हम दोनों हरिशंकर परसाई स्कूल से हैं । हमारा स्कूल एक था,हमारा कुनबा एक था। और हमारा DNA एक हैं, क्योंकि हम उसी तरह से चीजों को बदलने की कोशिश करते हैं जैसे परसाई चीजों को देखा करते थे ।
-सुभाष मिश्रा
दादा के साथ मेरे बहुत से पत्राचार हुए। वो लगातार चिट्ठी लिखते थे, और मैं चिट्ठी लिखता था।वो भी मेरे जिज्ञासा हुआ करते थे। जो उनको शांत किया करते थे
- डॉ. योगेंद्र चौबे, खैरागढ़
जैसे सूरज की धूप खिड़की से अंदर आ जाती हैं, और उस धूप से आप गर्मी की तपिश का अंदाजा लगाते हैं । वैसे ही मेरी जिंदगी में अरुण दादा का आना हुआ
- गौरव फिल्म मेकर, मुंबई
मैंने क्या खोया हैं वो मैं जनता हूं निजी रूप से और वो नहीं मिल सकता। वो चीजें जरूर रहेंगी। उनके लोग रहेंगे, वो जितने मेरे अंदर हैं। वो मेरे उतने ही रहेंगे
- अजय काकोनिया, कुमुद पटेल, पूना
अरुण मैं संगठन की शक्ति अदभुत थी। जो लोगों को जोडऩे की, उसने इतने सारे लोगों को जोड़ा हैं इतने सालों में और उसके द्वारा जोड़े गए लोग आज प्रतिष्ठित जगहों पर हैं।
- राकेश दीक्षित, जबलपुर
मेरा और अरूण का पचास साल का साथ है हरिशंकर परसाई की रचनाओं की नाट्य प्रस्तुति निठल्ले की डायरी जिसे अरूण ने नाट्य रूपांतरित किया था हम चालीस साल से कर रहे हैं सैकड़ों शो किये । हमने मिलकर बहुत से नाटक आयोजन किये । अरूण को ऐसे मुझे छोड़कर नहीं जाना था , शायद वहाँ पहुँचकर मेरे लिए अगले नाटक की तैयारी में लगा हो
- नवीन चौबे वरिष्ठ रंगकर्मि जबलपुर
अरूण के साथ मैंने बरसों नाटकों के लिए रंग संगीत किया । अरूण बहुत जीवट का पडऩे लिखने चीजो को बारीकी से समझने वाला शक्स था
- मुरलीधर नागराज संगीतकार
अरूण के नाटकों के लिए मैंने बहुत से सेट डिज़ाइन किये हमने पत्रकारिता साथ साथ की । हमारे बहुत झगड़े भी होते थे पर रात में हम प्याला हम निवाला होकर सारें गिला शिकवे दूर करके हम फिर से नये काम में लग जाते थे
- विनय अम्बर सीनियर फोटो जर्नलिस्ट , डिज़ाइनर