:राजकुमार मल:
भाटापारा- महुआ सीड 3500 से 4000 रुपए क्विंटल। आसार इससे भी आगे जाने के बन रहें हैं क्योंकि पहली बार स्थानीय ज़रूरतें प्राथमिकता में रखी जा रहीं हैं।
महुआ के बाद अब बारी है महुआ सीड की, जिसने पहली बार 3500 से 4000 रुपए क्विंटल की कीमत अपने नाम कर ली है। तेजी संभावना को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि आदिवासी समुदाय इस बार इसका भी संग्रहण कर रहा है ताकि घरेलू ज़रूरतें पूरी की जा सके।
इसलिए तेजी को बल
आदिवासी समुदाय पहले से करता आ रहा है महुआ बीज के तेल का उपयोग खाद्य तेल के रूप में। इस बार महुआ बीज के संग्रहण की मात्रा इसलिए बढ़ाई जा रही है क्योंकि उपलब्ध खाद्य तेल और अन्य विकल्प तेज हैं। इसलिए वनोपज बाजार में आवक कमजोर है। यही वजह है कि यह शुरुआती दौर में 3500 से 4000 रुपए क्विंटल जैसी कीमत पर पहुंचा हुआ है।
संतोषजनक फसल पर संशय
आशा के अनुरूप नहीं रही महुआ की फसल। पुष्पन के दिनों में प्रतिकूल मौसम ने उत्पादन पर असर डाला। ऐसे में वनोपज बाजार महुआ बीज की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता को लेकर संशय में है। फिर भी मरवाही, सरगुजा और रायगढ़ के साथ जशपुर जिले की फसल में बेहतर उत्पादन और आवक की संभावना है। स्पष्ट स्थिति अगले महीने ही सामने आएगी, जब आवक के दिन शुरू होंगे।
शुरुआत एडवांस सौदे की
शुद्ध घी और समकक्ष खाद्य तेल उत्पादन करने वाली ईकाइयां सतर्क हैं खरीदी को लेकर क्योंकि शुरुआती आवक कमजोर मानी जा रही है। इसलिए पहली बार एडवांस सौदे की शुरुआत हो चली है। यह नया बदलाव प्रतिस्पर्धी खरीदी जैसी स्थिति माहौल बना चुकी है। इसलिए भी महुआ सीड शुरुआती दौर से ही महंगा हो चला है।
नई फसल में करीब पखवाड़े भर का विलंब है। पहली बार आदिवासी समुदाय महुआ बीज में संग्रहण की मात्रा बढ़ा रहा है। इसलिए तेजी की स्थिति बनी हुई है।
– सुभाष अग्रवाल, एसपी इंडस्ट्रीज, रायपुर
स्थाई आय का स्रोत
महुआ सीड की इस बढ़ती मांग और कीमतों से यह स्पष्ट है कि गैर-लकड़ी वनोपज अब आदिवासी आजीविका का मजबूत आधार बन रहा है। यदि संग्रहण, भंडारण और प्रसंस्करण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए स्थायी आय का स्रोत बन सकता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर