मैनपाट भाजपा चिंतन शिविर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का बयान भारतीय राजनीति में सुचिता की उम्मीद जगाता है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने छत्तीसगढ़ के मैनपाट में आयोजित चिंतन शिविर के उद्घाटन सत्र में नेताओं और पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि मंत्री और विधायक ठेकेदारों के चंगुल में फंस गए तो वे दोबारा चुनाव नहीं जीत पाएंगे। यह बयान न केवल भाजपा के आंतरिक सुधार की दिशा में एक चेतावनी है, बल्कि भारतीय राजनीति में सत्ता के इर्द-गिर्द मौजूद बिचौलियों, ठेकेदारों, और अपराधियों के प्रभाव को भी उजागर करता है।
नड्डा का यह बयान भाजपा के लिए एक आत्मचिंतन का आह्वान है। मैनपाट के चिंतन शिविर में उन्होंने भ्रष्टाचार और ठेकेदारों के प्रभाव से दूर रहने की नसीहत दी, यह संकेत देते हुए कि जनता की नजर में स्वच्छ छवि और पारदर्शी शासन ही दीर्घकालिक राजनीतिक सफलता की कुंजी है। यह बयान उस समय आया है जब भाजपा छत्तीसगढ़ में अपनी स्थिति को मजबूत करने और 2023 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत को 2028 में दोहराने की रणनीति बना रही है।
ठेकेदार, सप्लायर, और बिचौलिए सरकारी परियोजनाओं में अनुचित लाभ के लिए जनप्रतिनिधियों पर दबाव डालते हैं। भ्रष्टाचार और अनैतिक गठजोड़ से जनता का विश्वास खोने का खतरा है, जो चुनावी हार का कारण बन सकता है। भाजपा को अपनी भ्रष्टाचार-मुक्त और विकासोन्मुख छवि को बनाए रखने की आवश्यकता है। हालांकि, यह बयान एक गहरे प्रश्न को भी उठाता है? क्या यह केवल एक नैतिक सलाह है, या यह भारतीय राजनीति में व्याप्त एक व्यापक समस्या की स्वीकारोक्ति है? बहुत पहले जन कवि अदय गोंडवी ने एक शेर कहा था-
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज्य, विधायक निवास में।।
यह भारतीय राजनीति के चाल, चरित्र और चेहरे को उजागर करता है।
भारतीय राजनीति में सत्ता के गलियारों में ठेकेदारों, सप्लायरों, व्यापारियों, दबंगों, और अपराधियों का प्रभाव कोई नई बात नहीं है। यह एक ऐसी हकीकत है जो लगभग सभी राजनीतिक दलों और सरकारों के साथ जुड़ी रही है। सरकारी परियोजनाओं, जैसे सड़क निर्माण, भवन निर्माण, और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में ठेकेदार और बिचौलिए सक्रिय रहते हैं। ये लोग अक्सर कमीशन, अनुचित लाभ, या प्राथमिकता के बदले जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों पर दबाव बनाते हैं। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में टेंडर प्रक्रिया में अनियमितताओं की शिकायतें आम हैं।
चुनावों में धनबल की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। ठेकेदार, व्यापारी, और रसूखदार लोग प्रत्याशियों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं, जिसके बदले में उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी या अनुबंध मिलते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव में 90फीसदी से अधिक विजयी उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति में भारी वृद्धि दर्ज की थी, जो अप्रत्यक्ष रूप से धनबल की भूमिका को दर्शाता है।
भारतीय राजनीति में सत्ता परिवर्तन जरूर हुआ है किन्तु नेताओं के आचरण में बदलाव बहुत कम है। राहत इंदौरी का शेर है-
नए किरदार आते जा रहे है
मगर नाटक पुराना चले आ रहा है।
अपराधी तत्व अक्सर चुनावी प्रक्रिया में बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने, और प्रचार में अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हैं। एडीआर की 2019 की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में 43फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें हत्या, बलात्कार, और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। कई जनप्रतिनिधि स्वयं आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश, बिहार, और अन्य राज्यों में कई विधायकों और सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। छत्तीसगढ़ में भी, कुछ नेताओं पर भ्रष्टाचार और अनुचित लाभ के आरोप लगे हैं, हालांकि इनमें से कई मामले जांच के अधीन हैं।
छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां प्राकृतिक संसाधनों (कोयला, लौह अयस्क, आदि) और विकास परियोजनाओं के कारण ठेकेदारों और व्यापारियों का प्रभाव रहा है। छत्तीसगढ़ में खनन और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में ठेकेदारों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। कई बार, खनन माफिया और ठेकेदारों के बीच सांठगांठ की खबरें सामने आई हैं। उदाहरण के लिए, 2018-2023 के दौरान कांग्रेस सरकार पर भी खनन और टेंडर में अनियमितताओं के आरोप लगे थे। छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चुनावी हिंसा और बाहुबल की घटनाएं देखी गई हैं। हालांकि, 2023 के विधानसभा चुनाव में हिंसा की घटनाएं कम थीं, लेकिन स्थानीय स्तर पर दबंगों और अपराधी तत्वों का प्रभाव बना रहा।
