छत्तीसगढ़ का समाज और शासन व्यवस्था हमेशा लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा का सम्मान करने वाला रहा है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है, और राज्य सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून बनाकर इस स्तंभ की रक्षा की दिशा में सराहनीय कदम भी उठाया है। लेकिन अब एक नई विडंबनापूर्ण स्थिति जन्म ले रही है, जहाँ अधिकारी और कर्मचारी खुद को तथाकथित पत्रकारों से सुरक्षित रखने की जरूरत महसूस कर रहे हैं।
यह वही पत्रकारिता है जिसे कभी समाज का आईना कहा गया था, लेकिन अब उसके कुछ किरदार इस आईने पर ही कालिख पोत रहे हैं। यह पीत पत्रकारिता का ऐसा दौर है, जिसमें खबरों के नाम पर ब्लैकमेलिंग, भयादोहन, धमकी, और राजनीतिक या व्यक्तिगत दबाव का कारोबार फल-फूल रहा है।
वास्तविक पत्रकार और इस पेशे की मर्यादा समझने वाले लोग इस गिरावट से गहराई से व्यथित हैं। सच्चा पत्रकार कभी उद्दंड या अभद्र नहीं होता। वह संवाद का माध्यम होता है, टकराव का नहीं। वह अपनी असहमति को भी मर्यादा और विवेक के साथ रखता है। लेकिन आज स्थिति यह है कि कुछ लोग ‘प्रेस का कार्ड जेब में रखकर खुद को अछूत समझने लगे हैं — मानो कानून से ऊपर हों। यही प्रवृत्ति अब समाज और शासन दोनों के लिए खतरा बन चुकी है।
हाल ही में नवा रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय में हुई अभद्रता और तोडफ़ोड़ की घटना ने इस विकृति की भयावहता को उजागर किया है। अपर संचालक जनसंपर्क संजीव तिवारी के साथ कुछ कथित पत्रकारों ने न केवल गाली-गलौज और मारपीट की, बल्कि सरकारी कामकाज में बाधा डालते हुए कार्यालय की गरिमा को रौंद डाला। यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं था, बल्कि शासन की संस्थागत अनुशासन और लोकतांत्रिक संवाद की संस्कृति पर सीधा प्रहार था।
इस घटना के विरोध में छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन और छत्तीसगढ़ जनसंपर्क अधिकारी संघ का संयुक्त प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने यह स्पष्ट कहा कि अब वक्त आ गया है जब राज्य में ‘शासकीय सेवक सुरक्षा कानून भी बनाया जाना चाहिए, ताकि अधिकारी और कर्मचारी भयमुक्त होकर अपने दायित्व निभा सकें।
फेडरेशन के संयोजक कमल वर्मा ने कहा कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है, किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि कोई व्यक्ति इस स्वतंत्रता की आड़ में शासन-प्रशासन को धमकाने या डराने लगे। उन्होंने चेताया कि पत्रकारिता के नाम पर चल रही ब्लैकमेलिंग और दबाव की यह संस्कृति न केवल पत्रकारिता के लिए अपमानजनक है, बल्कि समाज के लिए भी घातक है। उन्होंने मुख्यमंत्री से राज्य के सभी शासकीय कार्यालयों, विशेषकर इंद्रावती भवन और प्रमुख जिलों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने और बिना अनुमति प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की।
बालमुकुंद तंबोली, अध्यक्ष, जनसंपर्क अधिकारी संघ, ने कहा कि यह केवल एक विभागीय विवाद नहीं, बल्कि जनसंपर्क विभाग की संस्थागत गरिमा पर हमला है। यह वही विभाग है जो सरकार और जनता के बीच संवाद का सेतु है और जब इस सेतु को ही तोड़ा जाता है, तो लोकतंत्र की पूरी संरचना डगमगाने लगती है। श्री तंबोली ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि दोषियों की गिरफ्तारी और कठोर दंड सुनिश्चित किया जाए ताकि भविष्य में कोई व्यक्ति पत्रकारिता के नाम पर गुंडागर्दी करने की हिम्मत न करे।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी पूरे प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पत्रकारिता की स्वतंत्रता के पक्ष में है, किंतु उसके नाम पर अराजकता या भय फैलाने की अनुमति किसी को नहीं दी जाएगी।
यह समय है कि राज्य एक नई पहल करे, पत्रकारिता की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए यह तय करे कि कौन पत्रकार है और कौन नहीं। जनसंपर्क विभाग से मान्यता प्राप्त व्यक्ति को ही पत्रकार का दर्जा मिले, और जो इस दायरे में नहीं आते, उन्हें शासकीय कार्यालयों में प्रवेश से पहले अनुमति लेनी पड़े। इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और डिजिटल सभी माध्यमों में यह व्यवस्था समान रूप से लागू हो। छत्तीसगढ़ में ‘पत्रकार सुरक्षा कानून ने सच्ची पत्रकारिता को सशक्त किया है, अब ‘शासकीय सेवक सुरक्षा कानून की जरूरत उतनी ही जरूरी हो गई है। क्योंकि लोकतंत्र में सिर्फ प्रेस की नहीं, प्रशासन की भी सुरक्षा आवश्यक है। जब अधिकारी-कर्मचारी भयमुक्त होकर काम करेंगे, तभी शासन प्रभावी होगा और जनता का विश्वास मजबूत बनेगा।
मीडिया की स्वतंत्रता और शासन की सुरक्षा दोनों ही लोकतंत्र के पंख हैं। इनमें से कोई एक टूटा तो उड़ान अधूरी रह जाएगी। इसलिए अब वक्त है कि सरकार ऐसे सख्त कदम उठाए जो सच्चे पत्रकारों को सम्मान दे और झूठे नाम पर ‘प्रेस लिखे गुंडों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाए। यही पत्रकारिता की रक्षा है, यही शासन की गरिमा की रक्षा और यही लोकतंत्र की सच्ची सेवा।
पत्रकार सुरक्षा कानून की तरह शासकीय सेवक सुरक्षा कानून भी जरूरी

11
Oct