Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जवान बने रहने की आदिम लालसा

जवान बने रहने की आदिम लालसा

-सुभाष मिश्र

अजर अमर रहने के तमाम आशीर्वादों, दुआओं और धार्मिक प्रयोजनों के बावजूद कोई भी आदमी अधिकतम सौ-सवा साल से ज़्यादा जिया हो, इसके वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलते। कहा जाता है ‘आया है सो जायेगा, राजा, रंक फक़़ीर।’ दुनिया में कुछ देवताओं और लोगों को छोडक़र अमर कोई नहीं है। ईश्वर को भी राम और कृष्ण को भी देह त्यागनी पड़ी थी। आधुनिक समय में लोगों को यह बहुत जल्दी समझ में आ गया कि अमर रहना संभव नहीं है लेकिन हमेशा जवान बने रहने की कोशिश की जा सकती है। जवान बने रहने की इच्छा कोई नई इच्छा नहीं है। राजा ययाति, जो कि राजा नहुष के पुत्र थे, को उनके ससुर शुक्राचार्य ने श्राप दिया था कि वे जवानी में ही बूढ़े हो जाएंगे। ययाति ने अपने पांचों पुत्रों से अपनी जवानी मांगी, लेकिन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र पुरु ने ही उन्हें अपनी जवानी दी। पुरु ने अपने पिता को अपनी जवानी दी और खुद बूढ़े हो गए। ययाति ने फिर अपनी जवानी के साथ

कई वर्षों तक भोग-विलास किया, लेकिन अंतत: उन्हें एहसास हुआ कि तृष्णा कभी खत्म नहीं होती, और उन्होंने वन में तपस्या करने का फैसला किया।
आदमी की इस आदिम लालसा को बाजार ने लपक लिया। शुरुआत में सौंदर्य प्रसाधन की ऐसी सामग्री आई जो युवा दिखने में मददगार थी। लेकिन जल्दी ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यह समझ में आ गया कि इससे सिर्फ दुनिया के आधी आबादी यानी स्त्रियों को प्रभावित किया जा सकता है और उपभोक्ता बनाया जा सकता है। बाजार ने महसूस किया कि जवान बने रहने के लालसा तो पुरुषों में भी है। यहां से पुरुषों के लिए सौंदर्य सामग्री से बात आगे जाकर ऐसे फूड प्रोडक्ट जिनमें प्रोटीन पाउडर, स्टेरॉयड और विटामिन सप्लीमेंट्स पर आई है, जो यह दावे करने लगे कि इससे व्यक्ति लंबे समय तक जवान नजर आएगा बल्कि हमेशा जवान नजर आएगा। बाजार ने यह भी समझ लिया था कि अधिकांश युवा वर्ग व्यायाम में ज्यादा विश्वास नहीं करता और ज्यादा श्रम करना भी नहीं चाहता है। तब अनेक ऐसे प्रोटीन बाजार में उतारे गये जिससे मसल्स बनने के दावे किए गये। इससे कृत्रिम रूप से मांसपेशियां उभारी जा सकती हैं। इस तरह के फूड प्रोडक्ट का बाजार 2000 करोड़ रुपए से अधिक का हो चुका है। आंशिक रूप से इससे प्रकट में फायदा भी होने लगा। शुरुआत में इसे सेलिब्रिटीज ने आजमाया क्योंकि लंबे समय तक बाजार में टिके रहने के लिए या अपने फील्ड में बने रहने के लिए जवानी उनकी अनिवार्य आवश्यकता और विवशता है। विदेशों से चलकर यह रोग एशियाई देशों में और विशेषकर भारत में आया। कहा जाता है कि सलमान खान की मसल्स का राज भी ऐसे ही प्रोटीन हैं। अनेक फूड विशेषज्ञ और डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसे प्रोटीन एक समय के बाद जानलेवा है। युवा कम समय में मसल्स बनाने और मांसपेशियां उभारने के लिए ओवरडोज लेने लगे हैं। जिसका परिणाम अस्पताल होता है और अंत में मौत। हाल ही में शेफाली जरीवाला की मौत को भी इन्हीं कारणों के संदर्भ में देखा जा रहा है। एंटी एजिंग दवाइयों की निरंतरता एक समय बाद उसका एडिक्ट बना देती है। लोग माइकल जैक्सन की मृत्यु को भी भूले नहीं हैं।

