-सुभाष मिश्र
मधुशाला कहें, मयकदा कहें या अहाता या बार कहें, जो भी कहें पर हरिवंशराय बच्चन की कालजयी कविता को याद करें-
मंदिर मस्जिद बैर कराते मेल कराती मधुशाला
पीने वाले नाम के फेर में नहीं पड़ते हैं। पीने वालों को पीने से काम है। पीने को शराब मिल जाए बैठने को जगह मिल जाए, मिलाने को पानी और चखने को थोड़ी बहुत मूंगफली, पीने वाला इतने में संतुष्ट हो जाता है। सबसे संतुष्ट जीव शराबी होता है। इस दौर के गायक अभिनेता पीयूष मिश्रा का गीत भी लाजवाब है-
व्हिस्की से प्यार कर ले थोड़ा दुलार कर ले
व्हिस्की तो लाजवाब है
सबका साथ, सबका विकास वाली छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने अंग्रेज़ी शराब दुकानों के लिए 9.5 प्रतिशत आबकारी शुल्क कम करके मदिरा पान करने वालों का दिल जीत लिया है। इसी मदिरा के चक्कर में भूपेश बघेल सरकार की बहुत बदनामी हुई थी। दिल्ली में केजरीवाल की सरकार इसी शराब के कारण चली गई। शराबियों के लिए सरकारों को कितना कुछ त्याग करना पड़ा, इसका अनुमान अभी शराबियों को नहीं है। जब होगा तो अगली सरकार शराब प्रेमियों की होगी। शराबियों को एक शोक सभा कांग्रेस और केजरीवाल के लिए जरूर करना चाहिए। इनका त्याग शराबियों के इतिहास में दर्ज होगा। शराब घोटाला अब भी मीडिया की प्रमुख खबरों में शुमार है। मदिरा प्रेमी अलग-अलग, अच्छे ब्रांड के लिए तरस रहे थे। ये अलग बात है कि नई सरकार को बने एक साल से ज़्यादा हो गया है पर सरदारजी अभी असरदार है। बीयर पीने वाले सिम्बा ही पसंद कर रहे हैं क्या करें? दूसरा भाये भी तो कैसे दूसरे ब्रांड मिलते ही नहीं हैं। गर्मी में सिम्बा ही यही गले को ठंडक पहुँचायेगी। सरकार बदलने से ना ब्रांड बदलते हैं ना सप्लायर ना ठेकेदार। सत्ता के गलियारों का खेल अलग हैं।
सरकार बदलने के बाद अपने कामकाज की उम्मीद रखने वाले बहुत से लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि पुराने चेहरे ही हर जगह ठेका उठा रहे हैं, सप्लाई कर रहे हैं, लाभ ले रहे हैं। अब उन्हें कैसे कोई समझाए कि सरकार बदली है अफ़सर तो वही हैं जिनके साथ ऐसे लोगों की अच्छी ख़ासी गलबहियां है।
अदम गोंडवी की गज़़ल का एक शेर है –
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में।
उतरा है रामराज विधायक निवास में॥
लोगों ने कहा हमीं ने बनाया है, हमीं संवारेंगे की भावना वाली विष्णु देव साय की सरकार को हमने चुना और सरकार ने जनभावना के अनुरूप शराब सस्ती कर दी। अभी शराब सस्ती हुई है धीरे-धीरे आटा, दाल भी सस्ता हो जाएगा। जनता को ज्यादा उतावली नहीं होना चाहिए । उम्मीद है कि आने वाले दिनों में लोग अच्छे ब्रांड और सस्ती शराब के लिए अब पड़ोसी राज्यों पर निर्भर नहीं रहेंगे। सरकार जनता को धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बना रही है। यह उसी की एक कड़ी है। हवाई यात्रा करने वालों के सूटकेस में दिल्ली, मुम्बई, बैंगलोर, हैदराबाद से लाने वाली बोतलों का भार भी थोड़ा कम होगा । छत्तीसगढ़ आने वालों को बाहर से शराब लाने की जरूरत नहीं है, सरकार उनकी मदद को तत्पर है।
छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार शराब पीने वालों को लेकर काफ़ी उदार है। छत्तीसगढ़ में अब रेस्टॉरेंट और ढाबों को भी बार लाइसेंस मिलने का रास्ता साफ हो गया है। आबकारी विभाग ने 10 कमरों की अनिवार्यता को खत्म करते हुए इस नई नीति को मंजूरी दे दी है। अब बार लाइसेंस प्राप्त करने के लिए रेस्टॉरेंट या ढाबों में कम से कम 10 कमरे होना अनिवार्य नहीं रहेगा। यह कदम मुख्य रूप से मदिरा प्रेमियों को सुविधा देने की दिशा में उठाया गया है।
