Bhatapara news- बबूल बीज 1900 सौ रुपए और चरौटा 2000 रुपए क्विंटल

राजकुमार मल
भाटापारा। कमजोर है फसल इसलिए बबूल बीज 1900 रुपए क्विंटल। निर्यात की प्रतीक्षा कर रहा है चरौटा 2000 रुपए क्विंटल जैसी कीमत पर। तेजी की धारणा तो नहीं है लेकिन टूटेगी नहीं कीमत, मानकर चल रहे हैं वनोपज कारोबारी।
बबूल की नई फसल की आवक चालू हो चुकी है लेकिन बीते साल की तुलना में उत्पादन में 20 से 25 फ़ीसदी गिरावट आ चुकी है। ऐसे में बबूल फली और बबूल बीज में गर्मी आने लगी है क्योंकि मांग के अनुरूप उपलब्धता नहीं है।

फसल कम, मांग ज्यादा
प्रदेश के हर जिले में मिलते हैं बबूल के वृक्ष और बीज लेकिन खरीदी में गरियाबंद की फसल को इसलिए प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि जरूरी गुणवत्ता भरपूर होती है लेकिन इस बार यह कम देखी जा रही है, तो उत्पादन में भी 20 से 25 फ़ीसदी गिरावट आ चुकी है। इसलिए बबूल फली 900 रुपए और बबूल बीज 1900 रुपए क्विंटल जैसे उच्च स्तर पर पहुंचा हुआ है जबकि मांग पूर्ववत स्तर पर स्थिर है।
एक्सपोर्ट पर ब्रेक
छत्तीसगढ़ के चरोटा को पहली बार निर्यात के द्वार खुलने की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। यह तब, जब उपभोक्ता देशों की चौतरफा मांग निकली हुई है। फलस्वरुप वियतनाम और अफ्रीकी देशों का चरोटा ताइवान, मलेशिया और जापान के लिए निर्यात किया जा रहा है। फिर भी छत्तीसगढ़ का चरोटा 2000 रुपए क्विंटल पर मजबूत है। मंदी की धारणा इसलिए भी नहीं है क्योंकि निर्यात की अनुमति के लिए उच्च स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं।
कब आएंगे अच्छे दिन
संतोषजनक मांग की प्रतीक्षा कर रहा वनोपज बाजार पहली बार बबूल बीज और चरोटा में अच्छे दिन की प्रतीक्षा कर रहा है। इसी इंतजार में भंडारण के लिए खरीदी तो कर रहा है लेकिन खरीदी की मात्रा नियंत्रण में रखे हुए हैं ताकि प्रतिकूल स्थितियों में ज्यादा नुकसान ना हो।
बबूल बीज में फसल और मांग कमजोर जरूर है लेकिन धारणा तेजी की है। चरोटा में एक्सपोर्ट खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सुभाष अग्रवाल
एसपी इंडस्ट्रीज, रायपुर
संरक्षण, मूल्यवर्धन एवं निर्यात को बढ़ावा देना आवश्यक
बबूल बीज और चरोटा जैसे वनोपजों की कीमतों में वृद्धि का मुख्य कारण उत्पादन में और निर्यात अवसरों की कमी है। बबूल की जलवायु सहनशीलता और चरोटा जैसे उत्पादों की मांग को देखते हुए इनके वैज्ञानिक संरक्षण, मूल्यवर्धन और निर्यात को बढ़ावा देना आवश्यक है। इससे वनोपज आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायी लाभ मिल सकता है।
अजीत विलियम्स
साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रसर्च स्टेशन, बिलासपुर

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