-सुभाष मिश्र
गांधीजी नरसी भगत लिखित अपने प्रिय भजन के ज़रिए पूरी दुनिया और खास करके हिन्दुओं से कहना चाहते थे कि
‘वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।।
पर दु:खे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।।
संत कबीर कहते हैं ‘पोथी पढि़ पढि़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ढाई आखर प्रेम का पढ़े से पंडित होए। इसी तरह की बातें धर्म मे आस्था रखने वाले सभी संतों, महात्माओं, कवियों और शायरों कहीं है। निदा फ़ाज़ली कहते हैं –
‘सबकी पूजा अलग-अलग है, अलग-अलग है रीत।
मस्जिद जायें मौलवी, कोयल गाये गीत।
अब थोड़ी बात कथित धर्म गुरुओं उलेमाओं, चंगाई सभा करने वाले ईसाई धर्म की बात भी कर ली जाये। अभी बागेश्वर घाम के धीरेन्द्र शास्त्री कह रहे हैं कि वे छत्तीसगढ़ के कुनकुरी स्थित एशिया के दूसरे बड़े चर्च के सामने अपना प्रवचन करना चाहते हैं। यह बयान धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर दिया गया है, जिसमें उन्होंने बस्तर और जशपुर को धर्मांतरण का केंद्र बताया। जशपुर और बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। ईसाई मिशनरियों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के जरिए आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराते हैं। दूसरी ओर, ईसाई समुदाय का कहना है कि यह स्वैच्छिक और सामाजिक सुधार का हिस्सा है। चर्च के सामने कथा करने की घोषणा को एक प्रतीकात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो हिंदू धर्म की ‘वापसी या सनातन धर्म की श्रेष्ठता का संदेश दे सकता है। यह स्थानीय स्तर पर धार्मिक तनाव को बढ़ा सकता है, खासकर जब इसे धर्मांतरण के विरोध के साथ जोड़ा जाता है। धीरेंद्र शास्त्री ने बकरीद के दौरान पशु बलि का विरोध करते हुए कहा कि वे किसी भी प्रकार की बलि प्रथा के पक्ष में नहीं हैं। बलि प्रथा कुछ हिंदू परंपराओं में भी मौजूद है, जैसे काली पूजा या दुर्गा पूजा में। शास्त्री का यह बयान इस्लाम की प्रथा को निशाना बनाता प्रतीत होता है, जिसे कुछ लोग भेदभावपूर्ण मान सकते हैं। इस तरह के बयान धार्मिक समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि यह एक धर्म की परंपरा को दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है। शास्त्री के प्रवचनों में सनातन धर्म को सर्वोच्च और अन्य धर्मों पर कथित खतरे (जैसे धर्मांतरण, लव जिहाद) पर जोर दिया जाता है। यह हिंदुत्व की विचारधारा से मेल खाता है जो धार्मिक एकता और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती है।
धीरेंद्र शास्त्री के बयान और गतिविधियां सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में देखी जानी चाहिए। उनके समर्थक उन्हें हिंदू धर्म के संरक्षक के रूप में देखते हैं जो धर्मांतरण और सांस्कृतिक ‘आक्रमण के खिलाफ आवाज उठाते हैं। दूसरी ओर उनके आलोचक उन्हें धार्मिक कट्टरता और नफरत फैलाने वाला मानते हैं, जो संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। उनके बयानों का प्रभाव स्थानीय स्तर पर धार्मिक तनाव को बढ़ाने और सामाजिक ध्रुवीकरण को गहरा करने वाला हो सकता है।
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। इसकी मूल शिक्षाएं वेदों, उपनिषदों, भगवत गीता और अन्य ग्रंथों पर आधारित है। सनातन धर्म ‘वसुधैव कुटुंबकम् की बात करता है जिसका आशय विश्व एक परिवार है। यह सिद्धांत सभी मनुष्यों को एक समान मानने की बात करता है, चाहे उनकी जाति, धर्म, या संस्कृति कुछ भी हो। अहिंसा परमो धर्म: अहिंसा को सर्वोच्च धर्म माना गया है। यह न केवल शारीरिक हिंसा, बल्कि वैचारिक और भावनात्मक हिंसा से भी बचने की शिक्षा देता है। सर्वं विश्वेन संनादति: सभी धर्मों और विश्वासों में सत्य के अंश होने की मान्यता, जो सहिष्णुता और समन्वय को बढ़ावा देती है। कर्म और धर्म: सनातन धर्म व्यक्तिगत कर्म और नैतिकता पर जोर देता है न कि सामूहिक या धार्मिक श्रेष्ठता पर।
इन शिक्षाओं के आधार पर सनातन धर्म तनाव या वैमनस्य फैलाने के बजाय सह-अस्तित्व और शांति की वकालत करता है। हालांकि, कुछ लोग धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या अपने निहित स्वार्थों या सामाजिक-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं, जिससे तनाव उत्पन्न होता है। धीरेंद्र शास्त्री जैसे कथावाचकों के बयान, जो विभिन्न धर्मों की प्रथाओं (जैसे बकरीद पर बलि) की आलोचना करते हैं या धर्मांतरण के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाते हैं, सनातन धर्म की मूल शिक्षाओं से पूरी तरह मेल नहीं खाते। ये बयान अक्सर व्यक्तिगत व्याख्या या सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों से प्रेरित हो सकते हैं, न कि धर्म की मूल भावना से।