ब्यूटी पार्लर अब स्त्रियों के अलावा पुरुषों के लिए भी होने लगे हैं। वैश्विक सौंदर्य प्रसाधन बाजार का विस्तार 2023 तक लगभग 580 अरब डॉलर था और इसके 2030 तक 800 अरब डॉलर यानी 68,600 करोड़ रुपए तक पहुँचने की संभावना है। भारत में भी यह उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। जहाँ सौंदर्य उत्पादों, जिम, स्पा, और कॉस्मेटिक सर्जरी की माँग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार, भारत का सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल बाजार 2025 तक दो हजार अरब रुपए से अधिक का हो जाएगा। पुरुषों के लिए दाढ़ी और हेयर स्टाइल सामान्य बात है। यह सहज स्वीकृत है क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए कोई बहुत ज्यादा हानिकारक नहीं है।

स्त्री और पुरुष दोनों सुंदर और सुडौल दिखने के लिए ऐसी कोशिशें कर रहे हैं, ऐसे फूड प्रोडक्ट और क्रीम-पाउडर का उपयोग कर रहे हैं जो त्वचा और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। समाज और देश के लिए चिंतित रहने वाले कुछेक डॉक्टर बार-बार इसकी चेतावनी भी देते हैं। चेहरा सुधारने, गोरा करने, और उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए कॉस्मेटिक सर्जरी की माँग बढ़ी है। भारत में हर साल लगभग 10 लाख कॉस्मेटिक प्रक्रियाएँ की जा रही हैं, जिनमें लिपोसक्शन, राइनोप्लास्टी और स्किन लाइटनिंग जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं। भारत में इसकी चर्चा तब अधिक होने लगी थी जब मीडिया में यह बात आई कि श्रीदेवी ने अपनी नाक की सर्जरी 20 से अधिक बार करवाई है। श्रीदेवी को यह भ्रम हो गया था कि उसकी नाक सुंदर नहीं है, सर्जरी से सुंदर हो जाएगी। अधिकांश लोगों का कहना है कि सर्जरी के बाद उसकी मौलिक सुंदरता खत्म हो गई थी। इसके बाद प्रियंका चोपड़ा ने नोज़ सर्जरी या राइनोप्लास्टी ,लिप फिलर्स कराई। जूही चावला और शिल्पा शेट्टी ने नोज सर्जरी, बोटोक्स ट्रीटमेंट, राइनोप्लास्टी और लिप फिलर्स, अनुष्का शर्मा ने लिप फिलर्स, भूमि पेडनेकर ने लिपो सक्शन, फेशियल फिलर्स, जॉलाइन स्कल्पटिंग जैसे कॉस्मेटिक को चुना है। जाह्नवी कपूर ने लिप फिलर्स और राइनो प्लास्टी, आयशा टाकिया ने लिप फिलर्स और राइनोप्लास्टी। पुरुष कलाकार भी पीछे नहीं हैं। सलमान खान ने हेयर ट्रांसप्लांट और झुर्रियों से मुक्ति के लिए आमिर खान और सलमान खान दोनों ने बोटोक्स जैसे गैर सर्जिकल उपचार कराया। शाहरुख खान के बारे में कहते हैं कि एंटी-एजिंग उपचार कराते हैं। यह लिस्ट बहुत लंबी हो सकती है। कुल मिलाकर यह कहना है कि जब इसी तरह के उपचार से माइकल जैक्सन की दर्दनाक मृत्यु का इतिहास सामने है फिर भी लोग इससे बाज नहीं आ रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी इन्हीं कलाकारों से प्रेरणा ले रही है।
लोगों का यह जुनून केवल व्यक्तिगत इच्छा तक सीमित नहीं है, इसके पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कारक काम कर रहे हैं। इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर ‘परफेक्ट’ शरीर, गोरी त्वचा और जवानी की छवियाँ लगातार प्रचारित की जाती हैं। फि़ल्टर और एडिटिंग टूल्स ने अवास्तविक सौंदर्य मानक स्थापित किए हैं, जिससे लोगों में हीन भावना पैदा हुई है और अपनी प्राकृतिक बनावट को ‘कमतर’ मानने लगे हैं।

