स्त्री संवाद: कविता,व्यथा मन की

आज पराजित संस्कारों से, जिन पर थे सर्वस्व लुटाएं । दुर्बल काया में सिमटे सपने, निष्ठुर जग में किसे कथा सुनाएं?

बूढ़े नयन की प्रतिक्षा अहर्निश, किसको अपनी व्यथा सुनाएं?

कलुष भरे है हमने उर में, शापित हो गंगा तट जायें ? अंतरद्वंद से रिसता जीवन, कातर स्वर से कहें जो कहाये।

बूढ़े नयन करें प्रतीक्षा अहर्निश, किसको अपनी व्यथा बताएं।

भ्रमित नहीं यह, पाषाण हुए, हम पर घने मतिभ्रम के साएं। निखरे जीवन संघर्षों से जिनके वो विवश हो प्रतिफल पाएं।

बूढ़े नयन करें प्रतीक्षा अहर्निश, किसको अपनी व्यथा बताएं। मौन हो गए शब्द सारे, कैसे सूखी कलम चलाएं?

  • अर्चना संजीव भटोरे

खरगोन म प्र

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