हमारे देश में अक्सर धर्मांतरण की बात होती है और भाजपा लगातार इसके विरूद्घ लगातार कड़ी कार्रवाई की बात करती है। यदि धर्मांतरण विरोधी कानून की स्थिति की बात करें तो धर्मांतरण विरोधी कानून भारत के कई राज्यों में पहले से मौजूद हैं जैसे-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश। छत्तीसगढ़ में भी इस तरह के कानून की मांग लंबे समय से उठती रही है। खासकर आदिवासी क्षेत्रों में। बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 2024 में, छत्तीसगढ़ सरकार ने धर्मांतरण विरोधी बिल का ड्राफ्ट तैयार किया था, जिसमें कठोर सजा और धर्म परिवर्तन से 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचित करने का प्रावधान शामिल था। हालांकि, यह बिल अभी तक विधानसभा में पारित नहीं हुआ है। इसके लागू न होने के कुछ संभावित कारण हैं जिनमें कानूनी और संवैधानिक जटिलताओं की बात करें तो धर्मांतरण विरोधी कानूनों को अक्सर संवैधानिक चुनौती का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) के अधिकार को सीमित कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में ऐसे कानूनों की वैधता पर पहले भी सवाल उठ चुके हैं। इस संबंध में कुछ विश्लेषकों का मानना है कि धर्मांतरण का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए एक भावनात्मक और ध्रुवीकरणकारी मुद्दा है, जिसे वे चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। बिल को लागू करने में देरी से सरकार इस मुद्दे को जीवित रख सकती है, ताकि यह वोटबैंक को प्रभावित करें।
छत्तीसगढ़ जहां धीरेन्द्र शास्त्री चर्च के सामने कथा कहना चाहते हैं वहां आदिवासी और ईसाई समुदायों के बीच पहले से तनाव है। कठोर कानून लागू करने से सामाजिक अशांति बढ़ सकती है, जिसे सरकार टालना चाहती हो। पिछले कुछ सालों में धर्मांतरण को लेकर हुई घटनाओं की बात की जाए तो नारायणपुर जिले के एडका गांव में लगभग 1,000 आदिवासियों की भीड़ ने एक चर्च पर हमला किया और उसे क्षतिग्रस्त कर दिया। भीड़ ने पुलिस पर भी हमला किया जिसमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घायल हो गए। यह हमला ईसाई मिशनरियों पर जबरन धर्मांतरण के आरोपों के बाद हुआ। स्थानीय आदिवासियों ने दावा किया कि मिशनरी गतिविधियों ने उनकी पारंपरिक संस्कृति को नुकसान पहुंचाया। टकराव के कारणों में हिंदुत्ववादी संगठनों और स्थानीय आदिवासियों ने धर्मांतरण को अपनी संस्कृति पर हमला माना। ईसाई समुदाय ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया, जिससे दोनों समुदायों में तनाव बढ़ा।
27 जनवरी 2024 को जशपुर जिले में लगभग 1,000 ईसाइयों को कथित तौर पर जबरन हिंदू धर्म में परिवर्तित करने का दावा किया गया। यह घटना हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा आयोजित ‘घर वापसी कार्यक्रम का हिस्सा था। आयोजकों का कहना था कि ये लोग पहले हिंदू थे, जिन्हें मिशनरियों ने लालच देकर ईसाई बनाया था। ईसाई समुदाय ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया और दावा किया कि यह जबरन धर्मांतरण था। हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसे सनातन धर्म की ‘वापसी करार दिया, जिससे दोनों पक्षों में तनाव बढ़ा।
मई 2025 को बस्तर जिले में 10 परिवारों ने कथित तौर पर ईसाई धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपनाया। इन परिवारों ने दावा किया कि उन्हें इलाज और अन्य सुविधाओं का लालच देकर ईसाई बनाया गया था। यह ‘घर वापसी हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा आयोजित थी। ईसाई समुदाय ने इसे जबरन धर्मांतरण और धार्मिक उत्पीडऩ का मामला बताया। हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसे स्वैच्छिक वापसी करार दिया, जिससे दोनों समुदायों में अविश्वास बढ़ा।
मार्च 2025 को बिलासपुर के कोनी क्षेत्र में हिंदू संगठनों ने खुले तौर पर धर्मांतरण के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि ईसाई मिशनरी स्थानीय हिंदुओं को लालच देकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किए जाने की खबरें भी सामने आईं। प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन पर धर्मांतरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, जिससे सरकार और हिंदू संगठनों के बीच तनाव बढ़ा। ईसाई समुदाय ने इसे उनके धार्मिक अधिकारों पर हमला बताया। अंबिकापुर में 29 सितंबर 2024 को एक ‘विशाल हिंदू धर्म सभाÓ में 22 परिवारों के 100 लोगों ने ईसाई धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपनाया। आयोजकों का दावा था कि इन लोगों को लालच देकर ईसाई बनाया गया था। मई 2025 को दुर्ग जिले में एक व्यक्ति, जो कथित तौर पर धर्मांतरण कर ईसाई बन गया था, ने हनुमान मंदिर पर जेसीबी चलाने की कोशिश की। इससे गुस्साए हिंदुओं ने ईसाई प्रतीक (क्रॉस) को तोड़ दिया। ईसाई समुदाय ने क्रॉस तोड़े जाने को धार्मिक हिंसा का हिस्सा बताया।