आधुनिक समाज में शारीरिक आकर्षण को करियर, रिश्तों और सामाजिक स्थिति से जोड़ा जाता है। गोरी त्वचा, सुडौल शरीर और जवान दिखना आकर्षक और ‘सफलता’ का प्रतीक बन गया है। भारत में गोरी त्वचा को सुंदरता का पर्याय मानने की मानसिकता अंग्रेजों के समय से चली आ रही है। स्किन लाइटनिंग क्रीम्स का बाजार भारत में 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का है, जो इस मानसिकता का प्रमाण है। हमारे यहां एक यह भ्रामक धारणा भी फैली है कि पश्चिम के प्रोडक्ट बहुत विश्ववसनीय और अच्छे हैं जबकि वहां भी इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। पश्चिमी सौंदर्य मानकों का प्रभाव भी युवाओं को प्लास्टिक सर्जरी और बॉडी शेपिंग की ओर धकेल रहा है।
कृत्रिम सौंदर्य की चाह में लोग न केवल अपनी सेहत बल्कि जीवन को भी दाँव पर लगा रहे हैं। अनियंत्रित प्रोटीन पाउडर और स्टेरॉयड का उपयोग किडनी, लीवर और हृदय संबंधी समस्याएँ पैदा कर सकता है। भारत में 20-30फीसदी जिम जाने वाले युवा स्टेरॉयड का उपयोग करते हैं, जिसके दीर्घकालिक दुष्परिणाम घातक हो सकते हैं। सर्जरी में जटिलताएँ, जैसे इंफेक्शन, नसों का नुकसान, या एनेस्थीसिया से मृत्यु, आम हैं। भारत में हर साल कॉस्मेटिक सर्जरी से होने वाली जटिलताओं के 5-10फीसदी मामले गंभीर होते हैं। स्किन लाइटनिंग प्रोडक्ट्स में मौजूद मरकरी और हाइड्रोक्विनोन जैसे रसायन त्वचा कैंसर और किडनी की समस्याएँ पैदा कर सकते हैं। खबरें आ रही हैं कि अभिनेत्री शेफाली जरीवाला ने जवान दिखने के लिए दवाएँ और उपचार लिए, जो उनकी मृत्यु का कारण बने। यह मामला कृत्रिम सौंदर्य के खतरों का स्पष्ट उदाहरण है। विश्व प्रसिद्ध पॉप गायक माइकल जैक्सन ने गोरी त्वचा और चेहरे की बनावट बदलने के लिए कई सर्जरी और स्किन लाइटनिंग उपचार करवाए। इन प्रक्रियाओं के दुष्प्रभाव और दवाओं के ओवरडोज ने उन्हें मृत्यु के करीब खड़ा कर दिया। ये दो तो सिर्फ उदाहरण हैं। ऐसे अनेक नाम हैं। विदेशों में सरकार इसे गंभीरता से ले रही है, और संबंधित कंपनियों पर कार्रवाई भी कर रही है। भारत में भी इस बढ़ते जुनून को नियंत्रित करने और इसके खतरों को कम करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य और आत्म-स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और सोशल मीडिया पर अभियान चलाए जाने चाहिए। सेलिब्रिटीज और इन्फ्लुएंसर्स को अवास्तविक सौंदर्य मानकों को बढ़ावा देने से रोकने के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। उनके इस तरह के विज्ञापनों पर रोक लगनी चाहिए। इससे संबंधित कड़े कानून बनना चाहिए। प्रोटीन सप्लीमेंट्स, स्टेरॉयड और स्किन लाइटनिंग प्रोडक्ट्स पर सख्त नियंत्रण और गुणवत्ता जाँच होनी चाहिए। कॉस्मेटिक सर्जरी और अन्य प्रक्रियाओं के लिए लाइसेंसिंग और प्रशिक्षण को और सख्त करना होगा। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मदद से बॉडी डिस्मॉर्फिया और अवसाद जैसे मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए।
कृत्रिम सौंदर्यबोध का बढ़ता जुनून आधुनिक समाज की एक जटिल समस्या है, जो सामाजिक दबाव, मीडिया के प्रभाव, व्यक्तिगत असुरक्षा और शासन की अनदेखी का परिणाम है। यह न केवल स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में डालता है, बल्कि समाज में असमानता और अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा देता है। शेफाली जरीवाला और माइकल जैक्सन जैसे मामले हमें यह चेतावनी देते हैं कि सौंदर्य की अंधी दौड़ में प्राकृतिक स्वास्थ्य और आत्म-स्वीकृति को अनदेखा करना कितना घातक हो सकता है।