:राजेश राज गुप्ता:
कोरिया जिले के देवगढ़ वन परिक्षेत्र अंतर्गत ओदारी बिट में वन विभाग की बड़ी अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई ने ज़िले भर में हलचल मचा दी है। पिछले तीन दिनों में 15 से अधिक अतिक्रमणकारियों के मकानों पर बुलडोजर चला, जिनमें कई मकान 6 से 12 साल पुराने थे।
ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने वन भूमि पर बसेरा विभागीय कर्मचारियों की मौन सहमति से ही किया था। कुछ लोगों ने यह भी दावा किया है कि बिड गार्ड और अन्य मैदानी कर्मचारी दारू, मुर्गा और नगद पैसे लेकर अतिक्रमण की खुली छूट देते रहे। अब जबकि विभाग ने बुलडोजर चलाया है, तो पीड़ितों में रोष है और सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि इतने वर्षों तक वन विभाग आखिर क्या कर रहा था?
6 से 12 साल से कब्जे में थी वन भूमि
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने इस भूमि पर वर्षों पहले कब्जा किया और धीरे-धीरे यहां आवास भी खड़े कर लिए। कुछ को प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत घर भी स्वीकृत हुए, जिनका निर्माण आधे से अधिक हो चुका था।
लेकिन अब विभाग की कार्रवाई में वे भी जमींदोज कर दिए गए हैं। ग्रामीणों का सवाल है कि जब निर्माण शुरू हुआ, तब किसी अधिकारी ने रोक क्यों नहीं लगाई? और यदि अतिक्रमण था, तो उसे बनने से पहले ही क्यों नहीं रोका गया?
बिड गार्ड लेते थे पैसा नहीं करते थे आपत्ति – ग्रामीण
ग्रामीणों का सीधा आरोप है कि बिड गार्ड वर्षों से आते रहे, खाते-पीते रहे, और नगद राशि लेकर चले जाते रहे। किसी ने अतिक्रमण रोकने की बात तक नहीं की। एक ग्रामीण ने कहा घर बनाते वक्त कोई रोकने नहीं आया अब तोड़ दिया गया तो भरपाई कौन करेगा?
बिड गार्ड ने आरोपों को किया खारिज
इस मामले में तत्कालीन बिड गार्ड अनिल पैकरा ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कोई लेन-देन नहीं हुआ है। ग्रामीण झूठे आरोप लगा रहे हैं। यदि जानकारी होती तो पहले ही कार्यवाही होती।
हालांकि यह सवाल अब भी कायम है कि मकान बनने में महीनों लगते हैं – क्या विभाग की निगाहें इतनी देर तक बंद रहीं?
किसकी जिम्मेदारी कौन होगा जवाबदेह?
ओदारी बिट में करीब 100 एकड़ से अधिक वन भूमि पर अतिक्रमण का मामला अब वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर रहा है। क्या यह अतिक्रमण बिना अंदरूनी मिलीभगत के संभव था? अगर नहीं तो वर्षों से मौन रहे कर्मचारियों और अधिकारियों पर क्या विभाग कोई कार्रवाई करेगा?
बुलडोजर से आगे की कार्रवाई की दरकार
वन भूमि को अतिक्रमणमुक्त करना जरूरी है, लेकिन सिर्फ बुलडोजर चलाकर वन विभाग जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता।
अब ज़रूरत है कि विभाग खुद के भीतर झांके – और यह तय करे कि क्या उसकी चुप्पी भी इस पूरे अतिक्रमण खेल में सहभागी रही है?