यदि हम छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण से जुड़े हालिया मामलों का विश्लेषण करते हैं तो टकराव के कारणों में आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को लेकर हिंदुत्ववादी संगठन और ईसाई मिशनरियां आमने-सामने हैं। हिंदुत्ववादी संगठन आदिवासियों को हिंदू मानते हैं, जबकि मिशनरियां उनकी स्वतंत्र धार्मिक पसंद का दावा करती हैं। हिंदुत्ववादी संगठनों का दावा है कि मिशनरियां शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक मदद के जरिए धर्मांतरण कराती हैं। दूसरी ओर ईसाई समुदाय इसे सामाजिक सेवा और स्वैच्छिक धर्म परिवर्तन बताता है। ‘घर वापसी जैसे अभियान और धर्मांतरण विरोधी प्रदर्शन तनाव को बढ़ाते हैं। छत्तीसगढ़ में अभी तक धर्मांतरण विरोधी कानून लागू नहीं हुआ है, जिससे दोनों पक्ष अपने-अपने दावों को लेकर आक्रामक हैं। कुछ राजनीतिक दल धर्मांतरण और ‘घर वापसी के मुद्दे को वोटबैंक के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिससे ध्रुवीकरण बढ़ता है। छत्तीसगढ़ में हाल के वर्षों में धर्मांतरण से जुड़ी घटनाएं जैसे नारायणपुर में चर्च पर हमला, जशपुर और बस्तर में ‘घर वापसी और बिलासपुर में प्रदर्शन, सामाजिक और धार्मिक टकराव का प्रमुख कारण रही हैं। ये घटनाएं आदिवासी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जहां सांस्कृतिक पहचान, धार्मिक स्वतंत्रता, और राजनीतिक हितों का टकराव है। इन टकरावों को कम करने के लिए निष्पक्ष कानून, सामुदायिक संवाद और शिक्षा-रोजगार जैसे सामाजिक उपाय जरूरी हैं। साथ ही धार्मिक नेताओं और राजनीतिक दलों को जिम्मेदारी से काम करना होगा ताकि सामाजिक सौहाद्र्र बना रहे।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों को अनुच्छेद 25-28 के तहत समान सम्मान और स्वतंत्रता दी गई है। हिंदुत्व की आक्रामक वकालत को कुछ लोग संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आदिवासी समुदायों की संस्कृति और परंपराएं हिंदू धर्म और ईसाई धर्म दोनों से प्रभावित हैं। धर्मांतरण और हिंदुत्व के मुद्दे इन समुदायों को बांट सकते हैं, जिससे उनकी पहचान और एकता पर असर पड़ता है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा कुछ दलों के लिए वोटबैंक को मजबूत करने का जरिया है। धीरेंद्र शास्त्री जैसे कथावाचकों को कुछ लोग राजनीतिक दलों के ‘एजेंट के रूप में देखते हैं जो हिंदू एकता के नाम पर ध्रुवीकरण करते हैं।
इस मुद्दे को संतुलित तरीके से हल करने के लिए जो कदम उठाए जा सकते हैं उनमें संवाद और सहिष्णुता की ज़रूरत है। धार्मिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और सरकार को विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। सनातन धर्म की सहिष्णुता और समन्वय की शिक्षाओं को प्रचारित करना चाहिए। यदि धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया जाता है तो उसे निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए, ताकि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन न करे। साथ ही कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश होने चाहिए। आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर बढ़ाने से धर्मांतरण जैसे मुद्दों का प्रभाव कम हो सकता है। यह समुदायों को सशक्त बनाएगा और सामाजिक तनाव को कम करेगा।
धीरेंद्र शास्त्री जैसे कथावाचकों के बयान और गतिविधियां सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों का हिस्सा हैं जो हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा से प्रेरित हो सकते हैं। सनातन धर्म की मूल शिक्षाएं सहिष्णुता और शांति पर आधारित हैं, लेकिन व्यक्तिगत व्याख्याएं और राजनीतिक हित तनाव पैदा कर सकते हैं। धर्मांतरण विरोधी कानून में देरी के पीछे कानूनी, सामाजिक, और राजनीतिक कारण हो सकते हैं। इस मुद्दे का समाधान संवाद, शिक्षा और संवैधानिक मूल्यों के पालन में निहित है। सरकार, धार्मिक नेताओं और समाज को मिलकर सामाजिक सौहार्द्र और एकता को बढ़ावा देना चाहिए।