीं करता है क्योंकि पूरे विश्व में ऐसे व्यक्ति की छवि धूमिल हो जाएगी। पूरे विश्व में गांधी की जो विराट छवि है उसको धूमिल करना आसान नहीं है। यही कारण है कि सामान्य नासमझ या गांधी के विचारों से अपरिचित व्यक्ति छाती पीटकर विरोध-विलाप कर लेता है, अपनी घृणा प्रकट कर देता है लेकिन कोई भी बड़ा राजनीतिज्ञ भूलकर भी ऐसी हरकत नहीं करता है।
गांधी की विचारधारा में अहिंसा, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता का महत्व है। उनके सिद्धांतों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नैतिक आधार प्रदान किया। यदि हम गांधी की शिक्षाओं को नकारते हैं तो हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ रहे हैं जो नफरत, हिंसा, और विभाजन पर आधारित है।
इस गंभीर मसले पर विचार करते हुए हमें यह सवाल करना चाहिए कि हम किस प्रकार का भारत बनाना चाहते हैं। क्या हम एक ऐसा भारत चाहते हैं जो गांधी की शिक्षाओं पर आधारित हो, जिसमें सहिष्णुता, विविधता और मानवता का सम्मान हो? या हम एक ऐसा भारत चाहते हैं जो नफरत, हिंसा और विभाजन के सिद्धांतों पर आधारित हो?
गांधी की छवि और विचारधारा पर हो रहे हमलों का सामना करने के लिए समाज में समरसता और अहिंसा के पक्षधरों को एकजुट होकर उनके सिद्धांतों को पुन: स्थापित करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि एक ऐसा समाज बनाया जाए जो नफरत, हिंसा और अमानवीयता से मुक्त हो और जहां सभी धर्मों, जातियों और समुदायों का सम्मान किया जाए। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यह आवश्यक है क्योंकि विश्व में भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और अहिंसा प्रेमी देश की तरह है।
नासमझी के कारण गांधीजी के प्रति बढ़ती नफऱत

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