-सुभाष मिश्र
नक्सलवाद से जूझ रहे छत्तीसगढ़ को मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त करने के अभियान के अंतर्गत लगातार सुरक्षा बलों को सफलता मिल रही है। एक ओर जहां नक्सलियों से सीधी बातचीत की पहल है तो वहीं दूसरी ओर नहीं मानने पर उनका खात्मा सुरक्षा बलों को नक्सलियों से मुठभेड़ में अपनी जान गंवानी पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर नक्सलियों की घेराबंदी करके उनको मौत के घाट उतारने का सिलसिला भी अनवरत जारी है। 2024 से अभी तक 326 नक्सली मारे जा चुके हंै। सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 31 नक्सलियों को मार गिराया है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सल मुक्त भारत बनाने की दिशा में सुरक्षा बलों की एक बड़ी सफलता बताया है। अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि 31 मार्च 2026 से पहले हम देश से नक्सलवाद को जड़ से समाप्त कर देंगे। ताकि देश के किसी भी नागरिक को इसके कारण अपनी जान न गंवानी पड़े।
नक्सलवाद केवल छत्तीसगढ़ तक ही सीमित नहीं है नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ यह आन्दोलन धीरे-धीरे देश के बहुत सारे राज्यों में फैला किन्तु सर्वाधिक चपेट में छत्तीसगढ़ रहा। छत्तीसगढ़, ओडि़सा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, झारखंड और मध्यप्रदेश से सटे हुए जंगलों में इनकी आवाजाही बनी रही। जब किसी एक राज्य में दबाव बढ़ा तो यह दूसरे राज्यों में जाकर छिपने लगे। सालों से चले आ रही इस लुकाछिपी के खेल को ख़त्म करने के लिए मोदी सरकार ने सभी राज्यों के डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी की बैठक लेकर विकास कार्यो को प्राथमिकता देने कहा था। जगह-जगह केंद्र स्थापित किये और सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई, लोगो का विश्वास जीतने की कोशिश की। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार ये चारों ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नयी ऊर्जा का संचार किया और लोगों ने शासन-प्रशासन पर भरोसा कर नक्सली गतिविधियों की जानकारी देना शुरू किया। जनअदालत लगाकर पुलिस और उनके सहयोगियों को मौत की सजा देने वाले नक्सलियों पर से अब ग्रामीणों का विश्वास उठ गया है। इसके चलते बड़ी संख्या में ग्रामीण शासन-प्रशासन तक सूचना पहुंचा रहे हैं और नक्सली के बहकावे में नहीं आ रहे हैं। सुरक्षा कैम्प की स्थापना से नक्सलियों का हौसला पस्त हुआ है और वे यहां से वहां आ जा रहे हैं। पुराना नेतृत्व भी बूढ़ा हो चला है, नए नेतृत्व के पास न ही नये साथी हैं और न ही वैचारिक समझ। ऐसे में नक्सल आन्दोलन भटक सा गया है और जनता का विश्वास खोने लगा है। यही वजह है कि अब उसकी जड़ें धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं।
हाल ही की घटना बीजापुर जिले में सुरक्षाबलों और नक्सलियों की मुठभेड़ नेशनल पार्क इलाके में हुई, जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। इस अभियान में 650 से अधिक सुरक्षाबलों ने हिस्सा लिया और चारों तरफ से घेराबंदी कर नक्सलियों के ठिकानों पर हमला किया।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ अब ये लड़ाई निर्णायक मोड़ पर है। नक्सलवाद की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और अब प्रदेश में केवल विकास, शांति और सुरक्षा का वातावरण स्थापित होगा। हम 31 मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से पूर्णत: मुक्त कर देंगे। यह केवल एक घोषणा नहीं, बल्कि सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता और प्रदेश के हर नागरिक से किया गया वादा है। उन्होंने कहा कि नक्सलियों के विरुद्ध सुरक्षाबलों की सफलता और सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से अब बस्तर में सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की दस्तक सुनाई दे रही है।
छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों के खिलाफ सुरक्षा बलों द्वारा लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं। हाल ही में 9 फरवरी 2025 को बीजापुर जिले के इंद्रावती नेशनल पार्क क्षेत्र में एक बड़ी मुठभेड़ हुई, जिसमें सुरक्षा बलों ने 31 नक्सलियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में दो जवान शहीद हुए और दो अन्य घायल हो गए। इस वर्ष की शुरुआत से अब तक की छत्तीसगढ़ में हुई महत्वपूर्ण मुठभेड़ हुई है उसके मुताबिक 23 जनवरी 2025- गरियाबंद जिले में मुठभेड़ के दौरान 16 नक्सली मारे गए। 31 जनवरी 2025-बीजापुर जिले में एक अन्य मुठभेड़ में 8 नक्सली ढेर हुए। वर्ष 2025 में अब तक कुल 80 नक्सली मारे जा चुके हैं। पिछले वर्ष 2024 में भी सुरक्षा बलों ने नक्सल विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल की। 10 मई 2024-बीजापुर में मुठभेड़ के दौरान 12 नक्सली मारे गए। 8 जून 2024- अबूझमाड़ के आमदई क्षेत्र में 6 नक्सली ढेर हुए। 3 सितंबर 2024- दंतेवाड़ा-बीजापुर सीमा पर मुठभेड़ में 9 माओवादी मारे गए। यदि हम पिछले घटनाक्रम की बात करें तो 2010 में 76 जवान मारे गए थे। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बड़े नेताओ की हत्या ने भी पूरे देश की दहला दिया था। सड़कों के भीतर बिछाये गए विस्फोटक के जरिये भी नक्सली बहुत सी घटनाओ को अंजाम देते हंै। छत्तीसगढ़ में सरकार एक और जहां नक्सलवाद का खात्मा करने पर आपदा है वही दूसरी ओर जो लोग माओवाद को छोड़कर एक आम इंसान की तरह जिन्दगी गुजारना चाहते है उन्हें आत्मसमर्पण का अवसर भी दिया जा रहा है।
2015 में 1686 नक्सलियों ने सरेंडर किया था। 2016 में 3239, 2017 में 543, 2018 में 480, 2020 में 352, 2021 में 533, 2022 में 2855, 2023 में 111 नक्सलियों ने सरेंडर किया। धीरे-धीरे अब समर्पण करने वालो की तादात फिर से बढऩे लगी है। सरकार की नीति साफ़ है या तो साथ आओ या गोली खाओ। 2024 से अभी तक 326 नक्सली मारे जा चुके हैं।
Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नक्सलवाद से मुक्ति को ओर बढ़ता छत्तीसगढ़

11
Feb