साहित्य के ज़रिए राजनीतिक जमीन तलाशने का अजब ग़ज़ब संयोग

श्रीकांत वर्मा अपनी मगध सीरिज़ की कविताओं में लाख कहते रहे हों कि कोसल में विचारों की कमी है किंतु विचारवान कहे जाने वाले लोगों के पास लाभ के विचारों को प्राप्त करने के बहुत से अजब ग़ज़ब संयोग बनते हैं । अभी 18 सितंबर को श्रीकांत वर्मा की 94 वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली में श्रीकांत वर्मा ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जिनमें उनके बेटे अभिषेक वर्मा , जो बहुचर्चित हैं , की मौजूदगी में कुछ लोग जुटे उनमें रायपुर के कुछ साहित्यकार भी थे और वहाँ उनकी लंबी बातचीत अभिषेक वर्मा से हुई । ये अजब ग़ज़ब संयोग ही कहा जायेगा की उसके ठीक कुछ दिन बाद ही अभिषेक वर्मा शिव सेना शिंदे गुट के राष्ट्रीय संयोजक के रूप में पहली बार रायपुर आ रहे है । उनके स्वागत सत्कार में बड़े बड़े बैनर शहर भर में दिखाई दे रहे हैं । सुना है वे रायपुर में आयोजित साहित्य चौपाटी में भी पधारेंगे । अभी हाल ही में दिल्ली में आयोजित श्रीकांत वर्मा श्रद्धांजलि समारोह में अभिषेक वर्मा ने अगले साल से श्रीकांत वर्मा सम्मान के रूप में 21 लाख रूपये , पत्रकारिता के लिए पांच लाख रूपये , कथा और परफ़ॉर्मेंस आर्ट के लिए दो-दो लाख रुपये पुरस्कार की राशि घोषित की है । भविष्य की संभावना तलाशने वाले लोग अब अभिषेक वर्मा का महिमामंडन करने में लग जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा । ये पूंजी बाज़ार और मार्केटिंग के साथ चापलूसी का भी समय है ।


विश्वस्त सूत्रों से यह भी पता चला है कि अभी हाल ही में दिल्ली में श्रीकांत वर्मा पर आयोजित कार्यक्रम के लिए अभिषेक वर्मा सबसे पहले अशोक वाजपेयी से संपर्क किया था, पर अभिषेक वर्मा की संदिग्ध राजनितिक प्रतिबद्धता के मद्देनज़र अशोक वाजपेयी ने उन्हें अपनी सहभागिता से साफ इंकार कर दिया था, इसके बावजूद कि श्रीकांत वर्मा ना सिर्फ उनके प्रिय कवि हैं बल्कि घानिष्ट मित्र भी रहे हैं.
पिछले कुछ सालों से अभिषेक वर्मा नेपथ्य में रहकर बिलासपुर में भी श्रीकांत वर्मा पर भव्य आयोजन करवाते रहे हैं किंतु अब वे फ़्रंट फुट पर हैं । सूत्रों का कहना है कि उन्होंने भाजपा में भी जाने की कोशिश की किन्तु उन्हें उनके कारनामों , ट्रैक रिकॉर्ड के चलते उन्हे एंट्री नहीं मिल पाई । श्रीकांत वर्मा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा से सदस्य रहे हैं । वे इंदिरा गांधी के क़रीबी भी थे । ग़रीबी हटाओ जैसा नारा भी उन्होंने दिया था । बिलासपुर में जन्मे , पेशे से शिक्षक रहे श्रीकांत वर्मा मुक्तिबोध , परसाई , कवि प्रमोद वर्मा के नज़दीकी मित्रों में शुमार थे । वे सिस्टम में रहकर सिस्टम की सच्चाईये और अपनी छटपटाहट को अपनी कवि के ज़रिए बहुत ही बेबाक़ी से व्यक्त करते थे ।उनकी कविताओं में राजनीति की विद्रूपता और उसकी सच्चाइयों को लिखने का साहस था ।राजनीति में ही रहकर राजनीति की सच्चाइयों को उजागर करने वाले श्रीकांत वर्मा अकेले कवि थे । प्रसंगवश उनकी कविता जो उनकी बैचेनी बेबाक़ी को बताती है ।

मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए

मगध है, तो शांति है

कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्‍यवस्‍था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्‍यवस्‍था रहनी ही चाहिए

मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्‍या कहेंगे लोग?

लोगों का क्‍या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,

रहने को नहीं

कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए

एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्‍तक्षेप-

वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्‍तक्षेप से-

जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्‍न कर हस्‍तक्षेप करता है-
मनुष्‍य क्‍यों मरता है?

उनके बाद उनकी पत्नी वीणा वर्मा भी राज्यसभा सदस्य रही । माता पिता के राजनीतिक संबंधों के चलते अभिषेक ने हथियारों की ख़रीद बिक्री और अपने मंहगी लाईफ स्टाइल से जल्दी ही बहुतो को प्रभावित किया और राष्ट्रीय पत्रिकाओं के कवर पेज हीरो बन गये किन्तु कालांतर में उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी । अब वे नये सिरे से राजनीति में अपनी जमीन तलाश रहे हैं ।
दरअसल जो लोग श्रीकांत वर्मा को जानते थे , उनके लेखन से परिचित हैं , वे उनके बेटे अभिषेक वर्मा को शिवसेना के नेता के रूप में देखकर चकित हैं । वैसे अभिषेक के पूर्व कारनामों , जीवनशैली को देखकर उन्हें श्रीकांत वर्मा से जोड़ना ठीक नहीं होगा । अभिषेक पैसे और पहुँच के बल पर छत्तीसगढ़ में कला साहित्य से जुड़े कुछ लोगों को लेकर अपनी नई जमीन तलाश रहे हैं । अभिषेक की नई जमीन की तलाश में कला साहित्य की छत्तीसगढ की जमीन ध्वस्त होगी या बचेगी अब यह देखना है।

श्रीकांत वर्मा की कविता है – कोसल में विचारों की कमी है

महाराज बधाई हो! महाराज की जय हो।
युद्ध नहीं हुआ—

लौट गए शत्रु।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!

चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ,
दस सहस्त्र अश्व,

लगभग इतने ही हाथी।
कोई कसर न थी!

युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।

न उनके पास अस्त्र थे,
न अश्व,

न हाथी,
युद्ध हो भी कैसे सकता था?

निहत्थे थे वे।
उनमें से हरेक अकेला था

और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!

जो भी हो,
जय यह आपकी है!

बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ,

आप चक्रवर्ती हुए—
वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं

जैसे कि यह—
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,

कोसल में विचारों की कमी है!

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