शिक्षकों का गिरता आचरण: बच्चों का भविष्य या हमारी चुप्पी?

छत्तीसगढ़ में शिक्षा सत्र शुरू होते ही सुर्खियां किताबों, नई योजनाओं या बच्चों की उपलब्धियों की नहीं होतीं बल्कि नशे में धुत्त शिक्षकों, अश्लील व्यवहार और अनुशासनहीनता की होती है। यह केवल बुरी खबर नहीं, बल्कि एक व्यवस्था का आईना है, जिसमें बच्चों का भविष्य दांव पर लगा है और हम सब खामोश दर्शक बने हुए हैं।
राज्य में हजारों शिक्षक आज भी पूरी ईमानदारी और जुनून के साथ बच्चों को पढ़ा रहे हैं लेकिन जो चंद शिक्षक स्कूल को शराबखोरी और दुव्र्यवहार का मंच बना रहे हैं वे पूरी शिक्षा व्यवस्था को शर्मिंदा कर रहे हैं।
कुछ इसी तरह की घटनाएं हैं जो चुप्पी तोडऩे को मजबूर करती हैं। बलरामपुर (घोडासोत) में शिक्षक सुरेंद्र दीक्षित का छात्राओं के साथ नशे में डांस करता वीडियो वायरल हुआ। निलंबन के बाद भी सवाल बाकी, ऐसी बहाली क्यों होती है? निरीक्षण में शिक्षक इलेवन और नाइन्टीन की स्पेलिंग तक नहीं लिख पाए। 70,000 रुपये मासिक वेतन किस काम का? दुर्ग में 3.5 साल की बच्ची को राधे-राधे कहने पर प्रिंसिपल ने थप्पड़ मार दिया। शिक्षा में हिंसा की जगह कहां है? बालोद (चिपरा) में प्रधानपाठक स्प्राइट की बोतल में रम भरकर स्कूल आए। पहले भी सस्पेंड हुए थे फिर वही हरकत दोहराई। मेहदौली के प्राथमिक स्कूल में आलम यह है कि शिक्षक रोज शराब पीकर बच्चों को पढ़ाता है, गांव के सपनों का क्या? धमतरी में शिक्षक नशे में खुद को सस्पेंड करने की मांग करता है, एक और हेडमास्टर एक दिन पहले ही नशे में स्कूल पहुंचा।
ये घटनाएं नई नहीं है लेकिन पैटर्न साफ है—नशा, अनुचित व्यवहार और कार्रवाई केवल तब जब वीडियो वायरल हो जाए। बाकी वक्त सब जांच में दबा रहता है।
नशे में शिक्षक बच्चों में डर और असुरक्षा भरते हैं। जो व्यक्ति रोल मॉडल होना चाहिए, वही बच्चों को गलत जीवनशैली का संकेत दे रहे हैं। अभिभावकों का भरोसा टूटता है, स्कूल की छवि मिट्टी में मिलती है और यह सिर्फ एक गांव या एक जिले का मामला नहीं है यह पूरे राज्य की साख पर दाग है।
इन समस्याओं की वजह भर्ती प्रक्रिया में कमी के चलते मानसिक स्वास्थ्य और नशे की प्रवृत्ति की जांच का अभाव है। आदिवासी बहुल जिलों में किताब, ब्लैकबोर्ड, शौचालय तक नहीं है। डीआईएसई के मुताबिक, ग्रामीण स्कूलों में 20 प्रतिशत में शिक्षकों की कमी, आदिवासी क्षेत्रों में ड्रॉपआउट दर 25 प्रतिशत से ऊपर है। दूरदराज़, नक्सल प्रभावित इलाकों में नियुक्तियां, खराब सड़कें, सांस्कृतिक असंगति इनसे उपजा तनाव शराबखोरी में बदल जाता है। बेसिक शिक्षण कौशल तक कमजोर होना।
नकारात्मक खबरें सेल करती हैं, इसलिए मीडिया उन्हें प्राथमिकता देता है। अच्छे उदाहरणों की रिपोर्टिंग सीमित है जबकि जरूरत बैलेंस्ड पत्रकारिता की है। वायरल वीडियो से तुरंत चर्चा तो होती है, लेकिन स्थायी समाधान पर बहस गायब है।
फरवरी 2025 में स्पेशली एबल्ड शिक्षिका के. शारदा को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार मिला। अबुझमाड़ जैसे माओवादी प्रभावित इलाकों में शिक्षक जोखिम उठाकर पढ़ा रहे हैं। मल्टीलिंगुअल क्लासरूम प्रोग्राम और रेशनलाइजेशन योजना से कुछ क्षेत्रों में सुधार हुआ है। सवाल है इन अच्छे कामों की खबर कितनों तक पहुंचती है?
सवाल यह भी है कि क्या पहली गलती पर काउंसलिंग और नशा मुक्ति कार्यक्रम की ज़रूरत है। भर्ती में मनोवैज्ञानिक और व्यसन परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए। दूरदराज के शिक्षकों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सपोर्ट सिस्टम विकसित करने की ज़रूरत है। वायरल वीडियो पर निर्भरता खत्म हो शिक्षा विभाग का अपनी निगरानी तंत्र होना चाहिए। मीडिया का संतुलित कवरेज हो इसके लिए मीडिया से जुड़े संवेदनशील पत्रकारों को स्कूलों तक ले जाकर बेहतर चीजे दिखानी चाहिए ।
हम बच्चों को यह सिखा रहे हैं कि शिक्षक का नशे में होना सामान्य है। यह शिक्षा नहीं, मानसिक प्रदूषण है। यदि हम इसे रोकने में नाकाम रहे तो अगली पीढ़ी हमारे मौन को भी उतना ही दोषी मानेगी जितना इन शिक्षकों को।
छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था को बचाना है तो आधे-अधूरे सुधारों से नहीं, बल्कि कठोर कार्रवाई और गहरी जिम्मेदारी से काम लेना होगा। क्योंकि अच्छे शिक्षक राज्य की रीढ़ हैं और रीढ़ टूटे समाज कभी खड़े नहीं हो पाते।

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