-सुभाष मिश्र
दरअसल हमारे देश में गाय को गौमाता का दर्जा है। गाय के नाम पर लोग एक दूसरे को मरने मारने पर आमदा हो जाते हैं किन्तु गाय से ज्यादा दूध देने वाली भैंस का वो सम्मान नहीं है, जो गाय को है। दूध देने वाली गाय, भैंस सभी को प्यारी होती है पर पशुपालक गायों की तरह भैंस को खुला नहीं छोड़ते। कोई भैंस को माता नहीं कहता गोरेपन के प्रति हमारे आकर्षण के चलते काली-काली भैंस कहां पसंद आयेगी। हमारे धार्मिक कार्यक्रमों में छोटी-छोटी गईया छोटे-छोटे ग्वाल छोटो से मेरो नन्द गोपाल की ही अनुगूंज है।
गौ संरक्षण, गोठान, गौधाम जैसी बहुत सी योजनाएं गायों के नाम पर है, भैंस के नाम पर कोई योजना नहीं। घर में अचानक से सुबह-सुबह भैंस के दूध की गुहार सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ। वैसे तो डेयरियों से आने वाला अधिकांश दूध भैंस का ही होता है। पर आज भैंस की दूध की मांग ज्यादा है, पता चला की आज हलषष्ठी व्रत है तो संतान के दीर्घायु होने सुख और समृद्धि के लिए महिलाएं रखती है। इस दिन महिलाएं खेत में हल से जुते अनाज गेहूं, चांवल को नहीं खाकर पसई का चांवल खाती है, गाय का दूध, दही, घी का दूध नहीं लेकर भैंस का दूध और उससे बनी चीजें खाती है। साग, सब्जी खाने से बचती है। अलबत्ता विनोद कुमार शुक्त ने जरुर भैंसो को लेकर कविता लिखी है।
विनोद कुमार शुक्ल की कविता
इतनी सारी मुर्रा भैंसें
सारी की सारी जुड़वा भैंसें
एक जैसी मुर्रा भैंसे
किसी किसी की खोकर
हुई इकट्ठी इतनी भैंसें
कैसे पहचानेगा कोई
अपनी – अपनी खोई भैंसें
ले आयेगा कोई किसी की
अपनी जैसी मुर्रा भैंसे ।
सो सुबह-सुबह भैंस के दूध की महत्ता समझ में आई। बेचारी उपवासी महिलाएं को कौन समझाए की हमारे देश में अब गाय, भैंस, बकरी का शुद्ध दूध नहीं मुनाफे की मिलावटी दूध, दही, मख्खन पनीर का जोर है। बहर हाल भैंस की पूछ परख अच्छी लगी। काश ये भैसों को भी गायों की तरह सम्मान देकर पूजे। वैसे गुरु हरिशंकर परसाई कहते हैं…..
सरे देशों में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहां वह दंगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है।