Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सुशासन का मतलब सस्पेंशन नहीं

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ में कोई भी सरकार आती है तो वह कहती है कि हम सुशासन लाएंगे। सुशासन का मतलब सस्पेंशन नहीं होता है। सुशासन का मतलब यह नहीं होता कि उसमें कड़ाई की जाए। हम सुशासन की कल्पना रामराज से करते हैं तो ऐसे में हमें गोस्वामी तुलसीदास की वह पंक्तियां याद आती है कि –
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीत।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत।।
इसका तात्पर्य यह है कि बिना भय के मित्रता नहीं होती है।

भगवान राम जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, जब उनको भी समुद्र के किनारे उसे लांघने की अनुमति लेने के लिए तीन दिन तक उस समुद्र से विनती करनी पड़ी तो उनका भी धैर्य डगमगा गया। आवेश में आकर रघुकुल तिलक भगवान राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को आदेश दिया कि हे लक्ष्मणे। तुम मेरा धनुष और बाण लेकर आओ। अब इस बात को अगर हम शासन-प्रशासन की तरफ ले आते हैं तो लोगों में शासन का एक भय होना चाहिए जो आजकल नहीं दिखता है। शासन का अपने तंत्र पर जिस तरह का अंकुश होना चाहिए, उतना अंकुश नहीं लगा पाता, जिसके कारण प्रशासन निरंकुश हो जाता है।
छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ होने के बाद मोदी का सुशासन लाने की बात करने वाले सरल हृदय वाले मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को यह लगा कि बरसों से जड़ और निकम्मी प्रशासनिक इकाई के कुछ नुमाइंदे अपने कामकाज में सुधार नहीं ला रहे हैं तो उन्होंने पहले कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस करके दो दिवसीय समझाईंश की क़वायद की और फिर तबादला, सस्पेंशन जैसे हथियारों का इस्तेमाल करके मशीनरी को यह संदेश देने की कोशिश की ‘अउ नई सहिबो बदल के रहिबोÓ।
चुनाव तक तो यह नारा सही था और भाजपा ने कांग्रेस की भूपेश सरकार को जनता के वोटों की ताक़त पाकर 71 से 35 सीटों पर सिमटकर विपक्ष में बैठने मजबूर कर दिया। थोड़ा पहले हम देखते हैं कि केन्द्र की एजेंसी ईडी, आईटी और सीबीआई का प्रकोप भी कांग्रेस के सत्ता से बाहर होते ही लगभग ख़त्म हो गया किन्तु शासन-प्रशासन को जैसे चलना चाहिए वैसा ही चल रहा है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कलेक्टर कांफ्रेंस मेें राजस्व के मामलों में ढिलाई पर कलेक्टरों को घुट्टी पिलाई। भू-माफियाओं को संरक्षण देने जैसे मुद्दों पर एसपी की खिंचाई भी की। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बहाने प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के साथ नई छवि भी पेश की। जैसा कि लोग उन्हें कहते थे कि वे शांत स्वभाव के हैं। उन्होंने कलेक्टरों को अपने मातहतों को सुधारने से लेकर आम लोगों से अच्छे से पेश आने की नसीहत भी दी।
बलौदाबाजार में कलेक्टर परिसर में आगजनी और हिंसा मामले में राज्य सरकार ने बड़ा ऐक्शन लेते हुए जिले के कलेक्टर और एसपी को हटा दिया था। आईएएस अधिकारी दीपक सोनी को बलौदाबाजार जिले का नया कलेक्टर और विजय अग्रवाल को नया एसपी बनाया। हटाए गए कलेक्टर केएल चौहान को मंत्रालय में विशेष सचिव और एसपी सदानंद कुमार को रायपुर पुलिस मुख्यालय में भेज दिया गया।
