सुभाष मिश्र

रायपुर में हुए हिन्दी युग्म उत्सव के बाद बहुत से हिन्दी के स्थापित लेखकों को अब नये प्रकाशकों की तलाश है। लेखकों को इस परिघटना ने उद्वेलित किया है कि वे इतने वर्षों तक ठगे गए। पाठकों की बदलती रुचि और माध्यमों को देखकर भी प्रकाशक अब नये तरीके की रणनीति और मार्केटिंग कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर चर्चित लोगों द्वारा किताबों की चर्चा, चर्चित किताबों को फैशन की तरह अपने हाथ में दिखाने की चाहत और नई वाली हिन्दी, बोल्ड सब्जेक्ट भी किताब बिक्री का आधार बन रहे हैं। बहुत सारे प्रकाशक आडियो बुक पर रायल्टी की 70 प्रतिशत तक राशि अपने पास रखते हैं वहीं किताब पर बनने वाली फिल्म को लेकर भी यही रवैय्या है। वहीं हिन्दी युग्म जैसे प्रकाशक अपने पास किताब का कापीराइट रखकर केवल एनओसी के आधार पर सहमति दे देता है, उसकी सारी रायल्टी लेखक को मिलती है। आजकल एआई आने के बाद डबिंग करने के लिए डबिंग आर्टिस्ट की जरुरत खत्म होती जा रही है। वैसे हिन्दी के मंचीय कवि जो अपने आप को युग कवि कहलाना पसंद करते हैं, एक-एक कवि सम्मेलन का 20-30 लाख रुपए तक लेते हैंं। उन्हें भी एक बार रायल्टी के रुप में 1 करोड़ रुपए की राशि मिल चुकी है पर ये भी एक प्रकार का मार्केटिंग गीमिक्सी था। विनोद कुमार शुक्ल जैसे कवि के छत्तीसगढ़ में आकर नये लोगों को केवी के माध्यम से कविता सीखाने का उपक्रम भी जारी है। यह सब नये तरह के स्टंैंड हैं। बहुतों को लगता है कि कविता-कहानी की वर्कशाप लगाकर सिखाई जा सकती है।

यह सही है कि किताबें तो हर साल बहुत बिकती है किंतु उसके प्रकाशक उसे कम बताते हैं। हिन्दी युग्म से, जिन दो लेखिकाओं जयंती नटराजन और मधु चतुर्वेदी की किताबें आई हैं, वे भी इनकी कार्यप्रणाली और रायल्टी प्रक्रिया को पारदर्शी बताती हंै। आपसी चर्चा में मधु चतुर्वेदी ने बताया कि हिन्दी युग्म से उनकी चार किताबें जिनमें मन अदहन, धनिका, द्विवेदी विला, फिर मिलोगी प्रकाशित हुई है। जयंती नटराजन की शुगर डैडी, मैमराजी, शैडो की तीन किताबें आई हैं। शैडो पर फिल्म भी बन रही है जिसके लिए उन्हें प्रकाशक से एनओसी मिल चुकी है। वे कहती हैं कि बहुत से लेखक-लेखिकाएं उनसे संपर्क करके हिन्दी युग्म के बारे में पूछ रहे हैं, उन्हें भी लगता है कि न केवल उनकी किताबें बिके बल्कि उन पर व्यापक चर्चा भी हो।
किताब बड़े और पुराने प्रकाशक भी अब उतनी ही बेच रहे हैं, जितनी हिन्द युग्म बेच रहा है। उनके पास भी वे सारे आधुनिक संसाधन हैं जो किताब बेचने के लिए आज जरुरी है। पर बड़े और पुराने प्रकाशकों के पास शायद पारदर्शिता का अभाव है। पारदर्शिता का मतलब है अपने लेखकों को लाखों रुपए रॉयल्टी का भुगतान जो वे दबाते आये हैं और कमाते आये हैं।
यह तो है कि इस 30 लाख की रॉयल्टी ने ना सिर्फ हिंदी के लेखकों को चौंकाया है बल्कि वे अपने को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं कि 30 लाख तो छोडिय़े साल भर में आठ दस किताबों के अब तक उन्हें 30 हज़ार भी नहीं मिले हैं। खुद विनोद जी को राजकमल प्रकाशन 10 किताबों की एक साल की मात्र 15 हज़ार रॉयल्टी देता रहा है जिसका हल्ला पहले ही हो चुका है। विनोद जी के लिए रॉयल्टी की बात उठाने वाले मानव कौल हैं, जो अभिनेता भी हैं और शौकिया लेखक भी। मानव कौल को हिन्दी युग्म ने ही छापा है। मानव कौल ही वो पहले आदमी थे जिनके जरिए पता चला कि राजकमल प्रकाशन विनोद जी को सालाना 15 हजार के आसपास और वाणी छह हजार तक की रॉयल्टी देता था। इसके बाद राजकमल और वाणी प्रकाशन के खिलाफ शोर शुरू हुआ।

