-सुभाष मिश्र
सोशल मीडिया जो कभी संपर्क और ज्ञान-साझाकरण का माध्यम था, अब भारत में एक खतरनाक और जानलेवा हथियार बन चुका है। गुरुग्राम में हाल ही में हुई घटना, जहां दीपक यादव ने अपनी टेनिस खिलाड़ी 25 वर्षीय बेटी राधिका को रील्स बनाने की लत और टेनिस एकेडमी चलाने के कारण गोली मार दी, सोशल मीडिया की लत के भयावह परिणामों को उजागर करती है। यह घटना कोई अकेली नहीं है, बल्कि एक बड़े संकट का हिस्सा है।
भारत में सवा करोड़ मोबाइल कनेक्शन और 4.2 प्रतिशन वार्षिक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता वृद्धि के साथ सोशल मीडिया की लत, इसके सामाजिक नुकसान और तत्काल नियमन व जागरूकता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। भारत दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल बाजारों में से एक है, जहां 80 करोड़ से अधिक लोग—लगभग 60 फीसदी आबादी इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है। मोबाइल फोन (75.91 फीसदी इंटरनेट उपयोग) और 14.39 एमबीपीएस की औसत मोबाइल इंटरनेट स्पीड ने सोशल मीडिया को हर आयु वर्ग, विशेष रूप से बच्चों के लिए सुलभ बना दिया है। ऑस्ट्रेलिया, जहां 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध है, या अमेरिका, जहां चिल्ड्रन्स ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट में 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के डेटा संग्रह के लिए अभिभावक की सहमति अनिवार्य करता है। इसके विपरीत, भारत में आयु प्रतिबंधों का कड़ाई से पालन नहीं होता। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 में नाबालिगों के डेटा प्रोसेसिंग के लिए अभिभावक सहमति की आवश्यकता है, लेकिन इसका कार्यान्वयन कमजोर है।
इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स जैसे छोटे वीडियो फॉर्मेट भारत में सांस्कृतिक उन्माद बन चुके हैं, जहां लाखों युवा वायरल होने की होड़ में हैं। खतरनाक स्टंट से लेकर अनुचित सामग्री तक, ध्यान आकर्षित करने वाली रील्स बनाने का दबाव दुर्घटनाओं, चोटों और यहां तक कि मौतों का कारण बन रहा है। गुरुग्राम की घटना, जहां दीपक यादव की बेटी रील्स की लत में इतनी डूबी थी कि उसने अपनी पढ़ाई और खेल को नजरअंदाज कर दिया। हालांकि यह घटना अभी कई तरह के विवादों में है। कहा जाता है कि राधिका ने एक एल्बम में इनामुल के साथ काम किया था और उसे पर यह संदेश था कि उसे व्यक्ति के साथ उसका प्रेम प्रसंग है लेकिन इसके कोई साक्षी नहीं है। इस एल्बम के वीडियो के कुछ दृश्य राधिका के सोशल मीडिया अकाउंट पर थे जिन्हें लेकर पिता और बेटी के बीच तनातनी थी लेकिन यह तनातनी ने झगड़े का इतना विकराल रूप लिया कि पिता ने बेटी को गोली मार दी, यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। हालांकि, रील्स के संदर्भ में यह एक चेतावनी है। ऐसी ही अन्य घटनाएं बड़ी संख्या में हुई हैं। जैसे बाइक स्टंट के दौरान युवाओं की मौत या रेलवे ट्रैक पर रील्स बनाते समय हादसे, चलती ट्रेन में लटकने की, पहाड़ की ऊंची चोटी पर खतरनाक किनारे पर खड़े होने की रील बनाना ऐसे खतरों को और स्पष्ट करती हैं।
सोशल मीडिया की लत न केवल शारीरिक खतरे पैदा करती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाती है। अध्ययनों के अनुसार, भारत में 15-24 आयु वर्ग के 70 प्रतिशत से अधिक युवा प्रतिदिन 2-3 घंटे से अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं। यह अत्यधिक उपयोग चिंता, अवसाद, कम आत्मसम्मान और नींद की कमी से जुड़ा है। रील्स बनाने की होड़ में युवा अक्सर अश्लील या अनैतिक सामग्री की ओर बढ़ते हैं जो कम उम्र में अपराध की ओर बढऩे के साथ ही सामाजिक मूल्यों को कमजोर करता है। माता-पिता के लिए अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखना और उनकी लत से निपटना एक बड़ी चुनौती बन गया है। इसके अलावा वर्चुअल दुनिया से अत्यधिक जुड़ाव वास्तविक दुनिया के रिश्तों और जिम्मेदारियों को कमजोर कर रहा है।
नियमन और समाधान की आवश्यकता भारत में सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को आधार कार्ड या अन्य सरकारी दस्तावेजों के माध्यम से आयु सत्यापन अनिवार्य करना चाहिए। मोबाइल और ऐप्स में चाइल्ड लॉक और समय सीमा जैसे उपकरणों को बढ़ावा देना। स्कूलों और समुदायों में सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग पर शिक्षा कार्यक्रम चलाना। अश्लील और खतरनाक सामग्री को हटाने के लिए सख्त निगरानी और एल्गोरिदम सुधार। किशोरों और युवाओं के लिए काउंसलिंग और हेल्पलाइन सेवाएं शुरू करना।
सोशल मीडिया एक शक्तिशाली उपकरण है, जो रचनात्मकता और शिक्षा के लिए उपयोगी हो सकता है, लेकिन इसका अनियंत्रित उपयोग भारत में एक सामाजिक आपदा बन रहा है। गुरुग्राम की त्रासदी जैसे मामले हमें चेतावनी देते हैं कि अब समय है जागने और कदम उठाने का। सरकार, माता-पिता, स्कूल और सोशल मीडिया कंपनियों को मिलकर इस संकट से निपटना होगा। हमें अपने बच्चों को वर्चुअल दुनिया की चकाचौंध से बचाकर वास्तविक दुनिया में सार्थक जीवन की ओर ले जाना होगा।
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 को 11 अगस्त 2023 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। यह भारत का पहला व्यापक डेटा संरक्षण कानून है, जो व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा को प्रोसेस करने के लिए माता-पिता या कानूनी अभिभावक की सत्यापित सहमति अनिवार्य है। सहमति के लिए आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, या डिजिटल टोकन जैसे सरकारी दस्तावेजों का उपयोग किया जाएगा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ई-कॉमर्स, और गेमिंग कंपनियां जो व्यक्तिगत डेटा एकत्र करती हैं, डेटा फिड्यूशियरी कहलाती है। इन्हें उपयोगकर्ताओं को डेटा उपयोग के उद्देश्य और प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट जानकारी देनी होगी। नागरिकों को अपना डेटा हटाने, डिजिटल नामांकित व्यक्ति नियुक्त करने और डेटा प्रबंधन के लिए उपयोगकर्ता-अनुकूल तंत्र की मांग करने का अधिकार है।
प्रश्न यह है कि तमाम नियम कायदों के उपरांत ऐसी घटनाएं घटित होती है। सरकार का काम सिर्फ नियम बनाकर जिम्मेदारी से मुक्त होना नहीं है। उन नियमों का कितना सख्ती से पालन हो रहा है ,यह देखना और दिखाना ज्यादा महत्वपूर्ण है। नियम बनाने में सरकार कितनी भी तत्परता दिखाएं, निचले हिस्से पर प्रशासन का ढुलमुल रवैया काहिली और कामचोरी अब जगजाहिर है। प्रशासनिक अमले पर सरकार की पकड़ ही अंतत: समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।