दुष्यंत कुमार का बहुत पहले लिखा गया एक शेर नेपाल के हालात को देखते हुए याद आता है –
सिफऱ् हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ।
नेपाल में सीने की आग सड़क पर संसद भवन, राष्ट्रपति भवन तक पहुँच गई। आज के युवा जो बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, नेताओं के दोगले और उनके और उनके परिजनों के अय्याशीपूर्ण आचरण से चिढ़े बैठे हैं, अब अपने जान की परवाह किये बग़ैर सड़कों पर उतर आये हैं। सोशल मीडिया से संचालित होने वाली यह जेन जी ( gen z ) जनरेशन जेड पीढ़ी का सोशल मीडिया के साथ गहरा संबंध है। यह सब बर्दाश्त कर लेगी पर सोशल मीडिया पर प्रतिबंध इसे मंजूर नहीं है।
पुराने नेताओं ने नेपाल में इस जनरेशन को कम आंका और सब कुछ जला बैठे, गँवा बैठे। सोशल मीडिया और अनियंत्रित भीड़ का चरित्र समरूप है। दोनों के पास विवेक नहीं होता। यही बात कि कई बार ये मिथ्या, आधे सच से भी संचालित होती है। अनियंत्रित भीड़ को सत्य की खोज की कोई जिज्ञासा नहीं होती। हाल ही में बांग्लादेश में घटी घटना और उसके परिणाम इसका जीता जागता उदाहरण है। वहाँ भी मोहम्मद यूनुस को प्रधानमंत्री के समकक्ष समझा गया था यहां भी काठमांडू के मेयर में प्रधानमंत्री का विकल्प देखा जा रहा है। अनियंत्रित भीड़ द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री और नेताओं के घर जलाना इस बात का प्रमाण है कि हमाम में सभी नंगे थे चाहे किसी भी पार्टी के क्यों ना हो। सत्ता का चरित्र एक सा होता है। इस आंदोलन से उपजा होगा, इसकी क्या गारंटी है।
नेपाल में प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देकर देश छोडऩे की स्थिति तक पहुँचना पड़ा। संसद भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक फैली यह आग उस पीढ़ी की है जिसे जेनरेशन ज़ेड कहा जाता है। यह वही पीढ़ी है जो 1997 से 2012 के बीच जन्मी। डिजिटल युग में पली-बढ़ी और इंटरनेट व सोशल मीडिया के साथ बड़ी हुई। यही पीढ़ी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और नेताओं की अय्याशी भले ही सह ले, लेकिन सोशल मीडिया पर रोक उसे बिल्कुल मंज़ूर नहीं। यही कारण रहा कि सोशल मीडिया पर अंकुश की कोशिश नेपाल में आंदोलन का उत्प्रेरक बनी और युवाओं ने जान की परवाह किए बिना सड़कों पर उतरकर पूरी व्यवस्था को हिला दिया।
भारत जब अपने पड़ोसी देशों की ओर देखता है तो लोकतंत्र की स्थिरता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। श्रीलंका में महिंदा और गोटबाया राजपक्षे को आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार के दबाव में सत्ता छोडऩी पड़ी। बांग्लादेश में लंबे समय से सत्तारूढ़ शेख हसीना विरोध की आंधी के आगे टिक नहीं सकीं और उन्हें पद छोडऩा पड़ा। नेपाल में प्रधानमंत्री प्रचंड को जनदबाव और अस्थिरता के चलते पदत्याग करना पड़ा और देश छोडऩे की नौबत आ गई। पाकिस्तान में सेना परोक्ष रूप से सत्ता चलाती रही है, जबकि म्यांमार में चुनी हुई सरकार को तख्तापलट से उखाड़ फेंका गया और आंग सान सू की आज भी जेल में हैं। भूटान और मालदीव जैसे देशों में लोकतांत्रिक ढाँचा कमजोर है और राजतंत्र या अमीर वर्ग का प्रभाव ज़्यादा दिखाई देता है। यह पूरा परिदृश्य दिखाता है कि दक्षिण एशिया में लोकतंत्र अक्सर केवल चुनाव कराने की औपचारिकता तक सीमित रह गया है, जबकि असल लोकतंत्र जनता की भागीदारी और शासन की पारदर्शिता से ही मज़बूत होता है।
इन आंदोलनों का केंद्र हमेशा युवा ही रहे। यही जेनरेशन ज़ेड इंटरनेट और सोशल मीडिया से जुड़ी वह ताक़त है जो सत्ता की कमियों को उजागर करती है और पारदर्शिता की मांग करती है। जब-जब सरकारों ने सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिश की, आक्रोश और गहरा हुआ। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में यही पैटर्न देखने को मिला। युवाओं का यह उभार पारंपरिक राजनीतिक दलों के खोखले वादों से मोहभंग का परिणाम है। वे अब बहानों से नहीं, नतीजों से संतुष्ट होना चाहते हैं। बेरोजगारी, महँगाई और भ्रष्टाचार उनके धैर्य को तोड़ रहे हैं। यही कारण है कि वे नई राजनीतिक संस्कृति, नए नेतृत्व और तकनीक आधारित पारदर्शिता की माँग कर रहे हैं।
भारत अपेक्षाकृत स्थिर लोकतंत्र है पर यह मान लेना ख़तरनाक होगा कि यहां युवा आक्रोश नहीं फूट सकता। बेरोजगारी, आर्थिक असमानता और राजनीतिक भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ यहाँ भी मौजूद हैं। अगर राजनीतिक दल समय रहते युवाओं को निर्णय-प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर नहीं देंगे और उनकी आकांक्षाओं को नहीं समझेंगे तो असंतोष भारत की सड़कों पर भी दिखाई दे सकता है। यही वह चेतावनी है जो पड़ोसी देशों की उथल-पुथल भारत के सामने रख रही है।
इसलिए भविष्य की रणनीति स्पष्ट है। सरकारों को अपने कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी और भ्रष्टाचार पर सख्त नियंत्रण लाना होगा। युवाओं को केवल भीड़ जुटाने तक सीमित रखने के बजाय उन्हें नीति-निर्माण और निर्णय-प्रक्रिया में शामिल करना होगा। बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए स्टार्टअप, टेक्नोलॉजी और नए उद्योगों में अवसर सृजित करने होंगे। सोशल मीडिया को दबाने के बजाय संवाद और लोकतांत्रिक सहभागिता का मंच बनाना होगा और दक्षिण एशियाई देशों को साझा आर्थिक विकास और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सहयोगी नीति अपनानी होगी।
दक्षिण एशिया में लोकतंत्र कई जगह केवल संवैधानिक औपचारिकता बनकर रह गया है। जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी अब बदलाव की राह तलाश रही है। भारत के लिए यह चेतावनी भी है और अवसर भी। यदि युवाओं को केवल वोटर या आंदोलनकारी के रूप में नहीं, बल्कि निर्णयकर्ता के रूप में जगह दी गई। तभी लोकतंत्र का भविष्य स्थिर और सार्थक हो सकेगा। यही सच्चा लोकतंत्र है और यही उसका वास्तविक रास्ता।
सत्ता संस्थानों के प्रति बढ़ता युवा आक्रोश

10
Sep