छत्तीसगढ़ में कलेक्टर-एसपी की कांफ्रेंस के बाद सीएम विष्णु देव ने कार्रवाई करते हुए राजस्व प्रकरण निपटाने में देरी सहित कई कार्यों में लापरवाही बरतने पर बस्तर के कलेक्टर 2015 बैच के आईएएस विजय दयाराम के. को हटा दिया। समीक्षा बैठक के दौरान सीएम ने कुछ जिले के कलेक्टर्स पर नाराजगी जताई थी। बस्तर में विजय दयाराम की जगह बस्तर में 2015 बैच के लिए आईएएस हरीश एस. को यहां का कलेक्टर बनाया। अभी तक हरीश सुकमा जिले के कलेक्टर थे। वहीं सुकमा में 2018 बैच के आईएएस देवेश कुमार ध्रुव को नया कलेक्टर बनाया गया। मुंगेली के एसपी गिरिजा शंकर को हटाकर उनके स्थान पर भोजराम पटेल को एसपी बनाया गया। वहीं बात की जाए कवर्धा के लोहारडीह गांव में आगजनी और हत्याकांड के बाद सीएम ने कवर्धा के कलेक्टर जन्मेजय महोबे और एसपी अभिषेक पल्लव को हटा दिया। इसी तरह शैक्षणिक सत्र की नई किताबों को रद्दी में बेचे जाने के मामले में पाठ्यपुस्तक निगम के महाप्रबंधक प्रेम प्रकाश शर्मा को हटाया गया। वहीं बीते 1 अगस्त को भी एक साथ 20 आईएएस का तबादला किया गया था।
अब हम देख रहे हैं कि जो सरकार है वह लगातार कहीं न कहीं कलेक्टर एसपी या बाकी के अधिकारियों के तबादले कर रही है। उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। अक्सर बहुत कम ऐसा होता है कि कलेक्टर और एसपी पर कार्रवाई हो। ऐसा करके प्रदेश के मुखिया विष्णुदेव साय ने यह बात बता दी है कि कोई चाहे कितना भी बड़ा हो, अगर वह कोई गलती करता है तो उस पर कार्रवाई जरूर होगी।
अभी तो आलम यह है कि अगर कहीं भी मुख्यमंत्री जा रहे हैं और उनको ऐसा दिखता है कि यहां पर किसी शिक्षक या फिर किसी दूसरे अधिकारी ने गलती की है तो उस पर तत्काल ऐक्शन लिया जाता है। कई बार देखा जाता है कि किसी न किसी बड़े नेता या फिर किसी विधायक अथवा सांसद का रिकमेंडेशन आ जाता है कि अमुक अधिकारी को सस्पेंड किया जाए तो यहां पर हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि सिर्फ सस्पेंशन ही सुशासन का विकल्प नहीं है। विकल्प और बहुत कुछ हो सकता है। सस्पेंशन कोई बहुत बड़ा दंड नहीं होता है। जब कोई व्यक्ति सस्पेंड होता है तो उसे 45 दिन के अंदर एक आरोप पत्र यानी चार्जशीट देनी पड़ती है कि उसे पर कौन-कौन से आरोप लगे हैं। अब अगर उसे यह आरोप पत्र नहीं दिया जाता तो वह स्वयं में वही बहाल हो जाता है। इसके लिए उसे किसी अलग से ऑर्डर की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। ऐसा नहीं है कि सस्पेंशन में उसे वेतन नहीं मिलता। किसी भी कर्मचारी को उसके सस्पेंशन टाइम के अंदर उसके वेतन के 50 फीसदी से अधिक की राशि उसे हर महीने गुजारा भत्ता के रूप में दी जाती है। उसके बाद जब वह बहाल हो जाता है तो उसकी बची हुई 50 फीसदी की राशि भी उसको जारी कर दी जाती है। कई बार तो लोग जानबूझकर इस तरह की कोशिश करते हैं कि छोटी-छोटी गलती पर उनको सस्पेंड कर दिया जाए ताकि उन्हें उनकी आधी तनख्वाह मिलती रहे। उसके बाद जब वह बहाल हो तो उनकी बाकी की बची हुई आदि तनख्वाह भी एक साथ मिल जाए।
