Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – एक बंगला बने न्यारा

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

मुझे इस समय के राजनीतिक हालात को देखकर कुंदनलाल सहगल द्वारा 1937 में बनी फि़ल्म प्रेसीडेंट में गाया और फि़ल्माया गया गाना याद आ रहा है-
एक बंगला बनें न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा
सोने का बंगला, चंदन का जंगला
विश्वकर्मा के द्वारा, अति सुंदर प्यारा-प्यारा।

दिल्ली में चुनाव की घोषणा के साथ बंगला राजनीति चरम पर है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री निवास बंगले को बीजेपी शीश महल बता रही है। जिसमें अनाप-शनाप खर्च किया गया है। वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी के बंगलों को लेकर भी राजनीति उबाल पर है। आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह और सौरभ भारद्वाज सीएम हाउस पहुंचे, जहां उन्हें पुलिस ने रोक दिया। इसके बाद बीजेपी भी एक्शन में आ गई। पहले बीजेपी ने शीशमहल का वीडियो जारी कर आप से तीखे सवाल पूछे। इसके बाद दिल्ली बीजेपी प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा सीएम आतिशी के घर के बाहर पहुंच गए। उन्होंने दावा किया कि आतिशी के पास दो-दो बंगले हैं। उन्होंने आतिशी को बंगले वाली देवी कहा। वहीं आप पार्टी ने नये प्रधानमंत्री निवास पर हुए खर्च और साज-सज्जा पर सवाल उठाये। भाजपा कह रही है कि पीएम आवास सरकारी दर्जा प्राप्त बंगला है। कोई और प्रधानमंत्री आएगा तो वो उस घर में रहेगा। इस पर आप को क्या आपत्ति है। लेकिन शीशमहल में पीडब्ल्यूडी मना कर रहा है कि हमने पैसा नहीं लगाया तो आप की काली कमाई अरविंद केजरीवाल कहां से लाए? खबरों के मुताबिक़ अरविंद केजरीवाल के जिस मुख्यमंत्री निवास को शीशमहल बताया जा रहा है उसकी साज-सज्जा और मरम्मत पर आठ करोड़ खर्च हुए, वहीं प्रधानमंत्री आवास पर 2700 करोड़ खर्च हुए।
फि़ल्म तीसरी क़सम का एक गाना है –
सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है
न हाथी है ना घोड़ा है, वहां पैदल ही जाना है
तुम्हारे महल चौबारे, यहीं रह जाएंगे सारे
अकड़ किस बात कि प्यारे
अकड़ किस बात कि प्यारे, ये सर फिर भी झुकाना है
सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है।।

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हमारे राजनेता कैमरे में दर्ज अपने बयानों के बावजूद लगातार झूठ बोलते हंै। सादगी और सदाचार की बातें करते हुए अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली से कोई समझौता नहीं करते। सरकारी बंगलों की सजावट, मरम्मत पर साल दर साल लाखों-करोड़ों रूपये आफिशियली-अनआफिशियली ना जाने कितने पैसे खर्च होते हैं। ऐसे बंगले की सजावट, मरम्मत, रंग-रोगन वे चाहे तहसील, जिला स्तर पर हों या फिर राजधानी में, इसमें रहने वाले की राजनीतिक या प्रशासनिक ताक़त और प्रभाव के आधार पर तय होती है। यदि ये बंगले किसी मंत्री को आबंटित हो जाये तो फिर कहने ही क्या है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव से बंगला राजनीति चरम पर है। भाजपा और आप के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। दोनों पार्टियों के बीच अब आप के ‘शीशमहल और भाजपा के ‘राजमहल पर यानी सीएम, पीएम आवास पर दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। भाजपा का आरोप है कि केजरीवाल ने सीएम हाउस रेनोवेट कराने में घोटाला किया। टेंडर 8 करोड़ का था, पेमेंट 4 गुना ज्यादा किया। जवाब में आप ने पीएम आवास को 2700 करोड़ का राजमहल बताया है। मुख्यमंत्री आतिशी के बंगले को ख़ाली कराने को लेकर दिल्ली के पीडब्ल्यूडी ने कहा है कि आतिशी ने कभी इस बंगले का पजेशन ही नहीं लिया। पीडब्ल्यूडी ने एक लेटर जारी कर उनके दावों को खारिज कर दिया। पीडब्ल्यूडी ने कहा कि आतिशी कभी मुख्यमंत्री निवास में रहने ही नहीं आईं। पीडब्ल्यूडी ने कहा कि आतिशी से कई बार 6-फ्लैगस्टाफ रोड का पजेशन लेने को कहा गया, लेकिन वे नहीं मानीं। पीडब्ल्यूडी ने बताया कि आतिशी को दो नए आवासों का प्रस्ताव भी दिया गया और नियमों के मुताबिक, उन्हें आवास अलॉट किया गया। वक्त फिल्म में अभिनेता राजकुमार का एक डॉयलाग बहुत मशहूर हुआ था चिनायसेठ ‘जिसके अपने घर शीशे के होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। इस समय शीशे के घरों में रहने वाले एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार कर रहे हैं और जनता घायल हो रही है। हम पूरे देश में सरकारी बंगलों के आबंटन उसकी प्रक्रिया और उसके रखरखाव की बात करें तो हम देखते हैं कि इसके लिए नियम, प्रक्रिया और पद-वेतनमान के अनुसार आबंटन का प्रावधान है। सरकारी आवासी की श्रेणियों भी बंटी हुई है किन्तु बहुत बार सरकार, वरिष्ठ अधिकारी या दान-दक्षिणा के कारण पहले से मकान के लिए आवेदन करने वालों को मकान आबंटित नहीं हो पाते और बहुत ही जूनियर को तत्परता से मकान मिल जाते हैं। यह सही है कि हमारे देश में सरकारी मकानों, बंगलों की संस्था उतनी नहीं है, जितनी जरूरत है। इसी वजह से सरकार शहरों के अनुसार गृहभाड़ा भत्ता देती है। सरकारी बंगलों की साज-सज्जा पर होने वाले खर्च और उससे जुड़े विवाद तब उभरते हैं, जब सरकारी अधिकारी या राजनेता अपने बंगलों पर अत्यधिक धन खर्च करते हैं, जबकि आम जनता को बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
बड़े सरकारी बंगलों में अत्यधिक खर्च के कारणों में बंगलों का आधुनिकीकरण जिसमें बंगलों को आधुनिक सुविधाओं जैसे एसी, फर्नीचर, सुरक्षा उपकरण, लैंडस्केपिंग और स्मार्ट तकनीक से लैस किया जाता है। पुराने बंंगलों की मरम्मत और सौंदर्यीकरण में बड़ा बजट खर्च होता है। नए पावरफुल आवंटितों के व्यक्तिगत स्वाद और जरूरतों के अनुसार इंटीरियर डिजाइन और अन्य बदलाव किए जाते हैं। बंगलों में होने वाले विशेष आयोजनों जिसमें सरकारी या राजनीतिक बैठकों, कार्यक्रमों और अन्य आयोजनों पर भी अतिरिक्त खर्च होता है। दिल्ली में हो रहे बंगला विवाद के पहले भी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के सरकारी बंगलों पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के मामले विवाद का कारण बने हैं।
सरकारी बंगलों पर खर्च का मुद्दा न केवल वित्तीय जिम्मेदारी का सवाल है, बल्कि यह सरकारी अधिकारियों और नेताओं की संवेदनशीलता की जवाबदेही का भी प्रतीक है। जनता के पैसे का उपयोग यदि बुनियादी विकास कार्यों में हो तो यह समाज के लिए अधिक लाभकारी होगा।

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