भूपेश बघेल की कानूनी जंग: राजनीतिक प्रतिशोध या घोटालों की जांच?


छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की। महादेव सट्टा ऐप, शराब घोटाला, कोयला परिवहन लेवी और डीएमएफ फंड जैसे बहुचर्चित मामलों में नाम आने के बाद उन्होंने केंद्रीय एजेंसियों ईडी और सीबीआई की गिरफ्तारी की शक्तियों को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें और उनके बेटे चैतन्य बघेल को हाईकोर्ट से अंतरिम राहत लेने की सलाह दी है।
बघेल के खिलाफ जांच जनवरी 2024 से तेज़ हुई, जब ईडी ने महादेव सट्टा ऐप मामले में उनकी कथित भूमिका की चार्जशीट दायर की। आरोप है कि उन्होंने ‘प्रोटेक्शन मनी के रूप में करोड़ों रुपये लिए। अप्रैल 2025 में सीबीआई ने इसी मामले में उन्हें सह-आरोपी बनाया।
इसी तरह अन्य मामलों में से एक शराब घोटाला में 2,161 करोड़ की अनियमितता, जिसमें उनके सहयोगियों के नाम सामने आया है। कोयला परिवहन लेवी में 540-570 करोड़ की वसूली का आरोप है। पीडीएस और चावल मिलिंग में सीएजी रिपोर्ट में 600 करोड़ की गड़बड़ी की बात सामने आई है। डीएमएफ फंड और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी में 16.70 करोड़ अवैध लेन-देन की बात कही गई। अब तक किसी भी आरोप में अदालत ने दोष सिद्ध नहीं किया है। सभी आरोप जांच और चार्जशीट के स्तर पर हैं।
ईडी अब तक 170 से अधिक छापे और 573 करोड़ की संपत्तियों की जब्ती कर चुकी है। मार्च 2025 में ईडी ने उनके निवास से मोबाइल फोन जब्त किया था, जिस पर बघेल ने विधानसभा से बाहर रखने की शिकायत की थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट रेफर करना सामान्य प्रक्रिया है, पर इससे यह संकेत भी मिलता है कि जांच एजेंसियां मामला गंभीर मान रही हैं। यदि हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत नहीं मिलती, तो उनकी गिरफ्तारी संभव है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद रायपुर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए बघेल ने प्रदेश सरकार को बिजली, जंगल और धर्मांतरण के मुद्दों पर आड़े हाथों लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में जंगल कटाई पर अदानी समूह को लाभ पहुंचाया जा रहा है, जबकि उनकी सरकार ने इसे रोकने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था। बिजली बिल में वृद्धि कर सरकार आम जनता को राहत की जगह झटका दे रही है, जबकि ‘महतारी वंदन योजना के जरिए आर्थिक मदद का दावा किया जा रहा है। धर्मांतरण पर भाजपा का रवैया दोहरा और राजनीतिक है, जो केवल वोट बैंक के लिए उभारा जा रहा मुद्दा है। बघेल ने स्पष्ट तौर पर यह आरोप लगाया कि उनके खिलाफ की जा रही जांच राजनीतिक बदले की कार्रवाई है।
ईडी की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2025 तक देशभर में महादेव ऐप के 3,200 पैनल सक्रिय थे। जुलाई में जयपुर के एक होटल में छापेमारी से स्पष्ट हुआ कि ऐप का अब भी संचालन हो रहा है। कांग्रेस नेता दीपक बैज के आरोपों ने यह सवाल उठाया कि राज्य सरकार इसे रोकने में नाकाम क्यों रही। इससे एजेंसियों की कार्यप्रणाली और साइबर अपराध नियंत्रण की कमजोरी उजागर होती है। कांग्रेस का दावा है कि यह कार्रवाई राजनीतिक है, जो 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद तेज़ हुई। चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी को परिवार पर हमला बताया गया। सोशल मीडिया पर ‘स्कैम लिस्ट और ‘लूट क्रॉनिकल्स जैसे ट्रेंड्स के ज़रिए यह मामला राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन गया है। हालांकि, जांच एजेंसियों के पास कुछ गवाह और स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर सबूत बताए जा रहे हैं, जिनमें दुबई से प्रत्यर्पित आरोपी सौरभ चंद्राकर के बयान भी शामिल हैं। इसके बावजूद यह भी सच है कि विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी-सीबीआई की सक्रियता अक्सर चुनाव के बाद बढ़ जाती है जिससे एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
भूपेश बघेल का मामला केवल एक पूर्व मुख्यमंत्री की जांच नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख और जांच एजेंसियों की जवाबदेही की परीक्षा है। अगर आरोप साबित होते हैं, तो यह एक बड़े भ्रष्टाचार के उजागर होने की मिसाल बनेगा। परंतु अगर सबूत न्यायिक कसौटी पर खरे नहीं उतरते तो यह मामला सत्ता के दुरुपयोग और विपक्ष को दबाने की रणनीति के रूप में याद रखा जाएगा।
महादेव ऐप का जारी रहना, एजेंसियों की विफलता की ओर इशारा करता है। वहीं बघेल की राजनीतिक सक्रियता और विपक्षी तेवर इस मामले को और जटिल बनाते हैं। जनता को यह समझना होगा कि न्यायपालिका, मीडिया और जांच एजेंसियों की पारदर्शिता ही लोकतंत्र का मूल स्तंभ है। अगर जनता सवाल नहीं पूछेगी तो लोकतंत्र की जवाबदेही खो जाएगी। अब निगाहें छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट पर है जहां यह तय होगा कि यह कानूनी लड़ाई कितनी निष्पक्ष और संवैधानिक तरीके से आगे बढ़ेगी।

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