Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – महिला सशक्तिकरण और सरकार

महिला सशक्तिकरण और सरकार

-सुभाष मिश्र
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावा किया है कि उनके 11 साल के कार्यकाल में महिलाएं सशक्त हुई है। केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का महिलाओं के सशक्तिकरण पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। सरकार का दावा है कि कल्याणकारी योजनाओं, जैसे उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना, और प्रधानमंत्री आवास योजना ने महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर मजबूत किया है। हालांकि, इसके बावजूद महिलाओं पर अत्याचार के बढ़ते मामले और पितृसत्तात्मक समाज में उनकी दूसरी दर्जे की स्थिति पर सवाल उठते रहे हैं। अभी भी घरेलू कामकाजी महिलाओं के श्रम का कोई मूल्यांकन नहीं होता। न्यूनतम मजदूरी भुगतान के मामले में भी महिलाओं के साथ भेदभाव होता है। समाज में बड़े पैमाने पर महिलाएं पुरूषों पर ही आश्रित है। आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वतंत्र नहीं होने से उन्हें शोषण का शिकार होना पड़ता है।

सरकार के दावे उपलब्धियां और तथ्य की पड़ताल की जाये तो हम देखते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में अपनी सरकार के तीसरे कार्यकाल पर उज्ज्वला योजना की चर्चा करते हुए कहा है कि इस योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक रसोई गैस कनेक्शन गरीब परिवारों को वितरित किए गए, जिससे महिलाओं को धुएं से मुक्ति और बेहतर स्वास्थ्य मिला। प्रधानमंत्री जन धन योजना से 55.6 प्रतिशत खाते महिलाओं के नाम पर खुले, जिससे वित्तीय समावेशन बढ़ा। प्रधानमंत्री आवास योजना 73प्रतिशत घरों को महिलाओं के नाम पर आवंटित किया गया, जिससे उनकी संपत्ति में हिस्सेदारी सुनिश्चित हुई। इसके अलावा विज्ञान, शिक्षा, खेल, स्टार्टअप और सशस्त्र बलों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को प्रेरणादायक बताया गया है।

यदि हम सरकार के दावों में सत्यता की पड़ताल करें तो कुछ हद तक यह सही प्रतीत होते है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5, 2021) के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 60प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने बैंक खाते खोले हैं, जो 2014 के 33फीसदी से उल्लेखनीय वृद्धि है। मुद्रा लोन योजना के तहत लाखों महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए ऋ ण मिला। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या 2 करोड़ से अधिक हो गई है, और स्टार्टअप क्षेत्र में भी उनकी भागीदारी बढ़ी है। खेल जैसे क्षेत्रों में भी, जैसे पीवी सिंधु और मीराबाई चानू, महिलाओं ने वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई है।

भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें वोट बैंक के रूप में मजबूत करने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें महतारी वंदन, लाड़ली बहना, और लखपति दीदी जैसी योजनाएं शामिल हैं। इनके साथ स्व-सहायता समूहों (एसएचजीएस) को सक्रिय करने पर भी जोर दिया जा रहा है। पार्टी इन योजनाओं के जरिए न केवल महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने का दावा करती है, बल्कि इनका व्यापक प्रचार भी करती है ताकि जनता के बीच सकारात्मक छवि बनाई जा सके। महतारी वंदन, लाड़ली बहना, और लखपति दीदी जैसी योजनाएं और स्व-सहायता समूहों की सक्रिय महिलाओं के जीवन में कुछ बदलाव ला रहा है, विशेषकर आर्थिक सहायता और जागरूकता के स्तर पर। इनका प्रचार भाजपा की एक मजबूत रणनीति रही है, जो महिलाओं को प्रभावित करने में सफल भी रही है। हालांकि, इन योजनाओं की दीर्घकालिक प्रभावशीलता और समान पहुंच पर सवाल बने हुए हैं। सच्चा सशक्तिकरण तभी संभव होगा, जब इनका लाभ सभी वर्गों तक पहुंचे और पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति में मूलभूत बदलाव आए। प्रचार के साथ-साथ निगरानी और जवाबदेही पर भी ध्यान देना होगा।

लाड़ली बहना योजना मध्य प्रदेश में शुरू की गई। यह योजना महिलाओं को मासिक आर्थिक सहायता (प्रति माह 1,500 रुपये) प्रदान करती है, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो और वे आत्मनिर्भर बनें। इसे लिंगानुपात में सुधार लाने का भी श्रेय दिया जाता है। लखपति दीदी योजना इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। इसके तहत स्व-सहायता समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षण और ऋण देकर उन्हें सालाना एक लाख रुपये की आय हासिल करने में मदद की जाती है। लखपति दीदी योजना के तहत 1 करोड़ से अधिक महिलाओं ने अपनी आय बढ़ाई है, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। सरकार का लक्ष्य 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाना है।