अब चलो यह मान लेते हैं कि किसी व्यक्ति का तबादला कर दिया गया और एक दूसरे व्यक्ति को सस्पेंड कर दिया गया। क्या तबादला कर रहा है या सस्पेंड करना सुशासन है? लोगों के काम का जो एक पैरामीटर है उसे सेट किए जाने की जरूरत है। जैसे राजस्व प्रकरण निपटाए जाने के लिए एक समय सीमा निर्धारित की गई है। अब जैसे कोई प्रमाण पत्र बनाने की समय सीमा है तो उसका सम्यक रूप से पालन होना चाहिए। ताकि लोगों को एक निर्धारित समय के अंदर निर्धारित प्रारूप का प्रमाण पत्र मिल सके।
अगर गुंडागर्दी बढ़ रही है तो पुलिस को चाहिए कि वह आम नागरिकों के माध्यम से उन गुंडों की शिनाख्त करवाए। इसके बावजूद गुंडई में कोई कमी नहीं आ रही है। इसके समाधान के लिए कोई भी आगे नहीं आता है। जबकि होना यह चाहिए कि हर किसी को उनके खिलाफ सड़कों पर आना चाहिए।
एक समाज रहता है जो शासन से संचालित होता है। ऐस में सुशासन में समय का बड़ा अहम रिश्ता है। सुशासन का मतलब यह होता है कि जो चीजें तय की गई है, उसके करने का जो एक पैरामीटर है। लोगों के लिए सिटीजन चार्टर है तो वहां पर लोगों के कामकाज आसानी से होते हैं। यह सारी चीज शासन से गुड गवर्नेंस होती है और उन्ही के कायदे पर क्रियान्वित होती है। मुख्यमंत्री को समीक्षा बैठक के दौरान यदि मुख्यमंत्री को समीक्षा बैठक में ये कहना पड़ता है कि पुराने बाबू है इनको बदलना पड़ेगा, लालफीताशाही अब नहीं चलेगी। यही चीज पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार कहा करती थी, यही पटवा जी की सरकार कहती थी। थोड़ा सा और पीछे जाए तो यही पंडित रविशंकर प्रसाद की सरकार भी कहती थी। सुशासन वह है जिसमें नागरिकों को सर्वाधिक सुविधा मिले। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो जो प्रशासनिक गवर्नमेंट सर्वेंट है तो क्या वह सर्वेंट की तरह सेवा करने के लिए तैयार है। यह सारी चीज जो है वह कहीं ना कहीं हमें लगता है संवेदनशील प्रशासन के अंदर आते हैं। अगर हम सुशासन की बात करते हैं प्रशासन को कहीं ना कहीं परिभाषित करना पड़ता है।
यही सारी चीज कई सरकार पहले भी कह चुकी है। सुशासन का मतलब कहीं भी निलंबन नहीं हुआ करता है। ऐसे में देखा यह जाता है कि अगर आप किसी कलेक्टर को हटाते हैं तो उसे मंत्रालय में कोई सुरक्षित पोस्ट दे देते हैं। एक टीआई को हटाते हैं तो दूसरा टीआई आ जाता है। आजकल देखा जाए तो प्रशिक्षण पर जोर दिया जा रहा है। चाहे कोई मसूरी में प्रशिक्षण ने चाहे कोई मध्य प्रदेश मुख्य शिक्षा लें, उन्हें यह बात बताया जाता है कि आपका जन्म प्रतिनिधियों के साथ कैसा संबंध हो, आपका एक आम आदमी के प्रति कैसा व्यवहार हो और आपके काम का असली तरीका क्या हो?
ऐसा कैसे हो सकता है कि कवर्धा में एक सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता को गिरफ्तार कर उसे इतना मारा जाता है कि अगले दिन ही उसकी मौत हो जाती है। कस्टोडियल डेथ थानों में नहीं होनी चाहिए। इसके लिए मानवाधिकार आयोग की लगातार समय-समय पर स्थान की मॉनीटरिंग भी करता रहता है। सवाल यह उठता है कि एक व्यक्ति थाने में कैसे इस कदर पीटा गया कि उसके अगले दिन ही उसकी मौत हो गई और अब उसकी मौत को लेकर लोग सड़कों पर उतरने को आमादा है?