मेरे लिखे पर फ़ेसबुक में राकेश कुमार की प्रतिक्रिया-
हिंदी लेखक प्रकाशित होने को ही उपलब्धि समझते हैं। प्रेमचंद प्रकाशन से दिवालिया हो गए।
तबसे व्यवसाई तो हैं और वे लेखक के धन से ही प्रकाशन चलते चलाते हैं। हिंदी फिल्मों की तरह हिंदी प्रकाशन भी व्यावसायिक पारदर्शिता से हीन है। सरकारी आश्रय से द्बड्डह्य और अन्य प्रशासकों ने इसे और दूषित किया है। लेकिन पर न विश्वविद्यालय पढ़ाते हैं न पुस्तक प्रचार पर कोई कार्य है । कल फेसबुक पर पुस्तक प्रमोशन का विज्ञापन था आठ हजार से पांच लाख का पैकेज था। मैने कॉल कर रहे व्यक्ति से पिछली सफलता का हिसाब मांगा तो वह भड़क गया। बोला, हमें इस तरह की भाषा सुनने का अभ्यास नहीं है। मैने कहा, प्रभु पांच लाख जैसा शक्ल और गुण पैदा कीजिए फिर आइएगा इस प्रकार के संपादक भी नहीं है जो पुस्तक की गुणवत्ता अथवा सुधार के लिए सुझाव दे सकें । अभी लेखन स्वातं सुखाय हैं।
बिलासपुर छत्तीसगढ़ के बड़े पुस्तक विक्रेता और प्रकाशक श्री बुक डिपो के संचालक पीयूष गुप्ता कहते हैं कि हिन्दी के लेखकों की किताबें तो बहुत बिकती हैं किंतु प्रकाशक ने उन्हें बहुत कम करके बताते हैं। अगर पुराने प्रकाशकों का यही रवैय्या रहा तो हिन्दी युग्म अपनी नई स्ट्रेटजी के तहत स्थापित प्रकाशकों के यहां से सारे बड़े लेखकों को तोड़कर अपने पास पारदर्शी अनुबंध और बिकी हुई किताबों की सही रायल्टी के जरिए ले आएगा। पीयूष गुप्ता उनके द्वारा बेची गई किताबों की सूची उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं।
आतस तापस नाम से सोशल मीडिया पोस्ट पर इसका जिक्र करते हुए कहा गया है कि अब उन्हें ही मिर्ची लग रही है। हिंद युग्म के लिए विनोद जी को छापना कृष्ण का सुदामा के घर आने जैसा है। ये बात दूजी है कि सुदामा ने कृष्ण को कम समय में अतुलनीय रॉयल्टी देने का चमत्कार किया है।
राजकमल ने हाल ही में भोपाल में इससे बड़ा पांच दिवसीय आयोजन किया और लाखों की किताबें बेची है। व्यापार में कोई कमी नहीं है सच तो यह है कि राजकमल और वाणी जैसे प्रकशकों का पुस्तक व्यापार हिन्द युग्म से दस गुना ज्यादा होगा। यह हो सकता है कि ये तथाकथित बड़े प्रकशक रॉयल्टी के मामले में अपना व्यवहार नहीं बदले तो बड़े लेखक तो जरूर अब विकल्प तलाशने लगेंगे। अब विकल्प बहुत खुल गए हैं। सेल्फ पब्लिशिंग प्लेटफार्म जैसे विकल्प भी हैं जो लेखक को 70 प्रतिशत तक भुगतान का दावा करती हैं। अमेज़ॉन फ्लिपकार्ट जैसे बिक्री के प्लेटफार्म तो है ही जहां सब धान एक पसेरी है यानि सब प्रकाशक वहां बराबर हैं। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा सबकी किताब वहां बिना प्रकाशक के नाम के पंक्तिबद्ध है। यह उपेंद्र नाथ अश्क़ का समय नहीं है, जब उन्हें प्रकाशकों के शोषण से बचने के लिए अपनी किताब छापकर घूम घूम कर बेचैनी पड़ी थी। तब भी वे प्रकाशकों को किताब देने से ज्यादा फायदे में थे। अब तो विकल्प अनन्त हैं। रायल्टी से जुड़ी मेरी पोस्ट को पढ़कर संशय और सच्चाई के बीच की बातें जानने के लिए वरिष्ठ पत्रकार, लेखक रामशरण जोशी जो अमेरिका के बोस्टन में अपनी बिटिया के साथ रह रहे हैं, उन्होंने आश्चर्य मिश्रित खुशी जाहिर करते हुए कहा गया है कि यदि हिन्दी के किसी लेखक की 6 माह में बिकी किताबों की रायल्टी 30 लाख रुपए मिलती है तो यह बहुत अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के लेखकों को करोड़ों रुपए मिलते हैं। उन्होंने अपनी किताबों का जिक्र करते हुए कहा है कि उन्हें अभी तक अधिकतम एक लाख रुपए तक की रायल्टी मिली है। उन्होंने कहा कि यदि हिन्दी युग्म जैसे प्रकाशक लेखकों को पारदर्शिता के साथ रायल्टी का हिसाब दे रहा है तो बाकी प्रकाशकों के लिए भी ये एक संकेत है।