स्व-सहायता समूहों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण, माइक्रोफाइनेंस, और सरकारी योजनाओं से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है, ताकि महिलाएं सामूहिक रूप से आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लें। एसएचजीएस ने महिलाओं को शिक्षा और जागरूकता के अवसर प्रदान किए हैं। इन योजनाओं का लाभ शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण और गरीब वर्ग तक सीमित पहुंचा है। कई मामलों में, आर्थिक सहायता का उपयोग पारिवारिक जरूरतों में हो जाता है, न कि महिलाओं के व्यक्तिगत सशक्तिकरण में। इसके अलावा, प्रशिक्षण और ऋण की प्रभावी निगरानी की कमी भी एक चुनौती है। इन योजनाओं को महिलाओं को प्रभावित करने और चुनावी लाभ हासिल करने के लिए डिजाइन किया गया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ये योजनाएं अल्पकालिक लाभ देती हैं, लेकिन दीर्घकालिक सशक्तिकरण में उनकी भूमिका सीमित है। लाड़ली बहना योजना से मध्य प्रदेश में लाखों महिलाओं को लाभ मिला है, और कुछ क्षेत्रों में लिंगानुपात में सुधार की बात कही जाती है।

हालांकि, सरकार के दावों की पूर्ण सत्यता पर सवाल उठते हैं, क्योंकि महिलाएं अभी भी कई क्षेत्रों में पुरुषों से पीछे हैं, और पितृसत्तात्मक समाज में उनका शोषण जारी है। यदि हम महिलाओं पर अत्याचार के आंकड़ों पर नजर डाले तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2024 के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2023 में 4.45 लाख मामले दर्ज हुए, जो 2024 में 4.6 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। इसमें दहेज हत्या, घरेलू हिंसा और यौन शोषण के मामले शामिल हैं।

विश्व बैंक के 2025 के डेटा के अनुसार, महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर 24प्रतिशत है, जो पुरुषों की 78प्रतिशत से काफी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर और गहरा है। पितृसत्तात्मक सोच के चलते सामाजिक मान्यताएं और पारिवारिक ढांचे में महिलाओं को दूसरा दर्जा दिया जाता है, जिसके कारण वे निर्णय लेने की प्रक्रिया से वंचित रहती हैं। 2025 के सामाजिक सर्वेक्षणों में 60प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं ने घरेलू हिंसा का सामना करने की बात स्वीकारी। कुछ हद तक हमारे देश में कानूनी कमजोरियां भी इसका एक बड़ा कारण है।अपराधों के बावजूद दोषसिद्धि दर कम है। एनसीआरबी के अनुसार, 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दोषसिद्धि दर केवल 28.7फीसदी रही, जो न्यायिक प्रणाली में देरी और भ्रष्टाचार को दर्शाता है।

विपक्षी दलों का कहना है कि महिला और बाल विकास मंत्रालय के बजट में कटौती हुई है, जो 2023-24 में कुल बजट का केवल 0.55प्रतिशत था। इससे पोषण और सुरक्षा योजनाओं पर असर पड़ा है। वही महिलाओं से जुड़ी योजनाओं का लाभ शहरी क्षेत्रों की महिलाओं को अधिक मिला, जबकि ग्रामीण और आदिवासी महिलाएं अभी भी वंचित हैं। केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने महिलाओं के सशक्तिकरण में योगदान दिया है, विशेषकर आर्थिक समावेशन और स्वास्थ्य सुधार के क्षेत्र में। उज्ज्वला, जन धन और आवास योजना जैसे कदमों ने लाखों महिलाओं के जीवन को बेहतर किया है, और शिक्षा व रोजगार में उनकी भागीदारी बढ़ी है। हालांकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, महिलाओं पर अत्याचार के बढ़ते आंकड़े और पितृसत्तात्मक समाज में उनकी असमान स्थिति सरकार के दावों को चुनौती देते हैं। सच्चा सशक्तिकरण तभी संभव है, जब कानूनी प्रणाली सख्त हो, सामाजिक मानसिकता बदले, और योजनाओं का लाभ सभी वर्गों तक समान रूप से पहुंचे। अभी भी लंबा सफर बाकी है, और सरकार को इन चुनौतियों पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है।