आबकारी विभाग के नए नियमों के तहत 3 और 4 स्टार रेस्टॉरेंट के साथ-साथ ढाबों को भी बार लाइसेंस दिया जा सकेगा। लाइसेंस शुल्क क्षेत्र की आबादी के हिसाब से तय किया गया है। 1 लाख तक की आबादी वाले क्षेत्र में 18 लाख रुपये 3 लाख तक की आबादी वाले क्षेत्र में 24 लाख रुपये 3 लाख से अधिक की आबादी वाले क्षेत्र में 31 लाख रुपये। शराब दुकानों के बाहर पीने वालों के लिए अहाता बनाने वाली विष्णु देव साय के आबकारी विभाग का मानना है कि बड़े रेस्टॉरेंट और ढाबों में शराब परोसने से लोगों को काउंटर के साथ अतिरिक्त सुविधा मिल सकेगी। भूपेश बघेल सरकार को गंगा जल हाथ में उठाकर शराब बंदी नहीं करने के लिए पानी पी-पीकर कोसने वाली भाजपा को सत्ता में आते ही पता चल गया कि यदि शराब बंदी की तो इसका राज्य के राजस्व के अलावा पीने वाले पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों में देश भर में नकली शराब पीने से कुल सात हजार लोगों की मौत हुई है. इनमें से सबसे ज्यादा मामले मध्य प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब में दर्ज किए गए हैं. बिहार में नकली शराब के सेवन से हाल ही में 30 से अधिक लोगों की मौत हुई है. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जि़ले के लोफ़ंदी गांव में 7 और 8 फऱवरी, 2025 को पांच लोगों की मौत हो गई थी. कांग्रेस ने इन मौतों के लिए जहरीली शराब को जि़म्मेदार ठहराया था. हालांकि, जि़ला प्रशासन और कुछ लोगों का कहना था कि मौतें जहरीली शराब से नहीं हुई थीं. प्रशासन ने एक की मौत सर्पदंश, तीन की हार्ट अटैक व चार की विवाह आयोजन में फूड प्वाइजनिंग से होने की बात कही है। अधिकारियों की टीम मौके पर पहुंची हुई है और जांच में जुटी हुई है। जानकारी के अनुसार छह मृतकों का अंतिम संस्कार बिना पोस्टमार्टम ही कर दिया गया है। देश में जनसंख्या घनत्व और आबादी के मामले में भले ही छत्तीसगढ़ पीछे हो पर शराब खपत और बिक्री के मामले में छत्तीसगढिय़ा सबसे बढिय़ा है। शराब बिक्री के मामले में देश पांचवें नंबर आने वाले छत्तीसगढ़ की आबादी की कऱीब 40 प्रतिशत आबादी मदिरा प्रेमी है। छत्तीसगढ़ सरकार जल्दी ही पांचवें नंबर से पहले नंबर पर आने की कोशिश करेगी । शराब सस्ती हो गई है। अब जनता का भी राज्य के प्रति कुछ फर्ज बनता है कि वह ज्यादा से ज्यादा शराब पीकर प्रदेश को पहले नंबर पर ले आए। इसके अलावा जनजातीय समुदाय को स्वयं के सेवन के लिए पाँच लीटर शराब बनाने की छूट है जो राज्य की आबादी का तीस प्रतिशत से अधिक है। मदिरा प्रेमी ग़ालिब साहब की तरह कहीं भी बैठकर पीने को तैयार हैं।
बक़ौल मिर्जा ग़ालिब –
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहां पर ख़ुदा न हो
शराब बंदी की वकालत करने वाले बहुत सारे भाई साहब और सार्वजानिक रूप से आलोचना करने वालों को भी हमने ग़ालिब की तरह ही देखा है –
कहां मयखाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहां वाईज
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।
सरकार को यह समझ में आ गया है कि प्रकट में पीने वालों से ज्यादा चोरी छुपे पीने वालों की संख्या है इसलिए शराबियों के वोट की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
भाजपा जिस तरह विकास के लिए गुजरात मॉडल की बात करती रही है उसे शराब मॉडल के लिए छत्तीसगढ़ को चुनना चाहिए। देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा क़ाबिज़ है, उसे शराब बिक्री के मामले में पूरे देश में एक सा मॉडल अपनाना चाहिए। गुजरात, बिहार के लोगों को मदिरा पान से वंचित रखकर उनके मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए। बस, विकास और खुशहाली अब छत्तीसगढ़ के दरवाजे पर है।