मुख्यमंत्री ने कवर्धा के लोहड़ी गांव में हुई घटना के बाद वहां के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक दोनों को हटाने के आदेश जारी कर दिए। वहीं पर हम देखते हैं कि अगस्त में एक साथ 20 कलेक्टर्स का तबादला कर दिया गया। यह सब बातें मैंने इसलिए बताई क्योंकि हम यह बताना चाहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार ने जब भी कोई जरूरत पड़ी तभी प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला किया। वह हमेशा इसके व्यवसायीकरण से बचते रहे जैसा कि पूर्व की सरकारों में कई मुख्यमंत्री पर यह आरोप लगा चुके हैं।
सरकारी मशीनरी ताश के 52 पत्तों की तरह होती है उसमें 53वां पत्ता नहीं होता है। यह फिक्स होता है चाहे वह भारतीय प्रशासनिक काडर का हो या भारतीय वन सेवा का हो या फिर किसी दूसरे काडर का अफसर हो। राज्य की भी जो सेवाएं होती है उसका भी काडर होता है। एक अफसर अपने साथ कई प्रभार रखता है। ऐसे में जरूरी है कि इन सभी के कार्यों की प्रॉपर मॉनिटरिंग हो।
यह जो सारी चीज हो रही है इनका निदान सिर्फ तबादला नहीं हो सकता है। इसके लिए प्रॉपर मॉनिटरिंग ने हाथ जरूरी है। उनकी एक लिस्ट निकाली जाए, कितने लोगों पर कार्रवाई हुई, कितने लोग सस्पेंड हुए, कितने लोगों का वेतन रोकने की वैधानिक कार्रवाई की गई। इन सारी चीजों को निकालकर और उनका विश्लेषण किया जाना निहायत जरूरी है। ऐसी व्यवस्था में अगर इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों का प्रयोग बढ़ेगा तो नि:संदेह इससे एक उल्लेखनीय सुधार हमारी प्रशासनिक व्यवस्थाओं में देखने को मिलेगी।
अब हम गवर्नेंस की बात करने लगे हैं, जहां सारी चीज ऑनलाइन होती है। इससे पारदर्शिता के साथ कम समय में अधिक कार्य निपटाए जा सकते हैं। वहीं ई गवर्नेंस की बात भी हो रही है। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक चीजों और पेपर लेस गवर्र्नेंस का प्रभाव बढ़ेगा तो निश्चित रूप से यह सुशासन की विधा में एक उल्लेखनीय कदम होगा।
सुशासन की दिशा में बहुत सारे कदम उठे हैं पर हमें लगता है कि सुशासन लाने के लिए हर तरफ से कोशिश करने की जरूरत है। अगर कर्मचारियों से जुड़ी हुई कोई बातें हैं तो वह मांगे कैसे पूरी होगी। उनकी परामर्शदात्री समिति क्या वह समय पर सारे कार्य कर रही है। क्या जो शांति समिति की बैठक है उसमें प्रभावित लोगों को भी शामिल किया जा रहा है? अलग-अलग तरीके से शासन सांप्रदायिक सौहार्द्र स्थापित करता है। सरकारी स्कूल जाकर देखें क्या वहां पर किस तरह की पढ़ाई हो रही, छात्रावास की व्यवस्था ठीक है कि नहीं। क्या बच्चों के साथ कोई अत्याचार तो नहीं हो रहा है या किसी को कोई परेशानी तो नहीं है। जेल में कैदी के लिए जो पूरा मैन्युअल है उसका पालन हो रहा है कि नहीं। अस्पताल में दवाइयां है कि नहीं, इसका जो डिलीवरी सिस्टम है वह प्रॉपर ढंग से कम कर रहा है कि नहीं। यह देखने के लिए हर स्तर पर सरकार की कोशिश होनी चाहिए। सत्ताधारी दल से जो लोग आते हैं उनकी भी अपनी जिम्मेदारी है कि वह भी इसकी प्रॉपर मॉनिटरिंग करें। सुशासन केवल सरकार के भरोसे नहीं आएगा यह सबकी जिम्मेदारी है। जो लोग सत्ता में आते हैं, जो शासन चलते हैं उनको लगता है कि प्रशासन को एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित कर देने से ही सारी समस्याओं का हल हो जाएगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ में सुशासन लाने के लिए मुख्यमंत्री साय की तरफ से जो भी प्रयास किया जा रहे हैं, वे निहायत ही जरूरी हैं।

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