पिछले दो बरसों में भारतीय चुनाव प्रक्रिया बहुत ज्यादा संदेह के घेरे में आई है। चुनाव आयोग पर सत्ता पार्टी की पक्षधरता का आरोप आज तक नहीं कोई लगा पाया था। अब उस पर कांग्रेस ने ही नहीं अनेक राजनीतिक दलों ने कथित रूप से आरोप लगाए हैं। सबसे ज्यादा विवाद और आरोप महाराष्ट्र चुनाव के बाद लगाए गए ,जहां यह कथित आरोप सबसे ज्यादा चर्चा में आए कि मात्र दो माह में 23 लाख से ज्यादा कथित फर्जी मतदाताओं ने वोट दिए हैं। विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग भी इन आरोपों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया था। महाराष्ट्र के फर्जी मतदाताओं का मसला अभी ठंडा ही नहीं हुआ था कि कर्नाटक और उसके बाद दिल्ली में भी इस तरह के कथित आरोप लगाए गए और अब राहुल गांधी ने एक बड़ा बम फोड़ा है। विपक्ष के इस आरोप पर आम जन एक तरह से असमंजस की स्थिति है लेकिन बौद्धिक वर्ग का कहना है चुनाव आयोग का पूरा रवैया संदिग्ध है। इन आरोपों से आमजन की मन: स्थिति भी बदलने लगी है।
भारतीय लोकतंत्र की नींव चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर टिकी हुई है, लेकिन हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा 2024 लोकसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर मतदाता धोखाधड़ी के आरोपों ने इस नींव को हिला दिया है। गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक डुप्लीकेट मतदाताओं और फर्जी पतों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग (ईसीआई) पर भाजपा के साथ मिलीभगत का इल्जाम लगाया है। उन्होंने इसे ‘चुनावी चोरीÓ करार दिया और दावा किया कि यह अपराध संविधान के खिलाफ है, जो पूरे देश में फैला हुआ है।
ये आरोप गंभीर हैं, क्योंकि वे न केवल 2024 के चुनावों की वैधता पर सवाल उठाते हैं, बल्कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और पारदर्शिता पर भी। गांधी ने कांग्रेस की जांच से मिले सबूत पेश किए, जिसमें फर्जी मतदाताओं की सूची शामिल है, लेकिन चुनाव आयोग ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि ये बेबुनियाद हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने यह नहीं कहा कि यह किस तरह से बेमुनियाद है। फिर भी, ऐसे आरोपों को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की बजाय एक स्वतंत्र जांच की जरूरत है। अगर ये सही साबित होते हैं तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है, अगर गलत तो यह संस्थाओं पर अनुचित हमला।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या इस तरह के आरोपों की निष्पक्ष जांच संभव है? भारतीय चुनाव व्यवस्था विश्व स्तर पर सराही जाती है, लेकिन इसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। वोटर लिस्ट की सफाई, ईवीएम की विश्वसनीयता और आयोग की जवाबदेही बढ़ाने जैसे कदम आवश्यक हैं। राजनीतिक दलों को आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर चुनावी प्रक्रिया को मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए। अंतत: लोकतंत्र की मजबूती मतदाताओं के विश्वास पर निर्भर है और ऐसे विवाद इसे कमजोर करते हैं। सरकार और विपक्ष को मिलकर इस मुद्दे का समाधान निकालना चाहिए, ताकि भविष्य के चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी रहे।
चुनावी चोरी : कितना सच, कितना झूठ

07
Aug