एडीआर की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ विधानसभा में 10फीसदी से अधिक विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से कुछ मामले गंभीर प्रकृति के हैं, जैसे भ्रष्टाचार और हिंसा से संबंधित। यह स्थिति भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की। इस जीत में स्वच्छ शासन और विकास के वादे महत्वपूर्ण थे। नड्डा का बयान इस बात का संकेत है कि पार्टी अपनी छवि को बनाए रखने के लिए सतर्क है।
भारतीय राजनीति में अपराध और धनबल की स्थिति को समझने के लिए हमें इन आंकड़ों को समझना जरूरी है। एडीआर (2019) की रिपोर्ट के अनुसार 543 लोकसभा सांसदों में से 233 (43फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। इनमें से 159 (29फीसदी) गंभीर आपराधिक मामले थे। एडीआर (2023) की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ विधानसभा में 90 में से 9 विधायकों (10फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मामले थे, जिनमें से 5 गंभीर प्रकृति के थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में औसतन एक सांसद का खर्च 50-100 करोड़ रुपये अनुमानित था, जिसमें अधिकांश धन निजी स्रोतों (ठेकेदार, व्यापारी, आदि) से आया। 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में 1,200 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी और सामग्री जब्त की गई, जो धनबल के उपयोग को दर्शाता है।
नड्डा का बयान एक सकारात्मक कदम है, जो पार्टी के भीतर आत्ममंथन को प्रोत्साहित करता है। हालांकि, यह बयान भारतीय राजनीति की जटिल वास्तविकता को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता। सत्ता के इर्द-गिर्द बिचौलियों, ठेकेदारों, और अपराधियों का प्रभाव एक संरचनात्मक समस्या है। यह केवल भाजपा तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी प्रमुख दलों में देखा जाता है। चुनावी फंडिंग और बाहुबल की निर्भरता इसे और जटिल बनाती है। पारदर्शी चुनावी फंडिंग, जैसे स्टेट फंडिंग, और कड़े आपराधिक पृष्ठभूमि जांच नियम इस समस्या को कम कर सकते हैं। निर्वाचन आयोग ने इस दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन अभी और प्रयासों की जरूरत है। जनता की जागरूकता और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को चुनने की प्रवृत्ति इस समस्या को कम कर सकती है। सोशल मीडिया और आरटीआई जैसे उपकरणों ने जनता को अधिक सशक्त बनाया है।
भाजपा के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि नड्डा का बयान केवल एक बयानबाजी न रहे। पार्टी को अपने नेताओं और विधायकों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। जे.पी. नड्डा का मैनपाट चिंतन शिविर में दिया गया बयान भारतीय राजनीति में सत्ता, अपराध, और धनबल की गहरी जड़ों को उजागर करता है। ठेकेदारों, बिचौलियों, और अपराधियों का प्रभाव एक ऐसी हकीकत है जो सभी दलों को प्रभावित करती है। छत्तीसगढ़ जैसे संसाधन-संपन्न राज्य में यह समस्या और भी जटिल है। हालांकि, नड्डा का बयान स्वच्छ शासन की दिशा में एक सकारात्मक संदेश है, लेकिन इसे अमल में लाने के लिए संरचनात्मक सुधार और कड़े कदम आवश्यक हैं।
अंतत:, यह केवल राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की साझा जवाबदेही है कि सत्ता के गलियारों को भ्रष्टाचार और अपराध के प्रभाव से मुक्त किया जाए। नड्डा का बयान इस दिशा में एक शुरुआत हो सकता है, बशर्ते इसे गंभीरता से लागू किया जाए और राजनीतिक दल अपनी कथनी करनी में कोई भेद न रके और भविष्य में चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता और स्टेट फंडिंग का मॉडल लागू करे। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर सख्ती से रोक लगायें। टेंडर और सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करवायें। जनता को जागरूक करने और स्वच्छ छवि वाले नेताओं को प्रोत्साहित करें।
प्रसंगवश दुष्यंत कुमार का शेर-
रहनुमाओ की अदाओ पे फिदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया से संभालो यारो।।
Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -भारतीय राजनीति में सुचिता की उम्मीद

09
Jul